
सरकारी स्कूल में ऑडियो स्टोरी कॉर्नर, पत्रिका फोटो
Audio story corner in government school: स्कूल की किताबें पढ़ने में कमजोर रहने वाले बच्चे अक्सर हीन भावना के शिकार होकर पढ़ाई से दूरी बना लेते हैं। लेकिन राजसमंद जिले में नेगड़िया के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में पुस्तकालयाध्यक्ष नवीन छापरवाल ने एक ऐसा तरीका निकाला है, जिसने बच्चों को किताबों से फिर दोस्ती करवा दी है। उनके इस छोटे से लेकिन असरदार प्रयोग ने सरकारी स्कूलों में भी शिक्षा को संवादात्मक और बच्चों की रुचि के अनुकूल बनाने की मिसाल पेश की है।
विद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ. घनश्याम सिंह राठौड़ ने इस पहल को ‘पुस्तकालय के पन्नों में आवाज़ का संचार’ बताया। उन्होंने कहा कि अब हमारी लाइब्रेरी किताबों की अलमारी नहीं, बच्चों के विचारों और कल्पनाओं का मंच है। उन्होंने लाइब्रेरियन छापरवाल के इस प्रयोग को ‘सरकारी स्कूलों के लिए प्रेरणादायक मॉडल’ करार दिया।
इस अनोखे प्रयोग के लिए महज़ 1500 रुपये में एक हेडफोन और जरूरी सामान जुटाया गया। मोबाइल पर कहानियां रिकॉर्ड की गईं, ऑनलाइन ऑडियो लाइब्रेरी से सामग्री ली गई और बच्चों को अपनी कहानियां रिकॉर्ड करने का मौका भी दिया गया। बच्चों को अब नानी-दादी की कहानियों जैसी आवाज़ों में कहानियां सुनने को मिल रही हैं।
कक्षा 6 की नेहा कहती है कि ऐसा लगता है जैसे नानी मेरे पास बैठकर कहानी सुना रही हों। अब मैं रोज़ नई कहानी सुनती हूं। कक्षा 8 के देवराज ने ‘सफेद हिरणी’ कहानी सुनकर बताया कि अब मुझे लगता है कि कहानियां किताबों में ही नहीं, आवाज़ों में भी जिंदा रहती हैं।
छापरवाल ने अपने स्कूल की लाइब्रेरी के एक कोने को ‘ऑडियो स्टोरी कॉर्नर’ में बदल दिया। बस एक मोबाइल, एक हेडफोन और कुछ पोस्टरों के साथ इस कोने ने बच्चों की दुनिया बदल दी। अब वही बच्चे, जिन्हें किताब के पन्ने डराते थे, कहानियाँ सुनने के लिए लाइब्रेरी की तरफ दौड़ पड़ते हैं। कहानी सुनते-सुनते न केवल उनका आत्मविश्वास बढ़ रहा है बल्कि उनकी कल्पनाएँ भी पंख लगा रही हैं।
पढ़ने में कमजोर बच्चों के लिए सुनकर सीखने का अवसर
अपनी कहानियां रिकॉर्ड कर खुद को अभिव्यक्त करने का मंच
भाषा कौशल और कल्पनाशक्ति का विकास
विदेशी मॉडल से सीखी प्रेरणा, गांव के स्कूल में अमल: नवीन छापरवाल ने फ्रांस के स्ट्रासबर्ग में डिजिटल लाइब्रेरी मॉडल देखे थे। उन्होंने महसूस किया कि सरकारी स्कूलों में किताबों को बच्चों के करीब लाने के लिए यह तरीका कारगर हो सकता है। फिर क्या था-छोटी सी शुरुआत ने गाँव के स्कूल में उम्मीद की नई रोशनी जला दी।
नेगड़िया की यह छोटी सी पहल दिखाती है कि शिक्षा में बड़ा बदलाव करने के लिए लाखों रुपये खर्च करने की जरूरत नहीं। थोड़ी सी रचनात्मकता, शिक्षक का समर्पण और बच्चों के प्रति प्यार ही काफी है। यह कोना सिर्फ कहानियां सुनाने की जगह नहीं, बच्चों के सपनों को आवाज़ देने का मंच है।
Published on:
26 Jul 2025 11:35 am
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