. भारतीय संस्कृति को नजरअंदाज कर विदेशी सस्ंकृति की तरफ दौड़ लगाई जा रही है। यह जानते हुए कि विदेशी संस्कृति अपला कर जीवन का उद्वार नहीं किया जा सकता है, लेकिन इसके बावजूद भी भारतीय नागरिक विदेशी कल्चर के पीछे भागे जा रहे हैं। यह सारगर्भित उपदेश राष्ट्र संत आचार्य विद्यासागर महाराज ने नए साल के पहले दिन श्रावकों को विदेशी सभ्यता से दूर रहने की सीख देते हुए दिए। प्रारंभ में श्रीफल भेंट कर श्रावकों द्वारा आचार्य पूजन की गई। आचार्यश्री ने तारीख नहीं तिथि को सभ्यता मान कर मुहुर्त के अनुसार कार्य करने को भी प्रेरित किया। आचार्यश्री ने कहा कि नया साल अंग्रेजी माह जनवरी से प्रारंभ नहीं होता है, बल्कि चैत्र माह से नववर्ष का प्रारंभ होता है। लेकिन विदेशी सभ्यता भारतीयों के दिलो दिमाग पर हावी होने के कारण ही भारतीय जनवरी की एक तारीख को ही नए साल का आगाज मान कर खुशियां मनाते हैं। जो विदेशी संस्कृति को मानस पटल नर अंकित होना दर्शाता है। भारत की संस्कृति, सभ्यता को लगातार भुलाया जा रहा है। स्कूलों में भी भारतीय सभ्यता को वर्णित नहीं किया जा रहा है। बच्चों को भारतीय संस्कृति का ज्ञान कराया जाना अति आवश्यक है। इसे पाठ्यक्रम में वर्णित किया जाना चाहिए। आचार्यश्री ने कहा कि भारतीय पांचांग में कृष्ण पक्ष तथा शुक्ल पक्ष का स्पष्ट विवेचन है। इसी अनुसार तिथि के हिसाब से कार्य किया जाना चाहिए। लेकिन अंग्रेजी तारीख को मुहुर्त मान कर कार्य किया जा रहा है। जन्म तारीख भी अंग्रेजी माह में ही दर्ज कराई जा रही है। भारतीय अंग्रेजी गुलामी को नहीं भूल पा रहे हैं।