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रायपुर

जब 500 साल से जमीन में दबे मंदिर के सबूत सामने आए तो कोई नकार न पाया, आज बता रहे पूरी कहानी…

Ayodhya Ram Mnadir Story : यूपी के इलाहाबाद हाईकोर्ट में रामलला विराजमान पर जिरह हो रही थी। हिंदू पक्ष ने वेद-ग्रंथों का हवाला दिया।

रायपुरJan 22, 2024 / 11:10 am

Kanakdurga jha

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Ayodhya Ram Mnadir : यूपी के इलाहाबाद हाईकोर्ट में रामलला विराजमान पर जिरह हो रही थी। हिंदू पक्ष ने वेद-ग्रंथों का हवाला दिया। मुस्लिम पक्ष की ओर से वामपंथी इतिहासकारों ने अपने तर्कों से इसका विरोध किया। दोनों पक्षों के ऑर्गयूमेंट बुरी तरह धराशायी थे। कोर्ट ने साफ कर दिया कि फैसला सबूतों की रोशनी में आएगा। यहीं एक अहम मोड़ आया। केस में ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की एंट्री हुई। फिर किस तरह 500 साल से जमीन में दफन सबूत सामने आए और क्यों इन्हें कोई नकार नहीं पाया, सिलसिलेवार तरीके से बता रहे हैं अयोध्या में खुदाई कर जन्मभूमि को साबित करने वाली टीम में शामिल रायपुर के पद्मश्री अरुण कुमार शर्मा…
जब 500 साल…

अयोध्या में रामलला की जन्मभूमि का केस कोर्ट में वैसे तो 70-80 साल से चल रहा था। इसमें अहम मोड़ आया 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद। साल 2000 में एक और महत्वपूर्ण फैसला हुआ। यूपी की इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सारी याचिकाओं को क्लब कर दिया। अब इस पूरे प्रकरण में दो ही पक्ष थे। एक हिंदू और दूसरा मुस्लिम पक्ष। बात आई कि कोर्ट में कैसे साबित करें, मस्जिद वाली जगह पर मंदिर ही था। पहले-पहल की जिरह में इतिहासकारों को बुलाया गया। इन्होंने वेद-पुराणों का हवाला दिया। वामपंथी इतिहासकारों ने इसके विरोध में अपने तर्क रखे। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि कहानियां नहीं चलेंगी।
तथ्यों और सबूतों से अपनी बात प्रमाणित करनी होगी। देखा गया कि कौन ऐसा व्यक्ति है जो पूरे केस में अच्छी तरह पड़ताल कर सकता है। कई नाम आए। मुहर लगी बीआर मणि के नाम पर। उन्होंने अपनी टीम बनाई। कोर्ट ने ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति की बात कही जो पूरी टीम के काम को मॉनीटर कर सके। इस काम के लिए शर्मा से संपर्क किया गया। खोज टीम के प्रमुख बीआर मणि उनके स्टूडेंट थे। इसके अलावा टीम में शामिल ज्यादातर सदस्यों ने भी उनके अंडर काम किया था। कोर्ट ने भी ऐसे व्यक्ति को मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी देना उचित समझा। इस तरह छत्तीसगढ़ ने भी अयोध्या में श्रीराम के मंदिर की नींव डालने में अपना अहम योगदान दिया।
ईंटों की कार्बन डेटिंग से पता चला- ये हजारों साल पुराने हैं

खुदाई में निकले सबूतों को शर्मा एक संदूक में लेकर कोर्ट गए थे। वे बताते हैं, खुदाई में राम चबूतरा निकला। इसकी ईंटों की कार्बन डेटिंग कराने पर पता चला कि ये हजारों साल पुरानी हैं। इसके अलावा गंगा-यमुना देवी की मूर्तियां निकलीं।
ये मगरमच्छ में विराजमान थीं जिन्हें प्राचीन ग्रंथों में दिए देवी के उल्लेख से साबित किया गया। खुदाई में शंख भी निकला था। स्वास्तिक की मुहर व कछ अन्य चिन्ह भी मिले थे। ये सबूत पर्याप्त थे बताने के लिए कि यहां मंदिर था। शर्मा ने इन सबूतों पर अंग्रेजी में एक किताब ’आर्कियोलॉजिकल एविडेंस इन अयोध्या केस’ भी लिखी है।
जब मुस्लिम पक्षकारों ने कहा- रात में सबूतों को प्लांट कर देंगे

शर्मा बताते हैं, कोर्ट में मुस्लिम पक्षकारों ने दलील दी कि ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया में शामिल सदस्य खुदाई के दौरान रात में सबूतों को प्लांट कर सकते हैं। मामला सेंसेटिव था। ऐसे में कोर्ट ने केस के सभी पक्षकारों ने कहा कि वे अपनी-अपनी ओर से एक-एक एक्सपर्ट को खुदाई वाली जगह में भेज सकते हैं। रोज होने वाली कार्रवाई पर ये अपनी नजर रखेंगे और जहां खामी नजर आएगी, उस पर कोर्ट में अपनी आपत्ति दर्ज कराएंगे।
खोज पूरी होने के बाद कोर्ट में ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट पर जिरह शुरू हुई। विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष अशोक सिंघल ने शर्मा से संपर्क किया। उन्होंने कहा कि आप सर्वे टीम में शामिल थे। सभी तथ्यों से बेहतर परिचित हैं। कोर्ट में गवाही भी आप दीजिए। शर्मा मान गए। उन्होंने खुदाई में मिले सबूतों से न केवल ये साबित किया कि पहले वहां मंदिर था, बल्कि ये भी साबित कर दिया कि वहां कभी मस्जिद थी ही नहीं। इस पर वे कहते हैं, मस्जिदों में चार मीनारें होती हैं।
बाबरी ढांचा जहां था, वहां एक मीनार नहीं थी। मस्जिदों में वजू के लिए हॉज होता है। यहां वो भी नहीं मिला। दरअसल, ये एक मंदिर था जिसे 15वीं सदी बाबर की सेना ने तोड़कर यहां एक रूम बनाया। यहां मुसलमान सैनिक रहते थे जो नमाज पढ़ते रहे होंगे। बाद में सभी यहां नमाज के लिए आने लगे होंगे।
दिनभर सर्वे, शाम को बनती थी रिपोर्ट

अयोध्या में खुदाई 4 महीने तक चली थी। केस की गंभीरता को देखते हुए कोर्ट ने आदेश दिया था कि अयोध्या में हो रही खुदाई की हर दिन रिपोर्ट बनाई जानी चाहिए। सर्वे टीम के सदस्य दिनभर खुदाई करते। इसमें सामने आई बातों पर शाम को एक रिपोर्ट तैयार करते। इसे अगले दिन कोर्ट में जमा करवाया जाता। आखिर में चार महीने तक चली खोज के दौरान सामने आई बातों पर एक विस्तृत रिपोर्ट बनाकर भी कोर्ट में जमा करवाया गया था।

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