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किसी ने हित में तो किसी ने किसान विरोधी बताया

- कृषि विधेयकों पर मिलीजुली प्रतिक्रिया

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किसी ने हित में तो किसी ने किसान विरोधी बताया

किसी ने हित में तो किसी ने किसान विरोधी बताया

राजसमंद. केन्द्र सरकार द्वारा हाल ही में लाए गए कृषि विधेयकों को लेकर आम किसानों में अभी मिलाजुला माहौल है। कुछ किसान ये अभी तक नहीं समझ नहीं पाए हैं कि उन्हें फायदा होगा या नुकसान। इस संबंध में मंगलवार को जिले के किसानों व जनप्रतिनिधियों से बात की तो अधिकतर किसानों व सांसद ने इसे किसान हित में बताया, वहीं कांग्रेस जनों ने इसे किसान विरोधी बताया। प्रस्तुत है उनके विचार-

किसानों को लाभ होगा
केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए कृषि विधेयक से पूरे देश के आम किसानों को लाभ मिलेगा। विधेयक के माध्यम से किसानों को अपनी उपज का अधिकतम मूल्य प्राप्त होगा। कृषि विधेयक किसानों के हित में है।
- लहरीलाल कुमावत, किसान, जोधपुरा


खरीदार संस्था भी पंजीकृत हो
विधायक किसान के हित में है, लेकिन एमएसपी से खरीदारी होनी चाहिए। हर जिले में कृषि न्यायालय खुलना चाहिए। किसानों से ऊपर खरीदने वाली संस्था पंजीकृत होनी चाहिए। इस अध्यादेश में किसान की परिभाषा में कॉरपोरेट कंपनियां भी आ रही है, जो कि गलत है। यदि ऐसा होता है तो हम इस विधेयक के खिलाफ है, आवाज बुलंद करेंगे।
- मोतीसिंह रावत, कृषक, भीम

किसानों को आजादी मिलेगी
मोदी सरकार के कृषि विधेयक से किसानों को कई प्रकार के लाभ होने की बात की जा रही है। किसानों को मंडी से बाहर फसल बेचने की आजादी मिलेगी। किसान बाजार भाव के दाम भी पा सकेंगे। एमएसपी में वृद्धि होने से आय में वृद्धि होना भी तय है। कोरोना काल में किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर हो, इसके लिए सरकार को उचित निर्णय करने ही चाहिए।
- नवलसिंह राजपूत, सिरोही की भागल गांवगुड़ा

किसान विरोधी है ये विधेयक
केन्द्र सरकार के ये कृषि विधेयक स्पष्ट तौर पर किसान विरोधी है। इन विधेयकों से कतिपय लोगों को ही फायदा पहुंचने वाला है। किसान बंधकर रह जाएंगे। इस बिल के विरोध में हाल ही में केन्द्र की ही एक मंत्री ने इस्तीफा दिया है। ये बात घोर करने लायक है। कुछ लोगों या संस्थानों के फायदा के लिए ये विधेयक लाया जा रहा है। इससे किसानों का संरक्षण खत्म हो जाएगा।
- सुदर्शनसिंह रावत, विधायक

एमएसपी को खत्म करने का प्रयास
केन्द्र सरकार ये विधेयक लाकर एमएसपी को धीरे-धीरे खत्म करने का प्रयास कर रही है। छोटे-मझले किसान साहूकारों के चक्रव्यूह में फंस कर रह जाएंगे। बड़े किसानों को भले ही कुछ फायदा हो जाए, पर आम किसानों की आजादी खत्म हो जाएगी। कौन देगा ज्यादा पैसा किसानों को, जरा सोचकर तो देखो। सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए।
- देवकीनंदन गुर्जर, जिलाध्यक्ष, कांग्रेस

पहली बार है किसी सरकार ने किसान के दर्द को पहचाना
यह पहली बार हुआ है जब कोई पार्टी अपने घोषित मेनिफेस्टो के अनुरूप विधेयक ला रही है। कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों की घबराहट जायज है। जब वोट बैंक खिसकने लगता है तो ये विरोध की राजनीति पर उतर आते हैं। यह भी पहली बार हुआ है जब किसी सरकार ने किसानों के दर्द को पहचाना है। राज्य की कांग्रेस सरकार बिल के विरोध में सरकारी स्तर पर गोपनीय तरीके से केंद्र सरकार के विरुद्ध किसानों को भड़काने की साजिश रची जा रही है, जो निंदनीय है। रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि का निर्णय आभार योग्य है। न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली बरकरार रहेगी और सरकार फसल खरीदती रहेगी तो इसके बाद विपक्ष के पास कहने को कुछ भी नहीं बचता है। विपक्ष किसानों को बरगलाना बंद करे।
- दीयाकुमारी, सांसद व भाजपा की प्रदेश महामंत्री

समर्थन मूल्यों में वृद्धि कर सरकार ने दिखाई अपनी प्रतिबद्धता
विधायक किरण माहेश्वरी ने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा गेहूं, धान एवं दलहनों के समर्थन मूल्यों में वृद्धि कर समर्थन मूल्यों की व्यवस्था के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई। गेहूं के समर्थन मूल्य वर्ष 2013-14 में 1350 रुपए से बढ़ा कर अब 1975 रुपए प्रति क्विंटल किए गए है। इसी प्रकार ज्वार के मूल्य 2013-14 में 1500 रुपए से बढ़ाकर 2620 रुपए, बाजरा के 1250 रुपए से बढ़ाकर 2150 रुपए और मक्का के 1310 रुपए से बढ़ा कर 1850 रुपए किए गए हैं। उन्होंने कहा कि समर्थन मूल्यों पर खरीदी की पूरी व्यवस्था भारतीय खाद्य निगम एवं सहकारी संस्थाओं के माध्यम से संचालित होती है। केन्द्र ने समर्थन मूल्यों में ही वृद्धि नहीं की है, बल्कि इसमें खरीदे जाने वाले कृषि उत्पादों की मात्रा में भी लगभग तीन गुणा वृद्धि की है।