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अजीब लेकिन लजीज! क्या आपने खाई है लाल चीटियों की चटनी, जो अब दुनियाभर में हो रही पॉपुलर

Red Ant Chutney (Chapada): चापड़ा चींटी को नमक-मिर्च के साथ पीस कर चटनी बनाकर खाया जाता है. बस्तर के जंगलों में मिलने वाली इस चींटी का स्वाद खाने वालों को आकर्षित करता है. छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में लंबे समय से इसका इस्तेमाल होता रहा है. अब शहरों में भी चापड़ा चटनी लोगों की पसंदीदा हो रही है.

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Red Ant Chutney (Chapada): बस्तर. कभी सोचा की लाल चीटियों की भी चटनी बन सकती है. बस्तर के जंगल की लाल चींटी की बनी चापड़ा चटनी का स्वाद गांव से निकल कर अब बाहर के लोगों को भी ललचाने लगा है. बस्तर आने पर पर्यटक हो या मेहमान, एक बार चापड़ा चटनी की मांग जरूर करते हैं. चापड़ा चींटी को नमक-मिर्च के साथ पीस कर चटनी बनाकर खाया जाता है. बस्तर के जंगलों में मिलने वाली इस चींटी का स्वाद खाने वालों को आकर्षित करता है. छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में लंबे समय से इसका इस्तेमाल होता रहा है. अब शहरों में भी चापड़ा चटनी लोगों की पसंदीदा हो रही है.

पेड़ों पर मिलने वाली लाल रंग की चींटी को स्थानीय लोग चींटा भी कहते हैं. हालांकि यह चापड़ा के नाम से ज्यादा मशहूर है. यह जीव अपनी लार से पत्तों को आपस में चिपका कर अपने लिए घर बनाते हैं. स्थानीय जानकार खेम वैष्णव के मुताबिक सरई और आम, जामुन और चौड़े पत्ते वाले पेड़ में ये अपना घर बनाते हैं. होटल व्यवसायी असीम साहा ने कहा कि चापड़ा की चटनी पर्यटकों की सबसे फेवरिट है. इसे बनाने में काफी समय लगता है. इसलिए कई बार हम लोगों की डिमांड भी पूरी नहीं कर पाते हैं.


चींटी से कटवाकर करते हैं इलाज
जंगल में मिलने वाली यह चींटी सिर्फ खान-पान में ही इस्तेमाल नहीं होती, बल्कि बस्तर (bastar) के ग्रामीणों काे लिए यह चिकित्सा का साधन भी है. ग्रामीणों का मानना है कि चापड़ा चींटी खाने से सेहत बनी रहती है. स्थानीय लोगों का मानना है कि लाल चींटी यानी चापड़ा से कटवाने पर बीमारी दूर होती है और इसके खाने से कोई रोग नहीं होता. बीमार पड़ने पर इसी लाल चापड़ा चींटी को जीवित हालत में अपने शरीर पर डाल कर कटवाते हैं. हालांकि चींटी के काटने से इलाज का कोई वैज्ञानिक तथ्य नहीं है.


डॉक्टर नहीं मानते ऐसी बातें
लाल चींटी के फायदे को लेकर बस्तर के ग्रामीणों की जो भी धारणा हो, मगर डॉक्टर इसकी तस्दीक नहीं करते. इस बारे में बीएमओ डॉक्टर सूरज राठौर का कहना है कि लाल चापड़ा चींटी के काटने से बीमारी दूर होने का कोई मेडिकल प्रूफ नहीं है. लाल चींटी में फार्मिक एसिड होता है, जिसकी वजह से काटने पर जलन होती है. फार्मिक एसिड का उपयोग फ़ूड प्रिजर्वेटिव के लिए किया जाता है. बारिश के दिनों मे अंदरूनी इलाके में मलेरिया फैलता है. बीमार पड़ने पर ग्रामीण इलाज के बजाय चापड़ा पर भरोसा करते हैं. डॉ. राठौर ने इस बारे में कहा कि हो सकता है कि ग्रामीण फार्मिक एसिड को डाइजेस्ट कर रहे हैं, जिसकी वजह से कुछ देर के लिए फीवर दूर हो सकता है.