
प्रतिस्पर्धा के बजाए अच्छे जीवन के बारे में सोचें
राजसमंद. कोरोना को लेकर बन रहे भय के माहौल को लेकर मनोचिकित्सक हैरान हैं। उनका कहना है कि इतना भयभीत या विचलित होने के बजाए अपनी जिन्दगी को संयम, प्रेमभाव व बिना प्रतिस्पर्धा व अच्छे कामों में व्यस्तता के साथ गुजारनी चाहिए, न कि डर-डरकर। उन्होंने सोशल डिस्टेंसिंग के बजाए फिजिकल डिस्टेंस रखने पर जोर दिया।
उल्लेखनीय है कि मार्च से लेकर अब तक आत्महत्याओं व अन्य अपराध की संख्या भी बढ़ी है। इसका कारण कोरोना ही नहीं है, बल्कि विषम हालात के बावजूद अधिक पैसे कमाने की चिंता, हर समय प्रतिस्पर्धा के बारे में सोचते रहना भी हमारी दिमागी अशांति का कारण है। ऐसे में इंसान गलत कदम उठाने लगता है। इस कोरोना काल में इंसान के खर्चे घटे हैं। कई तरह की खरीद नहीं के बराबर हो रही है। ऐसे में हर तरह के व्यापार का घटना स्वाभाविक है। ऐसे में हमें भी अपनी जिन्दगी को कम में बेहतर तरीके से जीने के बारे में सोचना चाहिए। राजस्थान पत्रिका ने इस संबंध में कुछ प्रमुख मनोचिकित्सकों से बात की। प्रस्तुत है प्रमुख अंश-
ये आत्मावलोकन का अवसर है
इन दिनों लोग न्यूज के साथ ही सोशल मीडिया पर भी केवल कोरोना से जुड़ी बातों का आदान-प्रदान कर रहे हैं। कुल मिलाकर हिप्नोसिस (आत्म-सम्मोहन) का माहौल है। हमें बेहतर माहौल बनाने वाली बातों पर ध्यान देना चाहिए। कोरोना के कारण हमें आत्मावलोकन का अवसर मिला है। इसमें हर कोई मर रहा है, चाहे बड़ा हो या छोटा, सब बराबर हैं। जिसने भी जरा सी लापरवाही या असावधानी की, उसे भुगतना पड़ा है। हम जिन्दगी को गलत तरीके से जीते आए हैं, इसलिए हमें अब मौत का भय सता रहा है। अत: हमें प्रतिस्पर्धा से दूर रहकर बेहतर जिन्दगी के बारे में सोचना चाहिए। हम इन दिनों आर्थिक बातों की तरफ ज्यादा ध्यान देने लगे हैं। इससे दिमाग में अशांति पैदा हो रही है। कोरोना ने हमें अपने मन को टटोलने का अवसर दिया है। सही रास्ते पर चलने व प्रेम से रहने की जरूरत है, न कि कोरोना से डरने की। अपनी देखभाल जरूर करो, पर डरने की जरूरत नहीं है। अपने जीवन को अच्छे से जीएं, जो अब तक नहीं जी रहे थे, जिससे मानसिक शांति बनी रहे। जीने के नए तरीके ढूंढे, जहां मोह, क्रोध, प्रतिस्पर्धा, मारकाट न हो। आगे जरूर बढ़ें, पर किसी को तकलीफ देकर नहीं। ये सारे अच्छे गुण सीखने का अवसर मिला है। प्रकृति ने तो कोरोना के जरिए केवल ये आइना भर दिखाया है कि प्रतिस्पर्धा या विषम माहौल में लोगों में किस बात के लिए ये भागदौड़ मची है। जब तक सबकुछ सामान्य नहीं हो जाता, धीरज व निडरता के साथ काम करने की जरूरत है। कोरोना को सही परिप्रेक्ष्य में लेते हुए हमें जीवन को अच्छे से जीने के बारे में सोचना चाहिए। जितना इससे भयभीत रहेंगे, हमारी इन्यूनिटी कमजोर होगी।
- डा. सुशील खेराड़ा, वरिष्ठ मनोचिकित्सक
डर, निराशा, चिन्ता अच्छी बात नहीं, खुश रहें
कोरोना काल में डर, निराशा, चिन्ता एवं तनाव हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यून सिस्टम) को कमजोर कर रहा है। डर, निराशा, चिन्ता एवं तनाव के बने रहने से हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आती है। अत: इस माहौल में व्यक्ति को शारीरिक दूरी (फिजीकल डिस्टेंस) बनाकर रखनी चाहिए। डर, निराशा, चिन्ता एवं तनाव को दूर करने के लिए सामाजिक अन्तक्र्रिया की जरूरत होती है। बेवजह कोरोना से सम्बन्धित नकारात्मक बातों से बचने की जरूरत है। व्यक्ति खुश रहकर अपनी प्रतिरोधक क्षमता (इम्यून सिस्टम) को सुदृढ़ बना सकता है। हालांकि कोरोना को हल्के में लेने की जरूरत नहीं है। बिना वजह आए-जाएं नहीं। पर बिना बात चिंता की जरूरत नहीं है। हमें काम में बने रहने की जरूरत है। आप घर पर रहते हुए समय का सदुपयोग कर सकते हैं। क्वालिटी टाइम का सदुपयोग करें। इस कोरोना काल में सबसे अच्छी बात ये हुई है कि जिनके बच्चे बाहर रहकर पढ़ रहे थे, वे आज अपने पेरेन्ट्स के पास रहकर पढ़े रहे हैं। ऐसे में परिवार में खुशी का माहौल होना चाहिए, न कि भय का। ये माहौल सम्भल कर रहने का है, न कि दु:खी होकर जीने का।
- डॉ. अजय कुमार चौधरी, सह-आचार्य- मनोविज्ञान विभाग, राजकीय मीरा कन्या महाविद्यालय
Published on:
24 Sept 2020 09:01 pm
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