scriptकभी कचरे के ढेर पर फेंका, तो कभी तेज ठंड नाली या खेत के किनारे | Sometimes thrown on a pile of garbage, sometimes on the side of a stro | Patrika News

कभी कचरे के ढेर पर फेंका, तो कभी तेज ठंड नाली या खेत के किनारे

locationराजगढ़Published: Feb 11, 2022 02:33:30 pm

Submitted by:

Bhanu Pratap Thakur

कार्रवाई सख्त न होने से बढ़ रहे मामले, 10 साल में 25 नवजात को फेंका



राजगढ़। इसे बेपरवाही कहा जाए या फिर माता-पिता की मजबूरी या फिर हेवानियत की लगातार ऐसे बच्चों की संख्या बढ़ती ही जा रही है, जो जन्म लेने के साथ ही कभी कचरे के ढेर पर मिले तो कभी तालाब किनारे या फिर खेत और नाली के किनारे पढ़े हुए नजर आए। खास बात यह है कि इन मामलों में यदि नवजात बच्चों को फेंकने की बात सामने आती है तो इनमें 80 प्रतिशत बालिकाएं ही सामने आई हैं। 25 प्रकरणों में से सिर्फ 3 प्रकरण ही ऐसे देखे गए, जिनमें बच्चों को फेंकने वाले परिजनों का भी खुलासा हुआ है। लेकिन कोई सख्त कार्रवाई ना होने के कारण नवजात बच्चों को फेंकने का सिलसिला थम नहीं रहा। पिछले 10 सालों के रिकॉर्ड को यदि देखें तो बच्चों के अधिकारों पर काम करने वाली संस्थाओं के पास जो रिकॉर्ड है। उनमें 25 नवजात बच्चों को फेंकने के प्रकार सामने आ चुके हैं। जो भी बच्चे फेंके गए उनमें से अधिकांश या तो मरे ही मिले या फि र जिंदा मिले तो कुछ समय बाद उनकी जान चली गई। बताने के लिए सिर्फ तीन ही ऐसे मामले हैं, जिनमें बच्चों की जान बची और विभिन्न निसंतान लोगों ने उन्हें शासन के नियम अनुसार गोद लिया।

वर्ष 2012 से फरवरी 2022 तक सामने आए मामले
– 2012 में ब्यावरा में बायपास रोड पर एक 1 नवजत बालिका पड़ी मिली। अभिभावक अब तक पहचाने नहीं।
– 2014 में एक तीन वर्षीय बालिका को मां जालपा मंदिर पर छोडकऱ चली अज्ञात महिला।
– 2014 में जीरापुर के पास एक निजी यात्री बस में कपड़े में लिपटी मिला नवजात।
– 2015 में राजगढ़ शहर के नागर मोहल्ले में 4 एक घर के बाहर लावारिस अवस्था में पड़ी मिली बच्ची।
– 2015 में खिलचीपुर में एक महिला ने बच्चे को दिया, बच्चे के पिता का आज तक नहीं मिला सुराग।
– 2018 में खुजनेर के कल्याखेड़ी गांव में एक थेले में पेड़ से लटका मिला।
– 2015 ब्यावरा के पास हाईवे के समीप कचरे के ढेर में पड़ा मिला नवजात।
– 2016 जून माह में जीरापुर में नाली के पास मिली बच्ची।
– 2017 दिसंबर में नरसिंहगढ़ में देवभवन के पास पड़े मिले नवजात बालिका।
– 2019 में राजगढ़ दरगाह परिसर में एक नवजात बच्ची को कोई छोड़ गया था।
– वर्ष 2018 में ब्यावरा रेलवे स्टेशन पर एक बालिका को परिजन छोड़ कर चले गए।
– वर्ष 2019 में माचलपुर के एक मेडिकल स्टोर के सामने नवजात बालिका मिली।
– 2019 लीमा चौहान थाने के पास स्थित धर्मशाला के सामने एक नवजात बालिका मिली।
– 2018 में ब्यावरा बस स्टैंड पर हांथ ठेले पर नवजात बालिका मिली।
– 2020 में जीरापुर के दौलतपुरा गांव में कुएं में तैरता मिला एक नवजात बच्चा।
– सिविल अस्पताल सारंगपुर में 24 जून 2020 में एक नवजात लडक़ी मिली।
– भेरवाखेड़ी खिलचीपुर में जून 2021 में भी एक लडक़ी मिली।
– जीरापुर के काशीखेड़ा गांव में चौकीदार के घर के सामने मार्च 2019 में एक एक नवजात बच्ची मिली।
– जुलाई 2020 में आवास कॉलोनी जीरापुर में भी इसी तरह एक नवजात लडक़ी बरामद की गई।
– जीरापुर के ही गागोरनी गुराड़ा में भी एक नवजात बालिका मिली।
– जीरापुर के दुपाडिय़ा गांव में अप्रैल 2021 में नवजात बालिका मिली।
– जनवरी 2021 में बलबट चौराहे नरसिंहगढ़ पर भी एक नवजात बालिका मिली।
– अक्टूबर 2021 सुठालिया थाना अंतर्गत आने वाले नालाझिरी में भी एक नवजात लडक़ी मिली।
– कालीपीठ रोड पर रामदेव मंदिर के पास नवंबर 2021 में एक नवजात बालिका मिली।
– हाल ही में जनवरी 2022 में खुजनेर थाना अंतर्गत आने वाले कचनारिया गांव के तालाब किनारे एक नवजात बालिका मरी हुई मिली।

सिर्फ तीन ही मामले हुए ट्रेस
इन सभी मामलों की यदि बात की जाए तो सुठालिया के नालाझिरी कि कि पुर के भैरवाखेड़ी और पचोर में पुल के नीचे मिले एक नवजात बच्ची के मामले में ही बच्चों को फेंकने वाले आरोपियों का खुलासा हो सका। इस मामले में खास बात यह है की सभी कहीं न कहीं नवजात बच्चों के परिजन ही सामने आए कभी मां तो कभी पिता और कभी दादा दादी।
अवैध संतानों का डर
यह बताना होगा कि ऐसे भी कई मामले हैं, जिनमें फेंके गए बच्चे कहीं न कहीं अवैध संतान के रूप में जन्म लेते हैं। जिसके कारण माता- पिता लाज और शर्म के कारण या तो इन्हें कहीं जिंदा फेंक देते हैं या फि र मार ही देते है।ं यह आंकड़े हैं जो कहीं ना कहीं पुलिस और बाल अधिकारों पर काम करने वाले संस्थाओं के पास दर्ज हैं। ऐसे भी कई मामले हैं जो सामने ही नहीं आते।
264 को मिलाया माता पिता से
नवजात बच्चों के साथ ही यदि 2 साल से लेकर 12 साल तक के बच्चों की यदि बात की जाए तो वह भी जिले में अनाथ रूप से मिले हैं या फिर गलती से वह राजगढ़ तक पहुंच गए। जिनमें मुंबई, दिल्ली जैसे दूर के शहरों के अलावा नेपाल से आए बच्चे भी शामिल हैं। ऐसे बच्चों की संख्या 2012 से लेकर अभी तक 264 हो गई ह।ै हालांकि ऐसे बच्चों की जानकारी एकत्रित करने के बाद सभी को उनके माता-पिता के पास महिला बाल विकास द्वारा और बाल कल्याण समिति द्वारा की गई कार्रवाई के बाद चाइल्ड लाइन के माध्यम घर पहुंचाया गया है।
दो बच्चे अभी भी शिशु गृह में
जिला मुख्यालय पर संचालित होने वाले बाल शिशु ग्रह की यदि बात की जाए तो यहां से पिछले 10 सालों में 16 बच्चों को विभिन्न माता-पिता को कानूनी कार्रवाई के बाद को दिया गया है। इसके अलावा दो बच्चे अभी भी यहां रह रहे हैं।
फैक्ट फ ाइल
– 10 साल में मिले 25 नवजात
– 4 लडक़े शेष सभी बालिकाएं
– 264 गुम हुए बच्चों को मिलाया माता पिता से
– जिले से 16 बच्चों को दिया जा चुका गोद
– 2 बच्चे अभी भी है शिशु गृह में निवासरत
– 35 बच्चे राजगढ़ के दूसरे जिलों में मिल चुके।

वर्जन। यह बात सही है कि पिछले कुछ सालों में इस तरह के मामले सामने आए हैं, लेकिन हमारी टीम, स्वास्थ्य विभाग की टीम किसी भी गर्भवती महिला की जानकारी और रिकॉर्ड पूरा रखते हैं। लेकिन कई लोग सामने ही नहीं आते और जानकारी नहीं देते कई मामलों में माता-पिता का खुलासा भी हुआ है और उनके खिलाफ प्रकरण भी दर्ज कराए गए हैं।
श्याम बाबू खरे महिला सशक्तिकरण अधिकारी राजगढ़
वर्जन। हमें जानकारी मिलने के साथ ही हम बच्चे को मौके से ले जाकर अस्पताल में भर्ती कर आते हैं। इसके बाद जो नवजात शिशु ग्रह हैं वहां पर उन्हें छोड़ा जाता है। लेकिन इसी प्रकार कुछ बच्चे ही बच पाते हैं क्योंकि जन्म लेने के बाद में फेंक देने से जो मां का दूध या फिर प्राथमिक उपचार है। वह उन्हें नहीं पाता देर हो जाने के कारण कई तरह की समस्याएं आती हैं।
मनीष दांगी चाइल्ड लाइन राजगढ़
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