
Diwali Special: Goddess Mahalaxmi Vishnu is seated on Sheshnag VIDEO
रतलाम. दीपावली पर मां लक्ष्मी के पूजन का विशेष महत्व होता है। वैसे तो जिले में माता महालक्ष्मी के अनेक मंदिर है, लेकिन यह देवस्थान थोड़ा अलग है। भूमि की सतह से 150 फीट नीचे पहाड़ों में गुफा के करीब शेषनाग पर माता महालक्ष्मी विष्णु सहित है। इतना ही नहीं, ध्यानमग्न भैरव से लेकर रिद्धी सिद्धी के दाता भगवान विनायक भी पहाड़ों पर है।
रतलाम से करीब 50 किमी दूर सैलाना विकासखंड अंतर्गत कोटड़ा गांव जहां समाप्त होता है, वही से इस दुर्लभ स्थान पर जाने का मार्ग शुरू होता है। मान्यता है कि देवता खुद इस स्थान पर आया करते थे। इतना ही नहीं ऋषि मुनि यहां पर तप करते थे और तपस्या के दौरान ही उन्होंने अपने नाखूनों से यहां चट्टानों पर देवी देवताओं की प्रतिमाओं को उकेरा है। जिनमें सृष्टि के पालनहार कहे जाने वाले भगवान विष्णु आराम की मुद्रा में शेषनाग पर लेटे नजर आते हैं तो पास ही मां लक्ष्मी विराजमान हैं। ग्रामीणों के अनुसार जमीन से करीब 150 फीट नीचे स्थित इस स्थान पर पहली बार मीडिया के रुप में https://www.patrika.com/ratlam-news/ पहुंचा है।
देवझर कहलाता है स्थान
रतलाम जिले से करीब 50 किलोमीटर दूर मध्यप्रदेश और राजस्थान की बॉर्डर पर जमीन से करीब 150 फीट और नीचे स्थित देवझर एक अत्यंत ही खूबसूरत जगह है। रतलाम से सैलाना और फिर कोटड़ा होते हुए पहाड़ों के बीच पथरीले रास्तों से होकर देवझर तक पहुंचा जा सकता है। देवझर याने की वो स्थान जहां झरने पर देवता आया करते थे। बताया ये भी जाता है कि यहां प्राचीन काल में तपस्वी तपस्या करने के लिए भी आते थे। जिसके प्रमाण आज भी यहां हैं। चट्टानों के बीच गुफा में प्राचीन शिवलिंग है। इस गुफा में जाने का रास्ता तो है लेकिन गुफा कहां खुलती है इसके बारे में किसी को भी नहीं पता।
देव प्रतिमाएं साफ दिखती है
गुफा से ही कुछ दूरी पर चट्टानों पर नाखूनों से कुरेद कुरेद कर देवी देवताओं और भगवान विष्णु व मां लक्ष्मी की प्रतिमाओं को बनाया गया है। प्रतिमाओं की सुंदरता ऐसी है जो देखते ही बनती है। भगवान विष्णु आराम की मुद्रा में शेषनाग पर लेटे हुए हैं और पास ही मां लक्ष्मी विराजमान हैं। पास ही भगवान गणेश और तप करते भगवान भैरव के साथ ही अन्य देवी देवताओं को भी इन चित्रों में देखा जा सकता है। धरती से करीब 150 फीट नीचे पत्थर की चट्टान पर बने देवी देवताओं के ये चित्र किसने बनाए और ये कितने पुराने हैं इसका उल्लेख न तो इतिहास के पन्नों में दर्ज है और न ही किसी ग्रामीण को इसके बारे में जानकारी है। इस स्थान के पास ही पत्थरों का वो टीला भी है जिसे तपस्वी टीला कहा जाता है। बताया जाता है कि इन टीलो पर बैठकर ही तपस्वी तप किया करते थे।
Updated on:
24 Oct 2022 10:18 am
Published on:
24 Oct 2022 10:15 am
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