
इशारों की भाषा समझकर पढ़ाई कर रही 13 साल की वंदना, पढि़ए हौसले से भरी ये कहानी
पप्पू साहू@इंदौरी. बचपन से बोलने व सुनने की शक्ति नहीं होने के बाद भी गांव की एक बेटी ने खुद को शिक्षा के लिए तैयार किया। उनके हार न मानने की हौसले व बुलंद ईरादे ने शिक्षा की नींव रखी। अब उनका मेहनत भी रंग लाने लगा है।
हम आपकों विश्व मूक बधिर दिवस पर जिले के ग्राम पेन्ड्रीखुर्द लेकर चलते हैं, जहां 13 बरस की वंदना मुकबधिर व कान से नि: शक्त होने के बाद भी शिक्षा के प्रति लगाव के चलते मिडिल स्कूल की कक्षा में कदम रखी है। बेटी वंदना की, जो स्थानीय स्तर पर तो अपने हौसले के दम पर प्राथमिक शिक्षा पार कर मिडिल स्कूल की पढ़ाई कर रही है। अब वह मन की आंख से शब्द गढ़ रहे हैं और इशारों-इशारों में अपने भावों को समझने व समझाने का प्रयास करते हैं। जैसे माहौल मिला उससे ही शिक्षा की नींव बखूबी गढ़ रही है।
बचपन से ही पढऩे की ललक
वंदना की पिता दुखित कौशिक गरीब परिवार से है। रोजी मजदुरी कर परिवार चलाते है। वंदना के पिता ने बताया कि करीब तीन साल की उम्र में इलाज के लिए उन्हे नागपुर भी लेकर गए थे और ईलाज भी कराया, लेकिन हालात नहीं सुधरी। पिता बताते है बेटी की पढऩे की ललक खुब है। अगर उसे प्रशासन स्तर से उचित शिक्षा मिले तो उसकी किस्मत बदल सकती है। बचपन से मुक व कान से नि:शक्त होने के बाद केवल प्रमाण पत्र के सिवाय कुछ योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
बड़े भाई का मिल रहा भरपूर सहयोग
वंदना कौशिक कक्षा सातवीं की होनहार नियमित छात्रा है। वह मिडिल स्कूल पढऩे के लिए दानीघटोली जाती है। बहन को उचित शिक्षा मिल सके। इसलिए बड़े भाई देवेन्द्र अपने साथ रोजाना साइकिल से स्कूल पहुंचते हैं। देवेन्द्र उसी स्कूल में कक्षा 10 वीं में है। स्कूल में पढ़ाई के बाद बड़े भाई घर में भी होमवर्क में मदद करती है। मिडिल स्कूल के प्रधान पाठक रामदयाल मंडावी बताते है कि वंदना मुक व कान से नि:शक्त होने के बाद भी अन्य छात्रों के तरह लिखाई पढ़ाई आसानी से समझ जाती है। कभी कभी होमवर्क की टेस्ट भी ब्लेक बोर्ड में आसानी से दे देती है। वंदना से जब इशारों में बात किया गया, तो उन्होंने लिखकर बताई की वह आगे भी पढऩा चाहती है।
Updated on:
26 Sept 2018 06:38 pm
Published on:
26 Sept 2018 06:36 pm
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