
विचार मंथन : 'रावन' महान बुद्धिमान, विचारक होते हुए भी केवल अहंकार के कारण स्वयं तथा सारे कुटुंब का विनाश कर लिया- आचार्य श्रीराम शर्मा
रावन का अहंकार उसे ले डूबा
रावण की विद्वता संसार प्रसिद्ध है, उसके बल की कोई सीमा नहीं थी। ऐसा नहीं सोचा जा सकता कि उसमें इतनी भी बुद्धि नहीं थी कि वह अपना हित अहित न समझ पाता। वह एक महान बुद्धिमान तथा विचारक व्यक्ति था। उसने जो कुछ सोचा और किया, वह सब अपने हित के लिए ही किया। किन्तु उसका परिणाम उसके सर्वनाम के रूप में सामने आया। इसका कारण क्या था? इसका एकमात्र कारण उसका अहंकार ही था। अहंकार के दोष ने उसकी बुद्धि उल्टी कर दी। इसी कारण उसे अहित से हित दिखलाई देने लगा। इसी दोष के कारण उसके सोचने समझने की दिशा गलत हो गई थी और वह उसी विपरीत विचार धारा से प्रेरित होकर विनाश की ओर बढ़ता चला गया।
अहंकार की असुर वृत्ति रावन को ले डूबी
ऐसा कौन सा अकल्याण है, जो अहंकार से उत्पन्न न होता हो। काम, क्रोध, लोभ आदि विकारों का जनक अहंकार ही को तो माना गया है। बात भी गलत नहीं है, अहंकारी को अपने सिवाय और किसी का ध्यान नहीं रहता, उसकी कामनायें अपनी सीमा से परे-परे ही चला करती है। संसार का सारा भोग विलास और धन वैभव वह केवल अपने लिए ही चाहता है। अहंकार की असुर वृत्ति के कारण रावन बड़ा विलासी और विषयी बना रहता है। उसकी विषय-वासनाओं की तृष्णा कभी पूरी नहीं होती।
विषयों की तृप्ति नहीं हो सकती
कितना ही क्यों न भोगा जाय, विषयों की तृप्ति नहीं हो सकती। इसी अतृप्ति एवं असंतोष के कारण मनुष्य के स्वभाव में क्रोध का समावेश हो जाता है। वह संसार और समाज को अपने अरांतोपका हेतु समझने लगता है और बुद्धि विषय के कारण उनसे शत्रुता मान बैठता है। वैसा ही व्यवहार करने लगता है। जिसके फलस्वरूप उसकी स्वयं की अशांति तो स्थायी बन ही जाती है, संसार में भी अशांति के कारण उत्पन्न करता रहता है।
*************
Published on:
05 Oct 2019 04:09 pm
बड़ी खबरें
View Allधर्म और अध्यात्म
धर्म/ज्योतिष
ट्रेंडिंग
