रतलाम। भगवान शंकर के अवतार काल भैरव को शिव का अवतार कहा जाता है। कालभैरव की सवारी श्वान बताई गई है। इसी प्रकार यमराज की सवारी भैंसा बताया गया है। प्राचिन शास्त्रों की माने तो जब यमराज व काल भैरव की सवारी आमने-सामने होती है तो भैंसा हमेशा श्वान को सम्मान देता है। एेसा ही एक नजारा रतलाम में देखने को मिला जब यमराज के वाहन पर भैरव के वाहन सवार हुए।
केरल की तंडी ज्योतिष परंपरा के पालनकर्ता वीरेंद्र रावल ने बताया कि पौराणिक मतानुसार ब्रहमदेव व कृतु के विवाद के समय परमब्रह्म शिव का प्रादुर्भाव हुआ। जब ब्रहमदेव जी ने अहंकारवश अपने पांचवें मुख से शिव का अपमान किया तब ब्रहमदेव को दंड देने हेतु उसी समय शिव आज्ञा से भैरव की उत्पत्ति हुई । शिव ने भैरव को वरदान देकर उन्हें ब्रहमदेव को दंड देने का आदेश दिया। शिव ने भैरव का नामकरण करते हुए कहा कि आपसे काल भी डरेगा अत: आज से आपका नाम काल भैरव के नाम से प्रसिद्धि होगा।
काशी जाने को कहा था
ज्योतिषी रावल के अनुसार कुछ शास्त्रों में ऐसा भी वर्णित है कि भैरव ने अपने बाएं हाथ के नाखून से ब्रहमदेव का पांचवां सिर नोच लिया था। ब्रहमदेव का कपाल इन्हीं की हाथों से सटा रहा व भैरव जी को ब्रह्म हत्या का पाप लग गया। सभी लोकों और तीर्थ उपतीर्थ में भ्रमण करते - करते जब भैरव बैकुंठ पहुंचे तो उन्हें भगवान विष्णु ने भगवान शंकर के त्रिशूल पर विराजमान होकर काशी जाने का परामर्श दिया।
ये है अष्ट भैरव
ज्योतिषी रावल के अनुसार शास्त्रों में मुख्यत: अष्ट भैरव की गणना की जाती है। इनके नाम बटुक भैरव, क्रोध भैरव, दंडपाणि - शूल पाणी भूत भैरव, भीषण भैरव, कपाल भैरव, चंड भैरव, आसितांग भैरव व आनंद भैरव मिलते हैं । शिवपुराण अनुसार भैरव को शिव का पूर्णरूप बतलाया गया है। काल भैरव परम साक्षात् रुद्र का ही रूप हैं। वेदों में जिस परमपुरुष को रुद्र बताया गया है, तंत्र शास्त्र में उसी रूद्र का भैरव के रूप से वर्णन किया गया है। भैरव कृपा के कारण यमराज के वाहन से श्वान नहीं डरते।