जमीन के दो 2 फीट नीचे ही यह मूर्ति
बड़वा प्रकाशसिंह की पोथी और देवगढ़ राजघराने की बही के अनुसार तत्कालीन रावत जसवंत सिंह के समय जयपुर महाराजा रामसिंह और जोधपुर महाराजा बगतसिंह के बीच विवाद हो गया था। तब जयपुर की सेना व जोधपुर की सेना आपस में युद्ध के लिए नागौर की ओर पहुंची, तब जोधपुर के महाराजा ने सैनिक सहायता के लिए देवगढ़ के रावत जसवंत सिंह से अनुरोध किया। इस पर देवगढ़ से रावत जसवंत सिंह अपनी सेना लेकर नागौर पहुंचे और अपना सैन्य डेरा देशनोक करणी माता के पास डाला। उसी समय सैन्य ठिकाने पर मां करणी सफेद सांवली (चील) के स्वरूप में आकर बैठ गई तो जसवंत सिंह को चील के रूप में मां करणी के दर्शन हुए। उन्होंने प्रणाम किया और अर्ज किया कि यदि मुझ पर आप प्रसन्न हैं तो कुछ देर यहां ठहरें, इस पर चील रुकी रही। इसके बाद रावत ने विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर उन्हें देवगढ़ पधारने का भी निवेदन किया। संकेतों में उन्हें स्वीकृति मिली, इस पर देवगढ़ आकर संवत 1818 में करणी माता मंदिर का निर्माण कराया गया। इसका बड़वा प्रकाश सिंह की पोथी में मेवाड़ी भाषा में सुंदर लेख है। श्री करणी माता मंदिर की आकर्षक मूर्ति स्थापना के संबंध में वर्तमान ठिकाना देवगढ़ के वीरभद्र सिंह से प्राप्त स्व. पुजारी वैजनाथ दाधीच की ऑडियो रिकॉर्डिंग के अनुसार मां करणी ने तत्कालीन देवगढ़ शासक रणजीत सिंह को स्वप्न में दर्शन दिए। मूर्ति पुराना कंटालिया (सोजत) से लाने की बात बताई। इस पर यहां से पूरे शासकीय तामझाम लेकर घुड़सवार कंटालिया पहुंचे, किंतु वहां कोई मूर्ति नहीं मिली। इस पर वे वापस देवगढ़ रवाना होने लगे तो गांव के बाहर निकलने पर वहां एक वृद्ध महिला मिली और आने-जाने का कारण पूछा। इस पर पहले तो उन्होंने मना कर दिया, किंतु कुछ देर बाद उन्हें बुलाकर बताया कि दूर एक नीम का वृक्ष है, जिसके उत्तर में 5 हाथ दूर जगह है, वहां खुदाई करना, पहले सोमपुरा रहते थे, जो मूर्तियां बनाने का काम करते थे, वहीं आपको मूर्ति मिलेगी। इस पर कामदार लाव-लश्कर सहित पहुंचे और जमीन खोदी गई तो 2 फीट नीचे ही यह मूर्ति मिल गई, जिसे बड़ी सावधानी पूर्वक ससम्मान देवगढ़ लाकर हताई के मंदिर देवगढ़ में पधराई गई। इसके बाद 151 ब्राह्मणों के अनुष्ठान सहित वर्तमान करणी माता के मंदिर में इस मूर्ति की स्थापना विधि-विधान से की गई।
करणी माता का मूल मंदिर देशनोक
श्री करणी माता का मूल मंदिर देशनोक (बीकानेर) में है तथा इनकी मान्यता बीकानेर की संस्थापिका देवी के रूप में भी मानी जाती है। वह परम तपस्वी चारण कुलोदभव देवी थी, जो अपने जीवनकाल में ही व्यापक रूप से पूजनीय हो गई। मूल मंदिर में हजारों की संख्या में चूहे रहते हैं, करणी माता को मूल आधादेवी, मां जगदंबा के अवतार के रूप में पूजा जाता है, सांवली (चील) के प्रति रूप में मां के दर्शन होते हैं।