यहां राष्ट्रीय औसत एमएमआर 93 से ज्यादा है। प्रदेश में जच्चा-बच्चा को स्वस्थ रखने के लिए पोषण अभियान चलाया गया। गांव-गांव में मितानिनों का जाल बिछा हुआ है, जो गर्भवतियों को अस्पताल ले जाने व लाने का काम करती हैं। गर्भ के दूसरे माह से ही पूरी जांच हो रही है। पर्याप्त हीमोग्लोबिन है या नहीं, बीपी तो नहीं बढ़ा है, इसकी भी जांच की जा रही है। यही नहीं सोनोग्राफी जांच से ये पता चल जाता है कि गर्भ में पल रहा शिशु स्वस्थ है या नहीं। किसी भी गर्भवती को डिलीवरी के लिए अस्पताल पहुंचाया जाता है, चाहे वह नॉर्मल हो या सिजेरियन। इससे मौतों में कमी आई है।
102 महतारी एक्सप्रेस का अभिन्न योगदान प्रदेश में गर्भवती की जांच व इलाज के लिए 102 महतारी एक्सप्रेस चल रही है। यह एक तरह का एंबुलेंस ही है। अस्पताल ले जाने व घर तक छोड़ने का एक रुपए खर्च नहीं आता। यह सेवा पूरी तरह नि:शुल्क है। डिलीवरी के बाद भी महिलाएं इस एंबुलेंस की सेवा ले सकती हैं। प्रदेश में 324 से ज्यादा महतारी एक्सप्रेस का संचालन किया जा रहा है।
जिला अस्पतालों को करना होगा मजबूत एमएमआऱ में कमी लाने के लिए प्रदेश के जिला अस्पतालों को सुदृढ़ करना होगा। प्रदेश में 33 जिले हैं, लेकिन 30 जिलों में ही जिला अस्पताल है। बाकी तीन जिलों में सीएचसी का संचालन किया जा रहा है। दुर्ग, बिलासपुर व कुछ जिलों को छोड़कर ज्यादातर रेफरल सेंटर बने हुए हैं। यानी थोड़ा सा भी क्रिटिकल केस होने पर महिलाओं को डिलीवरी के लिए आंबेडकर अस्पताल रेफर किया जाता है। कई बार रास्ते में महिलाओं की मौत हो जाती है या अस्पताल पहुंचते तक केस काफी गंभीर हो जाता है। प्रदेश का पूरा दबाव आंबेडकर अस्पताल पर है। यहां रोजाना औसत 20 से 25 महिलाओं की डिलीवरी होती है, जाे प्रदेश में सबसे ज्यादा है।
विभिन्न राज्यों में मातृ मृत्यु दर राज्य दर मध्यप्रदेश 175
असम 167
उत्तरप्रदेश 151
ओडिशा 135
राजस्थान 102
बिहार 100
गुजरात 53
महाराष्ट्र 38 प्रदेश में मातृ मृत्युदर में कमी लाने में संस्थागत प्रसव की बड़ी भूमिका है। डिलीवरी सामान्य हो या सिजेरियन, मितानिनों के माध्यम से गर्भवती को सरकारी अस्पताल लाया जा रहा है। सरकारी अस्पताल में डिलीवरी होने पर महिला व मितानिन को एक निश्चित राशि भी दी जा रही है, जो प्रोत्साहन का काम कर रही है।
डॉ. तृप्ति नागरिया, सीनियर गायनेकोलॉजिस्ट