
Rain Effect on Road
राजसमंद. खमनोर क्षेत्र के मचींद के शांत पहाड़ों ने रविवार रात जो तूफान पाला, उसने सोमवार सुबह पूरे गांव को बर्बादी के मंजर के हवाले कर दिया। आसमान से गिरी मूसलाधार बारिश ने जब पहाड़ों की ढलानों से होकर गांव का रुख किया तो अपने साथ पत्थर, कीचड़ और तबाही का सैलाब ले आई। मंगलवार सुबह जब बादल छंटे और सूरज निकला तो गांववालों की आंखों के आगे अपनी ही बस्ती किसी जख्मी बदन की तरह पड़ी थी। कहीं कच्ची दीवारें जमींदोज तो कहीं पक्के मकान छतविहीन। खेतों में धान-गेहूं की जगह मलबे की परत बिछी थी, तो रास्ते की जगह गहरे गड्ढे उभर आए थे।
मचींद के गौरव राणा पूंजा चौक पर हर साल मेला लगता है, लोग दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं, लेकिन इस बार पहाड़ी पानी ने इस ऐतिहासिक स्थल को भी नहीं बख्शा। चौक की हेरिटेज जैसी दीवार का बड़ा हिस्सा पानी में बह गया। मेला स्थल अब पत्थरों की बिछी चादर जैसा दिख रहा है, जहां कदम रखना भी मुश्किल हो गया है।
गांव की डामर सड़कें पहली ही बारिश में उखड़ गईं। कई जगहों पर कंक्रीट सड़कों के नीचे की मिट्टी ही बह गई। अब ऊपर पक्का रास्ता है, नीचे खाई!मचींद की मुख्य सड़क हो या गली-मोहल्ले की पगडंडियां, जगह-जगह सड़क का नामोनिशान मिट गया। पानी के तेज बहाव ने दो छोटी पुलियाओं को भी बहा दिया जो पुलियाएं लोगों को जोड़ती थीं, अब वहां सिर्फ टूटी-फूटी ईंट-पत्थर पड़े हैं।
तेज बहाव की चपेट में दो कारें आ गईं। लहरों ने गाड़ियों को घसीटकर दूर खेतों में पटक दिया। ग्रामीणों ने देखा तो चकित रह गए। जिन कारों में कल बच्चे स्कूल जाते थे, वो अब मिट्टी में धंसी पड़ी हैं।
किसानों के लिए यह बारिश किसी अभिशाप से कम नहीं। खेतों में मिट्टी की उपजाऊ परत ही बह गई। कई जगह 10 से 15 फीट गहरे गड्ढे पड़ गए। खेत की जगह अब वहां कुएं जैसे खड्डे नजर आ रहे हैं। आने वाली फसल का सपना भी इन खड्डों में दफन हो गया है।
तेज पानी के बहाव में बिजली के खंभे भी उखड़ गए। गांव के कई हिस्सों में अंधेरा पसर गया है। अब बिजली कब लौटेगी, इस पर कोई कुछ नहीं कह पा रहा।
गांव में राजकीय मदों से बनाए गए कई छोटे-बड़े विकास कार्य इस जलजले में जमींदोज हो गए। गांव वालों का कहना है- सालों बाद सड़कें बनी थीं, पुल बने थे, लेकिन सब मिट्टी हो गया।
तबाही के बाद गांव के लोग राहत और मुआवजे की आस में पंचायत और प्रशासन के चक्कर काट रहे हैं। देवीलाल, मथुरालाल, प्रभुलाल, और कई किसानों ने प्रशासन से अपील की है कि टूटे रास्तों को जल्द सुधारा जाए और नुकसान का मुआवजा दिया जाए।
गांव के बुजुर्ग कह रहे हैं। "पहाड़ों का पानी हर साल आता है, पर इतनी तबाही कभी नहीं देखी।" लोग सवाल कर रहे हैं नाले और पानी की निकासी के इंतजाम क्यों नहीं हुए?, मेला स्थल को सुरक्षित रखने की योजना कहां गई् और खेती का नुकसान कौन भरेगा?
Updated on:
16 Jul 2025 02:19 pm
Published on:
16 Jul 2025 02:12 pm
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