जिले के खमनोर ब्लॉक मुख्यालय और सेमा ग्राम पंचायत में इन दिनों किसान ऐसी आफत से जूझ रहे हैं, जिसकी कल्पना तक उन्होंने नहीं की थी।
राजसमंद. जिले के खमनोर ब्लॉक मुख्यालय और सेमा ग्राम पंचायत में इन दिनों किसान ऐसी आफत से जूझ रहे हैं, जिसकी कल्पना तक उन्होंने नहीं की थी। बारिश और मौसम की मार तो वे वर्षों से सहते आए हैं, लेकिन इस बार मुसीबत का नाम है – सूअरों का आतंक। दिन-रात खेतों में मेहनत कर बोई गई मक्का, ज्वार, गन्ना और खरीफ की अन्य फसलें सूअरों के झुंड बर्बाद कर रहे हैं। कहीं पौधे खाए जा रहे हैं, तो कहीं उन्हें रौंदकर मिट्टी में मिला दिया जा रहा है। किसानों की हालत इतनी खराब हो गई है कि लागत निकालना भी मुश्किल हो गया है।
खेतों में इस समय हरी-भरी फसलें लहलहानी चाहिए थीं, लेकिन हकीकत इसके बिल्कुल उलट है। खेतों में टूटे-बिखरे पौधे और मिट्टी में दबे हुए मक्का के पौधे मायूसी का मंजर बना रहे हैं। किसान रात को पहरा देने की कोशिश करते हैं, लेकिन जंगली जानवरों और सांप-बिच्छुओं के डर से पूरी तरह खेतों की रखवाली कर पाना संभव नहीं हो पाता।
सेमा और आसपास के किसानों का कहना है कि—
ग्रामीणों का कहना है कि पंचायत और प्रशासन को कई बार शिकायतें दी गईं, लेकिन न तो कोई अभियान चलाया गया और न ही मुआवजे की कोई पहल हुई। किसानों ने साफ कहा— अगर प्रशासन इस समस्या का हल नहीं करता तो वे आगे खेती करना छोड़ देंगे। सिर्फ फसलें ही नहीं, बल्कि खेती का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।
सूअरों ने हमारी मेहनत पर पानी फेर दिया है। दिन में खेत संभालते हैं और रात को पहरा देते हैं, फिर भी ये नहीं भागते। मेरी एक बीघा में खड़ी फसल बर्बाद हो गई है।
उदयलाल माली, सेमा
रात को सूअरों के झुंड खेतों पर टूट पड़ते हैं। शोर मचाने पर भी असर नहीं होता। आधा बीघा में खड़ी फसल रौंद दी गई। आखिर कब तक खेतों में डेरा डालकर रखवाली करेंगे?
तुलसीराम माली, सेमा
मैंने मक्का की बुवाई पर 15 हजार खर्च किए, लेकिन आधी फसल सूअर खा गए। खेत में सिर्फ टूटे पौधे बचे हैं। प्रशासन कोई मदद नहीं कर रहा।
वरदीचंद माली, सेमा
कई बार शिकायत दी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। एक ही रात में मेरी आधी बीघा मक्का की फसल खत्म कर दी। अब हम क्या करें?
भागीरथ, सेमा
ग्रामीणों ने प्रशासन से दो टूक कहा है कि