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साल में य​हां सिर्फ एक बार महाअष्टमी को खुलती है मां के मंदिर में खिड़की, दिन में तीन बार रूप बदलती हैं माता

- 418 वर्ष पहले हुआ था मंदिर का निर्माण, मंदिर में रहकर ही पुजारी 9 दिन करते हैं पाठ

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रतलाम। जिले के सेजावता में करीब 418 वर्ष पहले बने नवदुर्गा मंदिर के पश्चिम दिशा की खिड़की साल में सिर्फ एक दिन नवरात्र पर महाअष्टमी को खुलती है। मान्यता है कि इस दिन माता स्वयं यहां आती हैं। यही नहीं नवरात्र के समय दिन में तीन बार मां अपना रूप भी बदलती हैं। सुबह कन्या, दिन में षोडशी तो संध्या के समय मां के स्वरूप में नजर आती हैं।

खिड़की का इतिहास
मंदिर के पुजारी महंत कैलाश गिरी गोस्वामी ने बताया, मान्यता के अनुसार मठ में एक चमत्कारी खिड़की है जो पश्चिम दिशा में है। यह खिड़की साल में एक बार अष्टमी के दिन ही खुलती है। इस दिन देवी माता खिड़की से हवन की आहूति लेती हंै। 11 पंडित एवं आचार्य योगेश महाअष्टमी को हवन कराते हैं। हालांकि नौ दिन तक यहां विद्वान पुजारी माता का पाठ करते हैं। यहां पाठ करने वाले पंडित नौ दिन तक मठ में ही सिर्फ फलाहार पर रहते हैं।

1660 में हुआ था निर्माण
मंदिर की स्थापना रतलाम रियासत के पूर्व महाराजा रतनसिंह के समय हुई थी। इस मठ और मंदिर का निर्माण विक्रम संवत 1660 के पहले होना बताया गया है। मठ का निर्माण महामण्डलेश्वर सेजगिरी, गंगागिरी, निपाण गिरी ने किया था। सेजगिरी के नाम से इस गांव का नाम सेजावता पड़ा, जिसे जोगीवाला सेजावता कहते हैं। रतलाम में जब महाराजा रामसिंह थे, उस समय उन्होंने महंत गंगागिरी के सहयोग से बावड़ी व एक तालाब का निर्माण करवाया था, जो अति दार्शनिक है। उस समय के बावड़ी पर शिलालेख लगा हुआ है।

इस गांव को जोगियों वाला सेजावता के नाम से भी जाना जाता है। यहां इन महापुरूषों की समाधियां बनी हैं। रतलाम के महाराजा रामसिंहजी ने उस समय यहां एक भव्य बावड़ी और तालाब का निर्माण कराया था, जो देखरेख के अभाव में इन दिनों जीर्ण-शीर्ण हैं। उस समय का शिलालेख आज भी बावड़ी पर विद्यमान है। इस प्रसिद्ध प्राचीन ऐतिहासिक, चमत्कारी मंदिर पर नवरात्र में प्रतिदिन सुबह से रात तक भक्तों का तांता लगा रहता है। महाअष्टमी के दिन यहां नौ पंडितों के आचार्यत्व में हवन होता है। नौ दिन तक पुजारी मंदिर में ही रहते हैं। मंदिर प्रांगण में बालिकाएं, युवतियां और महिलाएं गरबा करती हैं।