रायसेन. कहने को केंद्रीय मंत्री
सुषमा स्वराज का लोकसभा क्षेत्र, विधानसभा सांची,
उदयपुर, भोजपुर। एक केंद्रीय मंत्री, एक प्रभारी मंत्री समेत कुल 5 मंत्रियों का काफिला। एक दर्जन बड़े अधिकारियों की फौज। फिर भी अव्यवस्थाओं से घिरा मुख्यालय का स्वास्थ्य विभाग। शर्म की बात ये है कि इतने बड़े जनप्रतिनिधियों और अफसरों के होने बाद भी मृतक को अस्पताल से गंतव्य तक ले जाने के लिए शव वाहन नहीं है।
जिला अस्पताल में दो दिन पहले ही सुल्तापुर के खमरिया निवासी रेवाराम की बीमारी से मौत हो गई थी। पेशे से मजदूर गरीब का शव घंटों अस्पताल के मरीजों से भरे वार्ड में पड़ा रहा। उनके परिजन शव ले जाने के लिए घंटों इतंजार किए। इसकी जानकारी मिलते ही नगर पालिका अध्यक्ष जमना सेन के सहयोग से शव को गांव तक पहुंचवाया गया।
जिला अस्पताल में ये दृश्य एक दिन नहीं, बल्कि रोज दिखता है। पैसे से सक्षम परिजन तो अस्पताल से शव ले जाने के लिए भोपाल से निजी शव वाहन बुलवा लेते। पर गरीब क्या करें? हैरत की बात ये है कि अस्पताल प्रबंधन और जिले के स्वास्थ्य मुखिया को भी गरीबों की चिंता नहीं है। स्वास्थ्य विभाग हर साल गरीबों को बेहतर चिकित्सा सुविधाएं देने की बात कहता है, लेकिन यह सब कागजों पर सीमित रह गया है।
जिला अस्पताल में शव को रखने के लिए अलग से कोई कक्ष नहीं है। अस्पताल प्रबंधन भी शव को पलंग पर छोड़ देता है। इससे अन्य मरीजों पर मानसिक रूप से असर पड़ता है। हकीकत में अस्पताल में आए गरीबों को डॉक्टर-नर्स न तो इलाज करते, न ही मरीज की मौत के बाद उनके परिजन को सहायता उपलब्ध कराते।
मुख्यालय की आबादी लगभग 50 हजार और शव वाहन एक। इस शव वाहन को तत्कालीन नपाध्यक्ष मंजू सिंह के कार्यकाल में आठ साल पहले समाजसेवी महेश श्रीवास्तव ने दिया था। इसका संचालन नगर पालिका करती है। नपाध्यक्ष जमना सेन ने बताया कि हम शहर के नागरिकों को शव वाहन की सुविधा समय पर कराने की प्रयास करते हैं। अगर कोई गरीब परिजन है, तो उनके परिवार के मृतक सदस्य को गंतव्य पहुंचाने के लिए कई बार आर्थिक मदद भी की है। हाल ही में अस्पताल में मृत गरीब का शव सुल्तानपुर भेजने के लिए डीजल खर्च 1500 रुपए की मदद हमने की है।
रायसेन शहर में एक भी निजी शव वाहन नहीं है। कई बार शव ले जाने के लिए परिजन भोपाल से निजी शव वाहन बुलाते हैं। आर्थिक रूप से सक्षम परिजन, तो वाहन का किराया वहन कर लेते हैं, लेकिन गरीब के लिए यह बड़ी समस्या हो जाती है। उसके बाद नपा के एकमात्र शव वाहन पर निर्भर रहने के अलावा कोई चारा नहीं रहता हैं।
नपा के जन्म-मृत्यु पंजीयन विभाग के अनुसार रायसेन जिला मुख्यालय पर प्रतिदिन अस्पताल के भर्ती मरीजों के अलावा सड़क दुर्घटनाओं की स्थिति में औसतन 4 से 5 मौतें होती है। जिन्हें शव ले जाने वाहन की जरूरत पड़ती है। रायसेन में जनवरी से 20 जुलाईतक 108 मौतें पंजीकृत हुई है। इनमें से 25 प्रतिशत अस्पताल में दर्ज मौतें होती है। अस्पताल नपा का एक शव वाहन का चालक राजेश का कहना है कि जिले के किसी भी कस्बे में शव को छोडऩे जाते हैं, तो उसे 5 से 7 घंटे लग जाते हैं। लौटकर आने के बाद ही दूसरे शव को ले जाते हैं। इसके कारण परिजनों को घंटो इंतजार करना पड़ता है। कई बार वह 24 घंटे में 2 से 3 शव छोडऩे जाता है।
शव वाहन रखने का स्वास्थ्य विभाग में कोईप्रावधान नहीं है, न ही इसके लिएकोईबजट है। शव वाहन रखने और संचालन करने का जिम्मा नगर पालिका और समाजसेवी संगठनों का है। नपा के पास एक शव वाहन है। जिससे लोगों को परेशानी होती है। शहर के समाजसेवियों और संगठनों को शव वाहन रखना चाहिए। ताकि वक्त पर किसी भी परिजनों को सहायता मिल सकें। - डॉ. शशि ठाकुर, सीएमएचओ, रायसेन