लोग वैसा ही करते तथा अगले दिन आकर पिता जी का शुक्रिया अदा करते और कहते कि खुदा की रहमत हो गई मरीज ठीक हो गया । मैं इतना छोटा था कि इन सब बातों का अर्थ समझ नही पाता था । किन्तु इतना जरूर लगता था कि जो भी हो रहा है किसी अच्छे उद्देश्य के लिये हो रहा है । जब मैं अपने पिता जी से प्रश्न करता था, तो वे बड़े सहज और सरल भाव से मेरे हर प्रश्न का जवाब देते थे ।
एकबार एक व्यक्ति ने मुझसे पूछा कि, आप इतने बड़े वैज्ञानिक हैं तथा राष्ट्रपति जैसे गरिमावान पद पर आसीन होते हुए भी बच्चों के लिये इतना समय कैसे निकाल लेते हैं..? ऐसा क्या मिलता है आपको बच्चों में..? उत्तर में मैने कहा “बच्चों के स्तर पर उतर कर मेरे मन में नई-नई उमंगे हिलोरे लेने लगती हैं और दुनिया का कोई भी काम मुझे मुश्किल नही लगता । मेरे हौसले आसमान छूने लगते हैं । बच्चों से बाते करके, उनकी आँखों में आँखे डालकर उनके भावों के साथ एकाग्रता स्थापित करते ही, तन मन में एक अद्भुत ऊर्जा का संचार होने लगता है ।
बड़ा बनना हैं तो सपने भी बड़े ही देखना पड़ेगा । सपने वे नही होते जो नींद में देखे जाते हैं, सपने तो वो होते हैं जो नींद ही न आने दें । पहले तुम तीन बार स्वपन स्वपन स्वपन बोलो । तुम पाओगे कि स्वपन ही विचार बनते हैं और विचार कर्म के रूप में बाहर आते हैं । यदि स्वपन नही होंगे तो क्रान्तिकारी विचार भी जन्म नही लेंगे ।
।। स्वप्न स्वप्न स्वप्न ।।
।। स्वप्नों में छुपा है सृजन ।।
।। स्वप्नों में है मूर्त छवि ।।
।। होते विचार हैं ।।
।। जिनसे जन्मा कर्म ।।
।। करता निर्माण है ।।
मुझे 1980 की एक बात याद आ रही है । 1980 में SLV 3 से रोहिणी नामक रॉकेट को सफलता पूर्वक लॉच किया गया था । मैं एस एल वी – 3 का परियोजना निदेशक था । इसरो के प्रमुख डॉ. सतीश धवन ने मुझे संदेश भेजा कि प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की उपस्थिति में एक बधाई समारोह आयोजित किया गया है । अतः तुम तुरन्त दिल्ली के लिये रवाना हो जाओ । तब मैने झिझकते हुए डॉ. धवन को बताया कि, मेरे पास कोई सूट या ***** नही है । मैं पैंट शर्ट और चप्पल में कैसे जाऊँ..? तब डॉ. सतीश धवन ने कहा.. कलाम तुमने विजय का परिधान पहन रखा है । तुमको चिंता करने की जरूरत नही है ।
मिसाइल मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है । व्यक्ति, परिवार और समाज के केन्द्र में सबसे महत्वपूर्ण ईकाइ बच्चे हैं । बच्चों को केन्द्र में रखकर सोचने पर हमारी सोच सकारात्मक हो जाती है । हम उन गुनाहों को करने में झिझकते हैं जिनके कारण बच्चों के जीवन तबाह हो जाते हैं ।
मेरे आदर्श स्वामी विवेकानन्द जी भी कहते हैं कि- मानवता का संचार उनके ह्रदयों में नही होता जो सच्चाई छिपाते हैं और गलतियां करते हैं, यह केवल उनके ह्रदय में होता है जो मन के सच्चे और भोले होते हैं, बिलकुल बच्चों की तरह, अतः जब कभी तय न कर पाओ कि तुम जो करने जा रहे हो वह सही है या गलत तो बच्चों के पास जाओ – वे बता देंगे, सही क्या है ।