कांकेर मेडिकल कॉलेज का रिजल्ट इस बार सबसे ज्यादा चौंकाने वाला है। पिछले साल तक जहां छात्रों ने डीएमई कार्यालय को पत्र लिखकर पढ़ाई नहीं होने की शिकायत की थी और एनाटॉमी में आधे से ज्यादा छात्र फेल हो गए थे, इस बार रिजल्ट शत-प्रतिशत के आसपास है। छात्रों ने अपने पत्र में फैकल्टी नहीं होने की बात कही थी। फैकल्टी की स्थिति अभी भी वैसी ही है, जैसे पिछले साल थी।
पिछले तीन-चार साल से मेडिकल कॉलेजों में ही एमबीबीएस की उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन हो रहा है। ऐसे में एक्सटर्नल हो या इंटरनल, छात्रों को मनमाने नंबर दे रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा न केवल सरकारी कॉलेज, बल्कि निजी कॉलेजों में हो रहा है। पहले सरकारी कॉलेज वाले प्रेक्टिकल नंबर ज्यादा देने में कोताही बरतते थे। अब ऐसा नहीं हो रहा है। इस कारण सरकारी कॉलेजों का रिजल्ट भी बेहतर आ रहा है। जब से कॉलेजों में उत्तर पुस्तिका जांच रहे हैं, रिजल्ट औसतन 80 फीसदी से ऊपर आ रहा है।
मेडिकल कॉलेजों में आब्जर्वर भेजे जाते हैं, जो परीक्षा की निगरानी करते हैं। इस बार अच्छा रिजल्ट तो आया है। कांकेर व सिम्स में नकल का कोई मामला नहीं आया है।
डॉ. एके चंद्राकर, कुलपति हैल्थ साइंस विवि
मेडिकल की पढ़ाई को मजाक न बनाएं
कांकेर में पर्याप्त फैकल्टी न होते हुए भी रिजल्ट 99 फीसदी आना संदेहास्पद है। जब टीचर ही नहीं है तो पढ़ाई का अंदाजा लगा सकते हैं। मेडिकल की पढ़ाई को मजाक नहीं बनाना चाहिए। इससे समाज में गलत मैसेज जाएगा। छात्र-छात्राओं को मनमानी नंबर देने के बजाय योग्यता के अनुसार नंबर दिया जाए। यह केवल कांकेर की बात नहीं है। किसी भी कॉलेज में मनमानी नंबर न दें। सेंट्रलाइज्ड मूल्यांकन होने पर बेहतर रिजल्ट का पाेल खुल जाएगा।
डॉ. सीके शुक्ला, रिटायर्ड डीन रायपुर मेडिकल कॉलेज