script‘जो आए बदरी, वो ना आए ओदरी’, बद्रीनाथ के बारे में क्यों प्रचलित है ये कहावत? जानिए कैसे पड़ा इस धाम का नाम बदरीनाथ? | Badrinath Dham Opening Date: Know About Its Significance And History | Patrika News

‘जो आए बदरी, वो ना आए ओदरी’, बद्रीनाथ के बारे में क्यों प्रचलित है ये कहावत? जानिए कैसे पड़ा इस धाम का नाम बदरीनाथ?

locationनई दिल्लीPublished: May 07, 2022 03:57:51 pm

Submitted by:

Tanya Paliwal

Badrinath: इस साल 2022 में बद्रीनाथ धाम के कपाट 8 मई को यानि कल से खुलेंगे। सृष्टि का आठवां वैकुंठ कहे जाने वाले बद्रीनाथ धाम को बद्रीनारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह पवित्र स्थल भगवान विष्णु को समर्पित है। आइए जानते हैं कैसे पड़ा इस धाम का नाम बद्रीनाथ?

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‘जो आए बदरी, वो ना आए ओदरी’, बद्रीनाथ के बारे में क्यों प्रचलित है ये कहावत? जानिए कैसे पड़ा इस धाम का नाम बदरीनाथ?

हिंदू धर्म के चार धामों में से एक बद्रीनाथ या बद्रीनारायण मंदिर उत्तराखंड के चमोली जनपद में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। प्रकृति की गोद में स्थित यह पवित्र स्थान भगवान विष्णु का मंदिर है। यहां भगवान विष्णु की मूर्ति विश्राममुद्रा में है। माना जाता है कि केदारनाथ के दर्शन के बाद बद्रीनाथ में दर्शन करने वाले मनुष्य को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही विष्णु पुराण, स्कंद पुराण और महाभारत जैसे ग्रंथों में इस मंदिर का उल्लेख किया गया है। मान्यता है कि इस प्राचीन मंदिर का निर्माण 7वीं-9वीं सदी में हुआ था। इस मंदिर के लिए कई कहावतें और इसकी उत्पत्ति की कहानियां भी प्रचलित हैं। तो आइए जानते हैं कैसे इस धाम का नाम बद्रीनाथ पड़ा…

‘जो आए बदरी, वो ना आए ओदरी’, बद्रीनाथ के बारे में क्यों प्रचलित है ये कहावत?

इस कहावत का अर्थ है कि, ‘जो मनुष्य एक बार बद्रीनाथ धाम के दर्शन कर लेता है उसे फिर दोबारा गर्भ में नहीं आना पड़ता। यानी एक बार मनुष्य योनि में जन्म लेने के बाद दूसरी बार उस मनुष्य को जन्म नहीं लेना पड़ता।’ वहीं शास्त्रों में भी कहा गया है कि व्यक्ति को कम से कम दो बार अपने जीवन में बद्रीनारायण मंदिर की यात्रा जरूर करनी चाहिए।

कैसे पड़ा इस धाम का नाम बद्रीनाथ?
अलग-अलग युगों में इस धाम के विभिन्न नाम प्रचलित रहे हैं। कलियुग में इस धाम को बद्रीनाथ के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि इस पवित्र स्थल का यह नाम यहां बहुतायत में मौजूद बेर के वृक्षों के कारण पड़ा है। हालांकि इस मंदिर के नाम बद्रीनाथ के नामकरण के पीछे एक कहानी भी प्रचलित है…

नामकरण कथा- एक बार जब नारद मुनि भगवान विष्णु के दर्शन के लिए क्षीरसागर आए तो उन्होंने वहां लक्ष्मी माता को विष्णु भगवान के पैर दबाते हुए देखा। इस बात से आश्चर्यचकित होकर जब नारद मुनि ने भगवान विष्णु से इस के संदर्भ में पूछा, तो इस बात के लिए भगवान विष्णु ने स्वयं को दोषी पाया और तपस्या करने के लिए वे हिमालय को चले गए। तपस्या के दौरान जब नारायण योग ज्ञान मुद्रा में लीन थे, तब उन पर बहुत अधिक हिमपात होने लगा। नारायण पूरी तरह बर्फ से ढक चुके थे। उनकी इस हालत को देखकर माता लक्ष्मी बहुत दुखी हुईं और वे खुद विष्णु भगवान के पास जाकर एक बद्री के पेड़ के रूप में खड़ी हो गईं। इसके बाद सारा हिमपात बद्री की पेड़ के रूप में खड़ी हुईं माता लक्ष्मी पर होने लगा। तब मां लक्ष्मी धूप, बारिश और बर्फ से विष्णु भगवान की रक्षा कर रही थीं।

अपनी तपस्या के कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु की आंखें खुलीं तो उन्होंने माता लक्ष्मी को बर्फ से ढका हुआ पाया। तब नारायण ने लक्ष्मी मां से कहा कि, ‘हे देवी! आपने भी मेरे बराबर ही तप किया है। इसलिए आज से इस धाम पर मेरे साथ-साथ तुम्हारी भी पूजा की जाएगी और चूंकि आपने बेर यानी बद्री के पेड़ के रूप में मेरी रक्षा की है। इसलिए इस धाम को भी बद्री के नाथ यानी बद्रीनाथ के नाम से जाना जाएगा।’

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