आयुक्त सतीश कुमार एस. का नया रूप: ज्वाइन करने के बाद विभागों में पहुंचे अचानक, समझी निगम की कार्यशैली
रतलाम। नगर निगम के नए आयुक्त सतीश कुमार एस गुरुवार को पदभार ग्रहण करने के दूसरे ही दिन शुक्रवार को निगम के विभिन्न विभागों का निरीक्षण करने पहुंच गए। निरीक्षण के दौरान उन्होंने अधिकारियों से निगम के विभागों की कार्यप्रणाली समझी। संपत्तिकर विभाग में निरीक्षण के दौरान ही उन्होंने सहायक आयुक्त और संपत्तिकर अधिकारी गरिमा पाटीदार से पूछ लिया शहर में मकान कितने हैं जिनका संपत्तिकर जमा होता है। इसी के साथ दूसरा सवाल भी उन्होंने पास ही खड़े जलकार्य विभाग के कार्यपालन यंत्री सुरेश चंद्र व्यास पर दाग दिया कि नल कनेक्शनों की संख्या कितनी है। पाटीदार ने उन्हें बताया ४५ हजार प्रापर्टी और व्यास ने बताया ३६५०० नल कनेक्शन। दोनों के उत्तर सुनते ही आयुक्त कुमार ने कहा इतना अंतर है। बिजली कनेक्शन की संख्या बताओ। इस पर सभी हक्का-बक्का रह गए। यह प्रश्न बिजली विभाग से जुड़ा था इसलिए किसी के पास इसका उत्तर नहीं था।
बताओ कैसे करते हो नामांतरण
निगम आयुक्त यहां से सीधे संपत्तिकर विभाग पहुंचे। यहां संपत्तिकर जमा होने के साथ ही भवन, भूखंडों का नामांतरण भी होता है। यहां आए एक नागरिक से पूछ लिया आप क्यों आए हैं। उसका कहना था कि उनके मकान का नामांतरण प्रकरण है। रसीदें दिखाई तो उस पर मंजू पति प्रकाशचंद्र शर्मा लिखा था और २८ जनवरी को संपत्तिकर की रसीद कट चुकी थी। आयुक्त विभाग के प्रभारी अधिकारी से पूछा कितने दिनों में नामांतरण होता है। उनका कहना था कि एक माह का समय लगता है। इस दौरान विज्ञप्ति जारी होती है और दावे-आपत्ति ली जाती है। किसी को कोई आपत्ति नहीं होने पर नामांतरण कर दिया जाता है। रसीद लेकर आए व्यक्ति से निगम आयुक्त ने कहा आप जल्दी क्यों आ गए। एक माह का समय पूरा होने दो तो उनका कहना था कि वह जानकारी लेने आया था कि क्या प्रगति है।
ऑनलाइन परमिशन की बात पर संतोष जताया
नगर निगम से ऑनलाइन भवन निर्माण अनुमति मिलने की प्रक्रिया के बारे में सुनकर निगम आयुक्त ने संतोष जाहिर करते हुए कहा कि कितने समय में परमिशन जारी कर दी जाती है। लोनिवि के सिटी इंजीनियर जीके जायसवाल ने बताया कोई आपत्ति या कमी नहीं हो तो एक माह के भीतर अनुमति जारी कर दी जाती है। उन्होंने बताया कि हर एक अनुमति के लिए नगर तथा ग्राम निवेश से अनुमति लेने की जरुरत नही है। कोई बड़ा प्रोजेक्ट हो या अवैध कॉलोनी हो तो उसमें लेना पड़ती है। निगम को हैंडओवर हो चुकी कॉलोनियों के लिए इसकी जरुरत नहीं पड़ती है। निरीक्षण के दौरान वे स्वास्थ्य विभाग, कर्मशाला, लेखा, स्थापना, कार्यालय अधीक्षक कक्ष आदि में भी गए और संबंधित विभाग प्रमुखों के साथ ही लिपिकों से परिचय प्राप्त किया। सभी को ठीक से काम करने की सलाह भी दी।