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बस्तर के आदिवासियों ने उत्सव में छकते तक पिया “लांदा”, दर्जनभर से ज्यादा ग्रामीणों की हालत गंभीर

आयोजन के दौरान महिला पुरुष सामूहिक रूप से लांदा का सेवन कर रहे थे, जिसकी वजह लोगों की तबियत बिगड़ गई, गांव पहुंचते ही मेडिकल टीम को अचानक से इतने सारे ग्रामीणों को बेहोश देख आनन-फानन में जमीन पर लिटाकर ही इलाज शुरू करना पड़ा।

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बस्तर के आदिवासियों ने उत्सव में छकते तक पिया

मेडिकल टीम बीमार ग्रामीणों को जमीन पर लिटाकर इलाज करते हुए।

रायपुर. छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल के ग्राम कवाली में पेय पदार्थ (लांदा) के सेवन से शुक्रवार को एक दर्जन से ज्यादा ग्रामीण बीमार हो गए। बीमार होने वालों में पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी शामिल है, जिनके इलाज के लिए मेडिकल टीम मौके पर पहुंच गई है।
बता दें गांव के किसी आयोजन के दौरान महिला पुरुष सामूहिक रूप से लांदा का सेवन कर रहे थे, जिसकी वजह लोगों की तबियत बिगड़ गई, गांव पहुंचते ही मेडिकल टीम को अचानक से इतने सारे ग्रामीणों को बेहोश देख आनन-फानन में जमीन पर लिटाकर ही इलाज शुरू करना पड़ा। मौके पर ही मेडिकल की टीम ने ग्रामीणों को लिटाकर उन्हें ड्रिप लगाया, कई लोगों की स्थिति काफी गंभीर बनी हुई है।
इस तरह तैयार किया जाता है लांदा
बस्तर में नशीले द्रव्यों का सेवन सामान्य है और सल्फी, महुआ तथा लांदा को तरल भोजन समान माना जाता है। चावल को खमीर उठा कर उसका लांदा नामक पेय पदार्थ बनाया जाता है। हाट बाजार में ग्रामीण इसे बेचने आते हैं। लांदा बनाने के लिए चावल को पीस कर उसके आटे को भाप में पकाया जाता है, इसे पकाने के लिए चूल्हे के ऊपर मिटटी की हांड़ी रखी जाती है जिस पर पानी भरा होता है और हांड़ी के ऊपर टुकना जिस पर चावल का आटा होता है। इसे अच्छी तरह भाप में पकाया जाता है, फिर उसे ठंडा किया जाता है। बस्तर में दुख, त्यौहार या कहीं मेहमाननवाजी करने के लिए इस पेय पदार्थ को पिलाया जाता है।