राजसमंद

जहां देवता करते हैं सभा, न्याय की गद्दी पर बैठते हैं स्वयं नीलकंठ महादेव

जिले की पर्वत श्रृंखलाओं और हरे-भरे खेतों के बीच खमनोर क्षेत्र के छोटे भाणुजा गांव में एक ऐसा स्थान है जहां आस्था सिर्फ सिर झुकाने की नहीं, बल्कि आंखों से साक्षात ईश्वर को न्याय करते देखने की अनुभूति भी देती है।

2 min read
Neelkanth Mahadev

राजसमंद. जिले की पर्वत श्रृंखलाओं और हरे-भरे खेतों के बीच खमनोर क्षेत्र के छोटे भाणुजा गांव में एक ऐसा स्थान है जहां आस्था सिर्फ सिर झुकाने की नहीं, बल्कि आंखों से साक्षात ईश्वर को न्याय करते देखने की अनुभूति भी देती है। यह है नीलकंठ महादेव का शिव पंचायतन मंदिर, जो सघन हरियाली और निर्जन शांति के बीच अपनी एक अलग ही दुनिया बसाए बैठा है। यहां प्रवेश करते ही लगता है जैसे कदम किसी देव सभा में पड़ गए हों-चारों ओर देवी-देवताओं की बैठक और उनके बीच मध्य आसन पर स्वयं आशुतोष नीलकंठ महादेव-मानो पंच परमेश्वर की अदालत लगती हो। चारों दिशाओं में भगवान श्रीगणेश, मां महिषासुर मर्दिनी, सूर्यदेव, भगवान विष्णु और अन्नपूर्णा माता अपने-अपने गर्भगृह में विराजमान हैं और सबकी नजरें मध्य में स्थित स्वयंभू शिवलिंग पर टिकी हैं।

कलात्मक शिखर और पहरेदार देवता

मुख्य प्रवेश द्वार पर जैसे ही आप कदम रखते हैं, दोनों ओर वीर हनुमानजी और कालभैरव अपने दिव्य भाव में खड़े नजर आते हैं। मानो कह रहे हों कि यह अदालत खुली तो है, लेकिन न्याय के दरवाजे पर हर पाप का पहरा भी है। मंदिर की दीवारें, पत्थर और शिखर स्थापत्य कला की ऐसी कहानी कहते हैं, जो किताबों से नहीं बल्कि पत्थरों की दरारों से झांकती है। शिवलिंग के नीचे जलधारी को जोड़ने का तरीका इसे स्वयंभू सिद्ध करता है। अलग प्रकृति के पत्थर और उस पर सजे शिव का चिन्मय रूप भक्तों को ठहरकर देखने को विवश कर देता है।

पांडवों की छाप और सदियों पुरानी गवाही

यह सिर्फ मंदिर नहीं, महाभारत काल की एक अमर छाया है। स्थानीय जनश्रुति बताती है कि पांडवों ने अपने वनवास के दौरान इस स्थल को तपस्या और शिव आराधना के लिए चुना था। कहते हैं उन्हीं ने पंचदेवों के साथ इस पंचायतन की नींव रखी थी। विक्रम संवत 1432 में यहां बड़ा जीर्णोद्धार हुआ, जो आज भी पुरानी दीवारों और कुछ शिलालेखों में झलक जाता है। गांववालों ने 2011 में एक बार फिर इसे सजाया-संवारा और इसकी पुरानी गरिमा को नया जीवन दिया।

पूजा, श्रृंगार और रक्षाबंधन का अद्भुत प्रसंग

नीलकंठ महादेव की पूजा में नियम और भाव का ऐसा मेल है जो हर भक्त को बंधे रहने को मजबूर करता है। सुबह जलाभिषेक, बिल्वपत्र, पुष्प और चंदन — शाम को भस्म, दीप और मंत्रोच्चार। वैशाख और श्रावण मास आते ही यहां तीनों पहर विशेष पूजा होती है। सोमवार को भोलेनाथ को अनोखे श्रृंगार में सजाया जाता है। कभी सौम्य भोलेनाथ, तो कभी रौद्र रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं। रक्षाबंधन पर यहां एक अद्भुत परंपरा है। गांव में सबसे पहले राखी महादेव को बांधी जाती है। मान्यता है कि भोलेनाथ रक्षा सूत्र बांधने के बाद ही घर-घर भाई-बहन एक-दूसरे को राखी बांधते हैं। यह परंपरा बताती है कि इस पंचायत के न्यायाधीश सिर्फ देवताओं के नहीं, गांववालों के भी संरक्षक हैं।

आस्था का स्तंभ, न्याय की चौखट

गांव के बुजुर्ग कहते हैं कि यहां कोई काम बिना नीलकंठ महादेव की अनुमति के शुरू नहीं होता — खेत की जुताई हो या नए घर की नींव, नौकरी ज्वाइन करनी हो या कोई व्यापार-सब महादेव की अदालत से आज्ञा लेकर ही शुरू होता है। जब यहां की घंटियां गूंजती हैं तो पूरा वातावरण शिवमय हो उठता है, जैसे पूरा गांव महादेव की सभा में बैठा हो।

Published on:
11 Jul 2025 12:28 pm
Also Read
View All
Success Story: कंटेंट क्रिएशन ने बदल दी राजस्थान के रमेश चौहान की जिंदगी, सिविल इंजीनियर से बन गए इन्फ्लुएंसर, आज हो रही मोटी कमाई

रेलवे विकास को लेकर सांसद महिमा कुमारी मेवाड़ की केंद्रीय रेल मंत्री से शिष्टाचार भेंट ट्रेनों के ठहराव और यात्री सुविधाओं पर हुई विस्तृत चर्चा

किसानों को बड़ी राहत: राजसमंद में फूलगोभी और आम को मिला फसल बीमा सुरक्षा कवच, मौसम की मार से अब नहीं टूटेगा किसान

विज्ञान का प्रश्न-पत्र 3, सामाजिक विज्ञान का 4 खंडों में होगा

एसआईआर से बदलेगा राजसमंद का सियासी गणित, 73,984 नाम होंगे बाहर, अकेले राजसमंद विधानसभा में सबसे अधिक 20,880 मतदाता प्रभावित

अगली खबर