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छह चुनाव के परंपरागत प्रतिद्वंद्वी राजनीति के माहिर दो डाॅक्टर्स की मुलाकात का क्या है सियासी राज!

Madhya Pradesh Vidhansabha byelection Countdown दो पूर्व मंत्रियों की मुलाकात से एमपी भाजपा में सियासी पारा चढ़ने लगा कुछ दिन पूर्व गुना में भी कई दिग्गज भाजपाइयों ने गोपनीय बैैैठक की थी उपचुनाव में ताकत का मुजाहिरा के साथ शह-मात का खेल शुरू

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छह चुनाव के परंपरागत प्रतिद्वंद्वी दो डाॅक्टर्स की मुलाकात का क्या है सियासी राज!

छह चुनाव के परंपरागत प्रतिद्वंद्वी दो डाॅक्टर्स की मुलाकात का क्या है सियासी राज!

उपचुनाव के पहले एमपी भाजपा में आंतरिक घमासान तेज होने से सियासी पारा चढ़ता ही जा रहा है। भाजपाई हो चुके ‘महाराज सिंधिया’ के आने से सियासी पहचान पर संकट की आशंका से परेशान तमाम कद्दावर असमंजस की स्थिति में हैं। यह असमंजस की स्थिति पार्टी को भी बवंडर में फंसा दे तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। अभी कुछ दिन पहले ही सिंधिया विरोधी कद्दावर नेताओं की गोपनीय बैठक के बाद दो परंपरागत प्रतिद्वंद्वियों की मुलाकात ने चर्चा का बाजार गर्म कर दिया है। छह बार से चुनाव में एक दूसरे की खिलाफत करने वाले दो पूर्व मंत्रियों की औपचारिक मुलाकात ने अनौपचारिक रुप से कई संकेत दिए हैं।

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दरअसल, पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिर्रादित्य सिंधिया के कांग्रेस में कार्यकाल के दौरान उनके प्रभाव क्षेत्र वाले भाजपाइयों ने सियासी जमीन तैयार करने व ‘कमल’ खिलाने के लिए काफी मशक्कत की थी। भाजपा के कद्दावरों की मेहनत से आसपास के क्षेत्रों में इसका नतीजा भी देखने को मिलता रहा है। कई क्षेत्रों में तो भाजपा व कांग्रेस के कई चेहरों में परंपरागत राजनैतिक दुश्मनी भी खुलकर सामने आई है।
लेकिन अचानक से पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिर्रादित्य सिंधिया के भाजपाई होने से ‘महाराज’ व उनके समर्थक कांग्रेसी नेताओं की खिलाफत कर सियासत में सफल होने वाले भाजपाइयों के होशफाख्ता हो चुके हैं। तमाम अपने सियासी भविष्य को लेकर असमंजस में हैं। सबसे अधिक आशंकित वह कांग्रेसी हैं जो पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशियों/सिंधिया समर्थक प्रत्याशियों से मामूली वोटों से हारे। अब चूंकि उपचुनाव का बिगुल बज चुका है। दो दर्जन सीटों पर चुनाव की तैयारियां हैं और संकेत है कि भाजपा में आए सिंधिया समर्थक पूर्व विधायक/पूर्व मंत्री प्रत्याशी बनेंगे तो भाजपा को दशकों से सींचने वाले कद्दावर परेशान हैं। वह पार्टी में अपना कद कम होने को लेकर भी परेशान हैं।

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दो परंपरागत प्रतिद्वंद्वियों के बीच मुलाकात के सियासी मायने

उपचुनाव की सुगबुगाहट के बीच कांग्रेस से सिंधिया के साथ भाजपा में आए तत्कालीन मंत्री/विधायक डाॅ.प्रभुराम चौधरी ने सांची के ही पूर्व विधायक/मंत्री डाॅ.गौरीशंकर शेजवार से मुलाकात की। इस मुलाकात को दोनों प्रतिद्वंद्वी औपचारिक मुलाकात बता रहे हैं। मुलाकात के दौरान या उसके बाद दोनों में क्या तय होना है यह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन कयासों का बाजार गर्म है तो भाजपा में अंदरुनी गुटबाजी को खूब हवा मिलनी शुरू हो चुकी है।
बता दें कि डाॅ.प्रभुराम चौधरी कमलनाथ सरकार में स्कूल शिक्षा मंत्री रहे हैं। वह सिंधिया के समर्थक हैं। सांची विधानसभा क्षेत्र से विधायक डाॅ.प्रभुराम सभी पदों से इस्तीफा देकर भाजपा में आए हैं।
बीते विधानसभा चुनाव में पूर्व मंत्री डाॅ.प्रभुराम ने पूर्व मंत्री डाॅ.शेजवार के सुपुत्र मुदित शेजवार को हरा विधानसभा पहुंचे थे।

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डाॅ.शेजवार व डाॅ.प्रभुराम छह बार आमने सामने चुनाव लड़ चुके

ज्योतिर्रादित्य सिंधिया के समर्थन में भाजपा में आए डाॅ.प्रभुराम चाैधरी पूर्व मंत्री माधवराव सिंधिया के भी खास रहे हैं। माधवराव सिंधिया ने ही उनकी एंट्री राजनीति में कराई थी। एमबीबीएस डिग्रीधारक डाॅ.प्रभुराम पढ़ाई के अंतिम वर्ष ही चुनाव लड़ विधानसभा पहुंच गए थे। 1985 में एमबीबीएस अंतिम वर्ष के छात्र डाॅ.प्रभुराम ने इंदिरा गांधी हत्याकांड के बाद सहानुभूति लहर में डाॅ.शेजवार को चुनाव हराया था।
पूर्व वनमंत्री डाॅ.गौरीशंकर शेजवार भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं। कई बार विधायक रह चुके डाॅ.शेजवार प्रदेश सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। बीते विधानसभा चुनाव में अपने पुत्र मुदित को चुनाव मैदान में उतारा था लेकिन चुनाव हार गए थे।

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सांची दोनों की कर्मभूमि, कैसे देंगे एक दूसरे को रास्ता

पूर्व मंत्री डाॅ.गौरीशंकर शेजवार व पूर्व मंत्री डाॅ.प्रभुराम चौधरी पहले अलग अलग दलों में थे और परंपरागत प्रतिद्वंद्वी के रुप में सांची विधानसभा क्षेत्र में थे। लेकिन अब दोनों एक ही दल में हैं। दोनों को अपनी सियासी जमीन को एक ही दल में रहकर बचाना भी है। ऐसे में दोनों के बीच तालमेल बिठाना भाजपा के लिए एक मुश्किल भरा निर्णय होगा। राजनीति के जानकार बताते हैं कि दोनों दिग्गज नेताओं के बूथ लेवल तक समर्थक व कार्यकर्ता हैं। छोटे से छोटे चुनाव में दोनों नेताओं के समर्थक अपने अपने नेता के नेतृत्व में आमने-सामने होते रहे हैं। अब दोनों एक ही दल में हैं। दोनों में जो भी प्रभावी होगा तो दूसरे के समर्थकों का हित उससे प्रभावित होगा। ऐसे में दोनों के बीच सियासी टकराव होना लाजिमी है। भाजपा के लिए भी यह तालमेल बिठाना आसान नहीं होगा। सार्वजनिक तौर पर भले ही दोनों की मुलाकातें सुर्खियां बटोर रहीं लेकिन अपने अपने समर्थकों व अपनी-अपनी सियासत को बचाने के लिए दोनों आंतरिक रुप से आमने-सामने रहें इसमें कोई प्रश्नचिंह ही नहीं।
बहरहाल, उपचुनाव के पहले ताकत का मुजाहिरा, गुटबाजी और पाला बदलने का सियासी दांव-पेंच जारी है। भाजपा अभी बाहरी दलों से पार पाने के पहले अपने अंदर उठ रहे सियासी बवंडर को थामने में ही सारी कवायद करने में फिलहाल मंथन में लगी है।

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