
White humanoid hand on blurred background using digital artificial intelligence icon hologram 3D rendering
रतलाम। विकास क्रम में आवश्यकता आविष्कार की जननी है के तहत आवश्यकताओं के परे भी ऐसा कुछ है जो हमें अक्सर चौंका देता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई इसी क्रम में एक ऐसा क्रांतिकारी विचार है कि वह हमारे जीवन को पल भर में बदल कर आसान कर सकता है। वैसे भी आज से सत्तर-अस्सी वर्ष पूर्व कोई मोबाइल जैसे यंत्र के बारे में ही बात करता तो हमें बेहद आश्चर्य होता, लेकिन आज वही मोबाइल आम हो चला है। इसी तरह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अर्थात मानव निर्मित बुद्धि जो अल्गोरिदम सीखने, पहचानने, समस्या समाधान, भाषा, लॉजिकल रीजनिंग, डिजिटल डाटा प्रोसेसिंग, बायोइंफॉर्मेटिक्स तथा मशीन बायोलॉजी जैसे पहलुओं को समझने में सक्षम होगा। यहां तक कि रोबोटिक्स के माध्यम से उनमें मानव के समान भावनाएं भी उनमें डालने के प्रयास हो रहे हैं। वे एक मशीन होकर हम मानवों जैसा ही यथायोग्य व्यवहार करेंगे।
विज्ञान हमेशा जनमानस की बेहतरी ही चाहता है लेकिन एक ही सिक्के के दो पहलुओं की तरह हर अच्छे पक्ष का बुरा स्वरूप भी सामने आ ही जाता है। परमाणु विखंडन का आधार मानव विकास ही था लेकिन परमाणु बम के रूप में यह हमारे मध्य नासूर की तरह विद्यमान है। निश्चित तौर पर एआई के माध्यम से चिकित्सा के क्षेत्र में अभूतपूर्व परिवर्तन होंगे और मरीजों को श्रेष्ठ चिकित्सा का लाभ मिल सकेगा। इसी तरह कृषि, खेल, शिक्षा आदि जैसे क्षेत्रों में व्यापक प्रभाव होंगे जिसका त्वरित लाभ जनमानस को मिल सकेगा। कई जगहों पर इसका प्रयोग प्रारंभ भी हो गया है जैसे पर्सनल डिजिटल असिस्टेंट-गूगल असिस्टेंट, एप्पल सीरी, एलेक्सा, रोबोट निर्माण, कम्प्यूटर, फेसबुक, यूट्यूब, स्पीच रिकग्निशन, मौसम पूर्वानुमान, जीपीएस आदि।
सवाल यह उठता है कि एआई हमारे भले और उत्तरोत्तर विकास के लिए है, लेकिन इसके सहारे हम उन बातों को भूल जाते हैं जो भावनाएं संचालित करती हैं। भावनाएं हटा दी जाए तो सब कुछ मशीनी होने का आभास होने लगता है और मन अवसाद या वितृष्णा से भर सकता है। हमारा मन का अधिकांश संचालन भावनाएं ही करती हैं और मशीन के लगातार उपयोग से भावनाएं जड़ हो सकती हैं जिससे मन को मिलने वाली खुराक खत्म या कम हो जाएगी।
सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग कहते हैं कि मानव हजारों वर्षों के धीमें जैविक विकास क्रम का परिणाम है जो एआई का मुकाबला नहीं कर सकता है। आभासी दुनिया हमें दबाव बनाकर एकांतवास में ले जाती है। सोशल मीडिया हमारी सामूहिकता पर अतिक्रमण कर चुके हैं। बच्चे वीडियो गेम्स में जाने तक गवां रहे हैं। जीपीएस हमें कई बार गुमराह भी कर चुका है। हम वास्तव में जीवन में गणित लगा रहे होते हैं जबकि जीवन का अपना गणित होता है जो अप्रत्याशित होता है। ऐसे में एआई सहयोग के लायक ही रहे तो बेहतर वर्ना खामियाजा भुगतना निश्चित है।
अब भारतीय पृष्ठभूमि इतनी वैज्ञानिक है कि हमारा कैलेण्डर इस बात का गवाह रहा है। हर दूसरे दिन कोई न कोई त्यौहार होता ही है, हर तिथि कहीं न कहीं जाकर किसी मेले, त्यौहार, जलसे, पूजा, आराधना को बताती है ताकि जीवन एक उत्सव है यह हम अपने कामों में भूल न जाएं। एआई का उपयोग उतना ही ठीक है जितने में मानवीय विकास की सुनहरी पृष्ठभूमि तैयार की जा सके और मानवता को उजला रखा जा सकें।
Published on:
22 Dec 2025 11:30 pm
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