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आदर्श गांव बनने की राह पर है काछबली

- चार साल पहले शराब मुक्त हुआ था भीम पंचायत समिति का ये गांव

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आदर्श गांव बनने की राह पर है काछबली

आदर्श गांव बनने की राह पर है काछबली

राकेश गांधी

राजसमंद. ये सामाजिक समरसता व एकजुटता का ही परिणाम है कि भीम पंचायत समिति का गांव काछबली आज शराबमुक्त है और आदर्श गांव बनने की राह पर है। चार साल पहले 26 जनवरी 2016 को शराब और शराबियों से तंग आकर गीता, शीला व हीरा के नेतृत्व में यहां की महिलाओं ने जो आंदोलन छेड़ा, पूरे गांव को शराबमुक्त बना कर ही छोड़ा। गांव में उस समय नौ वार्डों के कुल 2886 में से 2039 मतदाताओं ने अपना वोट दिया। इसमें से 1970 मत वैध पाए गए, जिसमें से शराबबंदी के पक्ष में 1937 मत थे। इसी का परिणाम है कि आज इस गांव में न तो शराब का ठेका है और न ही अब यहां की महिलाओं व बालिकाओं को किसी तरह का भय। शराबबंदी के बाद इस गांव के हाल जानने राजस्थान पत्रिका संवाददाता जब इस गांव में पहुंचा तो गांव की महिलाओं के चेहरे पर एक अलग ही मुस्कान थी, एक आत्मविश्वास झलक रहा था। वे खुल कर बोल रही थी। उन्हें ये बताते हुए अच्छा तो लग ही रहा था, गौरवान्वित भी हो रही थी कि उनका गांव आज एक बेहतर स्थिति में है। उनके आंदोलन से इस गांव को देश में एक पहचान मिली है। आगे भी ये प्रयास जारी रहेगा।
काछबली को शराबमुक्त बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले अणुव्रती डा. महेन्द्र कर्णावट बताते हैं कि एकबारगी तो ये मसला काफी कठिन लग रहा था, लेकिन ज्यों- ज्यों गांव में शराब के खिलाफ आवाज उठने लगी, आंदोलन जोर पकडऩे लगा। सबसे अच्छी बात ये रही कि यहां की महिलाओं ने पीछे मुडऩा स्वीकार नहीं किया। जिस व्यक्ति का यहां शराब का ठेका था, उसने अपना ठेका तो छोड़ा ही, वह भी आंदोलन में शामिल हो गया। आज वह गांव को आदर्श बनाने में अपनी सरपंच पत्नी आशा का पूरी तरह साथ दे रहा है। 30 मार्च 2016 के बाद यहां वो हर अपराध प्राय: समाप्त हो गए जो शराब जनित थे।
वीरमसिंह बताते हैं तीन-चार साल में गांव में 75 फीसदी बदलाव आया है। शराब के कारण यहां पहले आए दिन हादसे होते रहते थे, आज इनमें बहुत कमी आई है। आंदोलन से पहले हुए शराब जनित हादसों के कारण गांव की 20-25 महिलाओं का सुहाग उजड़ चुका है। भूरसिंह ने कहा कि पहले मरण, परण व घर में पौत्र आदि होने पर शराब बंटती थी, अब लापसी बंटती है। काफी कुछ बदला है। गांव के ही हजारीसिंह ने कहा कि एक वो समय था जब रात को आठ बजे बाद महिलाएं घर से बाहर नहीं आती थी, अब ऐसा नहीं है। और न ही महिलाओं को प्रताडि़त होना पड़ता है। अब न लूट है न चोरी-चकारी।

अब लोग काम करने लगे हैं- सरपंच आशा
सरपंच आशा कहती है, शराबबंदी से महिलाओं की परेशानियां नहीं के बराबर रह गई हैं। पहले शराब पीने वाले काम पर जाते ही नहीं थे, आज स्थितियां बदली है। आज पूरी पंचायत में शराब की कोई दुकान नहीं है। इस पंचायत से जुड़े किसी भी गांव-वार्ड या मौहल्ले में शराब नहीं बेची जा सकती। बेचने पर तत्काल कार्यवाही होती है। आने वाले समय में ये गांव विकास के मामले में अपनी अलग पहचान बनाएगा।

आजादी सा माहौल लगता है
महिलाएं कहती हैं कि पूरे गांव में शांति है, सुकून है। एक तरह से आजादी सा माहौल है। शराब बंद होने से आधी बीमारियां तो वैसे ही खत्म हो गई। हालांकि नई पीढ़ी को बचाना अब भी जरूरी है। सीता, कमला, लीला, लक्ष्मी, मीरा, अणची देवी समेती कई महिलाओं ने हालांकि इस बात को स्वीकार किया कि कुछ लोग हैं जो बाहर से शराब लाते हैं और अपने घरों में पीते हैं। अब उनके कैसे रोका जाए? ये तो उनके खुद के विवेक पर निर्भर करेगा कि जब पूरा गांव ही शराबमुक्त है तो उन्हें भी सहयोग करना चाहिए। भावी पीढ़ी को बचाना ही होगा।

काछबली गांव
अरावली उपत्यकाओं में बसा काछबली गांव चारों ओर हरियाली से आच्छादित है। इसके ठीक पास गोरमघाट क्षेत्र है, जहां पहुंचते- पहुंचते रेल इंजन भी हाफ जाता है। करीब साढ़े तीन हजार की जनसंख्या वाले गांव में टमाटर व हरी सब्जियों की अच्छी खेती होती है। हजारी सफेद मूसली का फसल लेते हैं। एक तरह से ये गांव पूरी तरह से सरसब्ज है।