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डायन पीडि़ता को तात्कालिक राहत मिली, अब भुगत रही एकाकीपन की सजा

समाज में पहले की तरह नहीं मिल रहा सम्मान, प्रताडऩा से नहीं उबर पा रही कई पीडि़त महिलाएं

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डायन पीडि़ता को तात्कालिक राहत मिली, अब भुगत रही एकाकीपन की सजा

राजसमंद. डायन कहकर लज्जित करना, मारपीट और कुछ के शरीर से डायन निकालने के बहाने कतिपय भोपा द्वारा लोहे की साकल से बेरहमी से पीटने के मामले सामने आने पर पुलिस व प्रशासन ने तात्कालिक तौर पर न सिर्फ पीडि़ता को राहत दिलाई, बल्कि कतिपय बदमाशों को जेल की सलाखों तक भी पहुंचा दिया। कुछ को आर्थिक सहायता भी मिली, मगर गांव व समाज में पहले की तरह उन्हें न तो सम्मान मिल पाया और न ही वे अवसाद से उबर पाई है। न कोई व्यक्ति उससे बोलता है और न ही उसे सामाजिक कार्यक्रम में बुलाते। गांव व समाज के बीच रहकर भी एकाकीपन की सजा काटने को मजबूर है। इसके चलते कुछ पीडि़ताओं की बेटियों के रिश्ते टूट गए, तो किसी को बहू नहीं मिल रही है। ऐसे में वह पीडि़ता खुद को दोषी समझते घुट घुट कर जीने को मजबूर है।

डायन का दंश भुगत रही पीडि़त महिलाओं की यह स्थिति एक्शन एड दिल्ली, महिला मंच व राजसमंद जन विकास संस्था द्वारा किए गए सर्वे में सामने आई। डायन प्रथा कानून अधिनियम 2015 लागू होने के बाद थुरावड़, दिवेर के टणका, कुंभलगढ़ के ओगलाट, केलवा, खमनोर सहित जिलेभर में सात प्रकरण सामने आए। सर्वे के मुताबिक थुरावड़ व टणका में पीडि़ता को समाज में पहले की तरह जीने का अधिकार व सम्मान दिलाने के स्वयंसेवी संगठनों की विशेष बैठक हुई। कतिपय लोगों को क्षेत्रीय पुलिस थाना द्वारा पाबंद भी किया। इससे थुरावड़, टणका की पीडि़ता से कई हद तक गांव के लोग बोलने लगे, जिससे वह पहले की तरह घर से बाहर निकल रही है। कुंभलगढ़ के ओगलाट की पीडि़ता को तो घर ही छोडऩा पड़ा, जो अभी उदयपुर में किराए का मकान लेकर गुजर बसर करने को मजबूर है। इसके लिए एक्शन एड व महिला मंच द्वारा भी प्रयास किए, मगर सफल नहीं हो पाए। कुछ ऐसी ही स्थिति अन्य डायन पीडि़त महिलाओं की बनी हुई है।

पूर्व कलक्टर की दखल से राहत
डायन प्रताडऩा की शिकार महिलाओं व उनके परिवार को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए पूर्व कलक्टर आनंदी द्वारा खास प्रयास किए गए। कुछ पीडि़त परिवार के सदस्यों को नरेगा के तहत मेट बनाया। साथ ही ग्राम पंचातय की बैठकों में पीडि़त महिलाओं को बुलाने की व्यवस्था की गई, जिससे कुछ पीडि़ताएं फिर से गांव व समाज के सामने आई।

नियमित निगरानी नहीं
डायन प्रताडऩा के बाद पीडि़ता को तात्कालिक राहत को पुलिस व प्रशासन से मिल रही है, मगर कई पीडि़ताएं समाज की मुख्यधारा से कट गई। खुद को दोषी मान रही है। न कोई बोलता, न मदद करता। गांव, समाज के बीच में रहकर भी एकाकी जीवन जी रही है। इस हालात से अवगत कराने के बाद पुलिस, प्रशासन द्वारा भी मदद की गई, जिससे कुछ को राहत मिली और कई अब भी इसी प्रताडऩा से गुजर रही है।
शकुंतला पामेचा, संयोजिका महिला मंच राजसमंद