विचार मंथन : ईश्वर का निवास स्थान यहां है
राष्ट्र से बड़ा अन्य कुछ भी नहीं है, भारतवासियों की एक ही पहचान है भारत देश, भारत मातरम्। हममें से हर एक का एक ही परिचय है- राष्ट्र ध्वज, अपना प्यारा तिरंगा। इस तिरंगे की शान में ही अपनी शान है। इसके गुणगान में ही अपने गुणों का गान है। हमारी अपनी निजी मान्यताएं, आस्थाएं, परम्पराएं, यहां तक कि धर्म, मजहब की बातें वहीं तक सार्थक और औचित्यपूर्ण हैं, जहाँ तक कि इनसे राष्ट्रीय भावनाएं पोषित होती हैं। जहां तक कि ये राष्ट्र धर्म का पालन करने में, राष्ट्र के उत्थान में सहायक हैं। राष्ट्र की अखण्डता, एकजुटता और स्वाभिमान के लिए अपनी निजता को न्यौछावर कर देना प्रत्येक राष्ट्रवासी का कर्त्तव्य है।
अगर तुम निशाना लगा रहे हो तो तुम्हारा पूरा ध्यान सिर्फ अपने लक्ष्य पर होना चाहिए : स्वामी विवेकानन्द
राष्ट्रधर्म का पालन प्रत्येक राष्ट्रवासी के लिए सर्वोपरि है। यह हिन्दू के लिए भी उतना ही अनिवार्य है जितना कि सिख, मुस्लिम या ईसाई के लिए। यह गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब या तमिल, तैलंगाना की सीमाओं से कहीं अधिक है। इसका क्षेत्र तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक सर्वत्र व्याप्त है। राष्ट्र धर्म के पालन का अर्थ है, राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति, वस्तु व परिस्थिति के लिए संवेदनशील होना, सजग होना, कर्त्तव्यनिष्ठ होना, राष्ट्रीय हितों के लिए, सुरक्षा व स्वाभिमान के लिए अपनी निजता, अपने सर्वस्व का सतत् बलिदान करते रहना।
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