
पढ़िए कविता 'रिश्तों के धागे'
कोई भी रिश्ता बनाना इतना आसान हैं जिस तरह मिट्टी पर मिट्टी लिखना पर उसे निभाना उतना ही मुश्किल है जैसे पानी पर पानी से पानी लिखना। पढ़िए रिश्तों के धागों पर ऐसी ही यह कविता और महसूस कीजिए इन भावनाओं को
रिश्तों के धागे भी गजब है
कभी उलझते हैं तो
दबा हुआ तूफान लाते हैं
आंखों से कहीं अंगारे तो कहीं अश्रुओं की
धारा बहाते हैं
सुलझाते-सुलझाते अक्सर
मन में गांठ रह जाती है
जो चिंगारी के साथ खुलने
की संभावना रहती है
रिश्ता फिर उलझ जाता है
सुनाने के चक्कर में
अक्सर अपना ही
बुरा कर जाते हैं
कभी कभी खामोशी से
सुनना भी चाहिए
रिश्ते बने रहते हैं
रिश्तों की चमक कभी
फीकी नहीं होती
आधार मजबूत होना चाहिए
विश्वास की सुई से
बंधन सिला होना चाहिए
रिश्ते लचीले हों तो
टूट नहीं पाते
संबंधों के मोती
बिखर नहीं पाते
अपनों को खुला आकाश दें
रिश्तों को नया आयाम
रिश्तों में अहम्
का कोई स्थान नहीं
ये छुपा हुआ शत्रु
बड़ा घातक होता है
रिश्तों को कब
खोखला कर दे
ज्ञात ही नहीं हो पाता है।
Published on:
06 Apr 2023 05:11 pm
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