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भारत सरकार देगी अंतर्राष्ट्रीय पूनम तिवारी को पुरस्कार, 8 साल की उम्र से कर रहीं संघर्ष… जानिए मशहूर कलाकार की कहानी

International artist Poonam Tiwari: माँ लोक कलाकार थी और छत्तीसगढ़ की पारंपरिक नाट्य शैली नाचा में नृत्य के साथ गीत गाया करती थीं। घर में बचपन से कलाकारी का माहौल रहा और बस 8 साल की उम्र से ही नाचा में प्रस्तुति देना शुरू हो गया था।

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Rajnandgaon News: माँ लोक कलाकार थी और छत्तीसगढ़ की पारंपरिक नाट्य शैली नाचा में नृत्य के साथ गीत गाया करती थीं। घर में बचपन से कलाकारी का माहौल रहा और बस 8 साल की उम्र से ही नाचा में प्रस्तुति देना शुरू हो गया था। (Chhattisgarh News) उम्र के पड़ाव के साथ कलाकारी का जुनून भी बढ़ता गया और कई मंचों में प्रस्तुति देते हुए पूरा जीवन कला को समर्पित हो गया। दौर ऐसा भी आया कि देश के साथ ही विदेशों में भी कला की छाप छोड़ी। कई मंचों में पुरस्कृत भी हुईं। (CG Artist) यह कहानी है अंतरराष्ट्रीय कलाकार पूनम तिवारी विराट का। कला के प्रति समर्पण भाव को देखते हुए भारत सरकार की ओर से पूनम को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से नवाजा जाएगा। राष्ट्रपति के हाथों पूनम सम्मानित होंगी।

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पूनम बचपन में दाऊ मंदराजी के नाच पार्टी में बाल कलाकार थीं। यहीं से कला मंच की शुरुआत हुई। पूनम ने बताया कि जब कलाकारी की शुरुआत की तो उस दौर में संसाधनों का बेहद अभाव था। प्रस्तुति देने के लिए बैलगाड़ी तो कभी पैदल या फिर साइकिल से सफर तय करते थे। बताया कि दुर्ग के संतराबाड़ी में एक बार नाच का कार्यक्रम था और यहां प्रस्तुति दे रहीं थीं तब प्रख्यात रंगकर्मी स्व. हबीब तनवीर भी मौजूद रहे।

यह वह दौर था जब स्व. तनवीर गांव-गांव जाकर लोक कलाकारों की तलाश कर रहे थे। संतराबाड़ी के कार्यक्रम में प्रस्तुति देखकर नया थियेटर के लिए ऑफर दिया और यहीं से दिल्ली का सफर शुरू हो गया। नया थियेटर में चरण दास चोर चर्चित नाटक में कभी रानी तो कभी दासी का रोल निभाया। अन्य नाटकों की प्रस्तुति के लिए देश के हर कोने-कोने में गए तो वहीं जर्मनी, फ्रांस, रसिया, बांग्लादेश, पेरिस, लंदन, एडिनबरा सहित अन्य देशों में लोक संस्कृति की अमिट छाप छोड़ी।

कलाकारों की सुध ले सरकार

अंतरराष्ट्रीय कलाकार पूनम की गायकी को लेकर खूब पसंद करते हैं। मंच पर थिरकते हुए गीत की प्रस्तुति देते पूनम दर्शकों की खूब वाहवाही बटोरती हैं। पूनम का कहना है कि सरकार को कलाकारों की सुध लेनी चाहिए। दरअसर ज्यादातर कलाकार पढ़े-लिखे नहीं रहते। इसलिए शासन की योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाते।
खुद की संस्था भी चला रहींपूनम ने बताया कि हबीब तनवीर के नया थियेटर से जुडऩे के बाद ही रंग छत्तीसा लोक रंग मंच संस्था का गठन कर लिया था। आज भी इस संस्था के माध्ध्यम से लोक, सांस्कृतिक और परंपरागत गीतों की प्रस्तुति देती आ रहीं हैं। राज्य सरकार की ओर दाऊ मंदराजी सम्मान भी मिल चुका है।

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