
खतों के जरिए सामने आई पीड़ा: माओवादी दंश के तीन सच, जो बदल गए अब कहानी में
राजकुमार सोनी/रायपुर. चाहे सुरक्षाबल के जवान हो, विशेष पुलिस आरक्षक या फिर राहत शिविर में रहने वाले बेबस ग्रामीण आदिवासी... सबको बेहतरी का आश्वासन मिलता रहा है, लेकिन माओवादी इलाकों की हकीकत अलग ही है। माओवाद प्रभावित गांवों से हर रोज सैकड़ों खत सरकार तक पहुंचते हैं। इन खतों में बयां दर्द को पढ़कर यह अंदाजा तो हो ही जाता है कि बस्तर में जो कुछ घट रहा है, वह दर्दनाक है।
न जमीन मिली न मकान
जशपुर जिले के फरसाबहार तहसील के गांव धौरासांड में रहने वाले सीआरपीएफ जवान बनमाली यादव पिछले साल 24 मार्च को सुकमा और बुरकापाल के पास माओवादियों से लोहा लेने के दौरान जब वे शहीद हो गए। तब सरकार ने उनकी विधवा जितेश्वरी बाई और परिजनों को पांच एकड़ जमीन और आवास देने का वादा किया था। जब जमीन और मकान नहीं मिला तो जितेश्वरी बाई ने मुख्यमंत्री को खत लिखा।
जितेश्वरी का कहना है कि पति के देहांत के बाद वह जैसे-तैसे अपनी छोटी बेटी के साथ गुजर-बसर कर रही हैं। अगर जमीन और आवास की सुविधा नहीं मिली तो दर-दर भटकने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। जितेश्वरी कहती हैं- पति खोने का दर्द तो साथ ही है लेकिन अब इस बात की चिंता भी खाए जा रही हैै कि छोटी बच्ची का भविष्य क्या होगा?
अपाहिज हो गई तो मानदेय बंद
बस्तर में जब सलवा-जुडूम का उफान जोरों पर था तब दक्षिण बस्तर के कलक्टर केआर पिस्दा ने भारतीय पुलिस अधिनियम 1861 की धारा 17 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए बीजापुर निवासी कुमारी सिरमणी बघेल को विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) बनाया था। कलक्टर ने अपने नियुक्ति आदेश में साफ तौर पर लिखा था कि ग्रामीणों के स्वप्रेरणा अभियान से माओवादी भयभीत हो गए हैं।
ग्रामीण जनजागरण अभियान में बगैर डरे हिस्सेदारी दर्ज कर सकें इसलिए उन्हें सहयोग देने के लिए सिरमणी को विशेष पुलिस अधिकारी नियुक्त किया गया है। इधर सिरमणी ने भी मुख्यमंत्री को खत लिखकर कहा है कि वर्ष 2008 में उसके पैरों पर एक पुलिस वाले ने मोटर साइकिल चढ़ा दी थी तब से वह अपाहिज हो गई। इस बीच उसके पति ने भी साथ छोड़ दिया और थाने से हर माह मिलने वाला मानदेय भी बंद हो गया है। अब वह दूसरों के घर में झाड़ू-पौंछा करके जैसे-तैसे परिवार चला रही है।
सब छीन लिया सलवा-जुडूम ने
दंतेवाड़ा के ही कतियारास इलाके के गोपाल अजमेरा ने भी मुख्यमंत्री को अपनी पीड़ा लिख भेजी है। गोपाल का कहना है कि ग्राम पोलमपल्ली में उनके पास अच्छी खासी जमीन थी, लेकिन सलवा-जुडूम अभियान ने उनका सब कुछ छीन लिया। गोपाल का कहना है कि वर्ष 2005 में जब मुख्यमंत्री बासागुड़ा इलाके में आए थे तब कंधे पर हाथ रखकर कहा था कि आपके विकलांग बेटे राणाप्रताप अजमेरा को नौकरी जरूर मिलेगी, लेकिन अब तक नौकरी नहीं मिली।
गोपाल का कहना है कि उसका संयुक्त परिवार है जिसमें 20 से ज्यादा लोग है,लेकिन परिवार के सभी सदस्य अब आर्थिक रूप से कमजोर हो गए हैं। सलवा- जुडूम में जो जमीन गई उसका मुआवजा नहीं मिला और बच्चे अब भी बासागुड़ा के राहत शिविर में रहने को मजबूर है। गोपाल अजमेरा ने भी खेती के लिए जमीन और बच्चों को नौकरी देने की मांग की है।
Published on:
03 May 2018 12:31 pm
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