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विचार मंथन : अद्वितीय संसदविद, राष्ट्रसेवी, स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, विचारक एवं सुधारक, गोपाल कृष्ण गोखले

अद्वितीय संसदविद, राष्ट्रसेवी, स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, विचारक एवं सुधारक, गोपाल कृष्ण गोखले

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भोपाल

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Shyam Kishor

May 09, 2019

daily thought

विचार मंथन : अद्वितीय संसदविद, राष्ट्रसेवी, स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, विचारक एवं सुधारक, गोपाल कृष्ण गोखले

महाराष्ट्र के कोल्हापुर में 9 मई 1866 जन्में गोपाल कृष्ण गोखले अपने समय के अद्वितीय संसदविद और राष्ट्रसेवी, एक स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, विचारक एवं सुधारक भी थे। उन्होंने अपने जीवन में इस सिंद्धातों को आजीवन अपनाया- 1- सत्य के प्रति अडिगता, 2- अपनी भूल की सहज स्वीकृती, 3- लक्ष्य के प्रति निष्ठा, 4- नैतिक आदर्शों के प्रति आदरभाव, 5- वाकपटुता का कमाल।

सवैधानिक रीति से देश को स्वशासन की ओर ले जाने में विश्वास रखने वाले गोखले नरम विचारों के माने जाते थे। गोखले जी क्रांति में नहीं, सुधारों में विश्वास रखते थे। 1902 ई. में गोखले को 'इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउन्सिल' का सदस्य चुना गया। उन्होंने नमक कर, अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में भारतीयों को अधिक स्थान देने के मुद्दे को काउन्सिल में उठाया। गोपाल कृष्ण गोखले ने 1905 में 'भारत सेवक समाज' की स्थापना की, ताकि देश के नौजवानों को सार्वजनिक जीवन के लिए प्रशिक्षित किया जा सके। उनका मानना था कि वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा भारत की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। इसीलिए इन्होंने सबसे पहले प्राथमिक शिक्षा लागू करने के लिये सदन में विधेयक भी प्रस्तुत किया था।

सुधारक की कड़ी भाषा

एक ओर लोकमान्य तिलक 'केसरी' और 'मराठा' अख़बारों के माध्यम से अंग्रेज़ हुकूमत के विरुद्ध लड़ रहे थे, तो वहीं 'सुधारक' को गोखले ने अपनी लड़ाई का माध्यम बनाया हुआ था। 'केसरी' की अपेक्षा 'सुधारक' का रूप आक्रामक था। सैनिकों द्वारा बलात्कार का शिकार हुई दो महिलाओं ने जब आत्महत्या कर ली, तो 'सुधारक' ने भारतीयों को कड़ी भाषा में धिक्कारा था- तुम्हें धिक्कार है, जो अपनी माता-बहनों पर होता हुआ अत्याचार चुप्पी साधकर देख रहे हो। इतने निष्क्रिय भाव से तो पशु भी अत्याचार सहन नहीं करते। गोखले जी के इन शब्दों ने भारत में ही नहीं, इंग्लैंड के सभ्य समाज में भी खलबली मचा दी थी। 'सर्वेन्ट ऑफ़ सोसायटी' की स्थापना गोखले द्वारा किया गया महत्त्वपूर्ण कार्य था। इस तरह गोखले ने राजनीति को आध्यात्मिकता के ढांचे में ढालने का अनुठा कार्य किया।

राजनीति को आध्यात्मिकता के ढांचे में ढालने का अनुठा कार्य

गोखले की सोसाइटी के सदस्य इन संकल्पों का आजीवन पालन करते थे - वह अपने देश की सर्वोच्च समझेगा और उसकी सेवा में प्राण न्योछावर कर देगा। देश सेवा में व्यक्तिगत लाभ को नहीं देखेगा। प्रत्येक भारतवासी को अपना भाई मानेगा। जाति समदाय का भेद नहीं मानेगा। सोसाइटी उसके और उसके परिवार के लिए जो धनराशि देगी, वह उससे संतुष्ट रहेगा तथा अधिक कमाने की ओर ध्यान नहीं देगा। पवित्र जीवन बिताएगा। किसी से झगड़ा नहीं करेगा। सोसायटी का अधिकतम संरक्षण करेगा तथा ऐसा करते समय सोसायटी के उद्देश्यों पर पूरा ध्यान देगा।

गांधी जी को मिली थी गोखले से प्रेरणा

गांधी जी गोखले को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। आपके परामर्श पर ही उन्होंने सक्रिय राजनीति में भाग लेने से पूर्व एक वर्ष तक देश में घूमकर स्थिति का अध्ययन करने का निश्चय किया था। साबरमती आश्रम की स्थापना के लिए गोखले ने गांधी जी को आर्थिक सहायता दी। गोखले सिर्फ गांधी जी के ही नहीं बल्कि मोहम्मद अली जिन्ना के भी राजनीतिक गुरु थे। गांधी जी को अहिंसा के जरिए स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई की प्रेरणा गोखले से ही मिली थी।

गोखले की मृत्यु के बाद महात्मा गांधी ने अपने इस राजनैतिक गुरु के बारे में कहा "सर फिरोजशाह मुझे हिमालय की तरह दिखाई दिये, जिसे मापा नहीं जा सकता और लोकमान्य तिलक महासागर की तरह, जिसमें कोई आसानी से उतर नहीं सकता, पर गोखले तो गंगा के समान थे, जो सबको अपने पास बुलाती है।" तिलक ने गोखले को 'भारत का हीरा', 'महाराष्ट्र का लाल' और 'कार्यकर्ताओं का राजा' कहकर उनकी सराहना की।

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