
भरी धूप में सैकड़ों किलोमीटर के सफर पर पैदल चलने के लिए मजबूर हैं मजदूर ...
अतुल श्रीवास्तव @ राजनांदगांव. महीनेभर से ज्यादा समय से चल रहे लॉकडाउन के बीच एक तस्वीर तकरीबन लगातार नजर आ रही है और वह तस्वीर है सिर में सामान ढोए और गोद में बच्चा लिए मजदूरों के पैदल चलने की। लॉकडाउन ने काम धंधा छीन लिया और ऐसी स्थिति में घर पहुंचने की ललक में मजदूर सैकड़ों किलोमीटर के सफर पर पैदल ही निकल पड़े। छत्तीसगढ़ की सीमा पर बसे राजनांदगांव में यह तस्वीर हर दिन नजर आ रही है। हाईवे पर पहरा है, ऐसी स्थिति में मजदूर गांवों की कच्ची सड़कों का उपयोग कर जिला मुख्यालय तक पहुंच रहे हैं और फिर यहां से छत्तीसगढ़ के अलग-अलग शहरों की ओर बढ़ रहे हैं।
राज्य सरकार ने राजस्थान के कोटा में मेडिकल, इंजीनियरिंग के साथ ही अन्य तरह की कोचिंग के लिए गए छत्तीसगढ़ के बच्चों को लाने के लिए बसें कोटा भेज दी हैं। तकरीबन 90 बसें कोटा पहुंच भी गई हैं और संभवत: सोमवार-मंगलवार तक बच्चे यहां पहुंच भी जाएंगे। राज्य सरकार ने इसके बाद दूसरे राज्यों में फंसे छत्तीसगढ़ के मजदूरों को लाने का फैसला लिया है लेकिन कमाने खाने गए मजदूर सारा काम ठप होने के चलते पैदल ही अपने शहरों के लिए निकल रहे हैं। मजदूरों का मजबूर होकर सैकड़ों किलोमीटर का सफर पैदल ही तय कर अपने घर लौटने का सिलसिला थम नहीं रहा है। हर दिन मुंबई, पुणे, हैदराबाद और नागपुर जैसे बड़े शहरों से लोग यहां पहुंच रहे हैं।
सबसे बुरी स्थिति अकुशल मजदूरों की
छत्तीसगढ़ से बड़ी संख्या में मजदूर दूसरे राज्य पलायन कर हर साल जाते हैं। प्रशासन के पास मौजूद आंकड़ों के अनुसार अकेले राजनांदगांव जिले से करीब 9 हजार मजदूर हैदराबाद, मुंबई, पुणे, तेलंगाना और नागपुर में फंसे हुए हैं। इनमें सबसे ज्यादा बुरी स्थिति अकुशल मजदूरों की है। जानकारी के अनुसार विभिन्न जगहों पर फैक्ट्रियों या निर्माणाधीन भवनों में काम करने वाले अकुशल मजदूरों के पास उनका बैंक खाता स्थानीय है और उनके पास एटीएम भी नहीं है। उनका राशनकार्ड उनके गांव में है। ऐसे लोगों तक चाह कर भी आर्थिक मदद नहीं पहुंचाई जा सक रही है। ऐसी स्थिति में ये मजदूर जिन जगहों पर फंसे हैं, वहां के स्थानीय प्रशासन के राहत शिविरों के माध्यम से मदद हासिल कर रहे हैं और जिन तक मदद नहीं पहुंच पा रही है वे पैदल या फिर ट्रकों में सवार होकर अपने गांव के लिए निकल रहे हैं।
'अब गांव में ही करेंगे खेती किसानी'
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से नागपुर में ठेकेदार के पास काम करने गए कुछ मजदूर अपने घर जाने शनिवार सुबह पैदल नागपुर से निकले थे और रविवार सुबह राजनांदगांव पहुंचे। 4 और 10 साल के बच्चों को मिलाकर ये मजदूर करीब 8 से 10 की संख्या में थे। इन्होंने बताया कि ठेकेदार ने काम न होने और अब और मदद नहीं कर पाने का हवाला देकर उन्हें जाने कह दिया। ऐसी स्थिति में वे पैदल ही अपने घर जाने निकल गए हैं। मजदूरों ने कहा कि बेहतर काम की आस में वे अपना घर छोड़ बाहर गए थे लेकिन अब अपने गांव में ही खेती किसानी का काम करेंगे। ज्यादा रूपए मिलने पर भी बाहर नहीं जाएंगे।
किया जा सकता है ऐसा
सरकार ने कोटा की तर्ज पर मजदूरों को लाने के लिए बसें भेजने की योजना तैयार की है लेकिन व्यावहारिक दृष्टिकोण से यह तरीका कारगर होना मुश्किल है। चूंकि मजदूर अलग-अलग जगहों पर काम कर रहे हैं और ऐसे मजदूरों का कोई निश्चित ठिकाना भी नहीं है, ऐसी स्थिति में मजदूरों को लाने के लिए संबंधित शहरों से ही छत्तीसगढ़ के लिए चलने वाली नियमित बसों को इजाजत देकर मजदूरों को उन शहरों के स्थानीय प्रशासन की स्वास्थ्य जांच के बाद बसों में यहां लाया जा सकता है। यहां लाए जाने के बाद मजदूर अपने गांव में ही क्वारेंटाइन किए जा सकते हैं और 14 दिन बाद उन्हें महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (मनरेगा) के तहत काम भी मिल सकता है।
Published on:
27 Apr 2020 09:02 am
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