
मैं नरक में जाकर वहां भी स्वर्ग का वातावरण उत्पन्न कर सकता हूं: संत इमर्सन
दृष्टिकोण की श्रेष्ठता ही वस्तुतः मानव जीवन की श्रेष्ठता है
जिनका दृष्टिकोण "उत्कृष्ट" है, उनके हाथ में जाकर "घटिया" चीज भी "बढ़िया" बन जाती है। वे अपनी अभिरुचि के अनुरूप ही उसे ढालते भी है। मैं दावा करता हूं कि मैं नरक में जाकर वहां भी स्वर्ग का वातावरण उत्पन्न कर सकता हूं। "सुरुचि" का जादू सामान्य और तुच्छ वस्तुओं एवं व्यक्तियों को भी सुंदर बना देता है, किंतु यदि दृष्टिकोण दूषित है, तो अच्छाई भी धीरे-धीरे बुराई के रूप में परिणत हो जाएगी। सांप के पेट में जाकर दूध भी विष हो जाता है। कुसंस्कारी व्यक्ति अपने सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों एवं पदार्थों को भी गंदा बना देते हैं। दृष्टिकोण की श्रेष्ठता ही वस्तुतः मानव जीवन की श्रेष्ठता है।
"उत्कृष्टता" को ही स्थिरता और सफलता का श्रेय मिलता है
उत्कृष्टता का गौरव सदा से अक्षुण्ण रहा है। धूर्तता और धोखेबाजी कितनी ही बढ़ जाए, सज्जनों का मार्ग उनके कारण कितना ही कंटकाकीर्ण क्यों न हो जाए, फिर भी अंततः "उत्कृष्टता" को ही स्थिरता और सफलता का श्रेय मिलता है। परीक्षा में ऊंचे नंबरों से पास होने वाले छात्रों की हर क्षेत्र में मांग रहती है, जबकि घटिया श्रेणी में उत्तीर्ण होने पर उनकी उन्नति सीमित हो जाती है।
थोड़ा करों मगर उत्कृष्ठ ही करों
जीवन" एक "परीक्षा" है, उसे "उत्कृष्टता" की कसौटी पर ही सर्वत्र कसा जाता है। यदि खरा साबित न हुआ जा सके तो समझना चाहिए कि प्रगति का द्वार अवरुद्ध ही है। इसलिए हमेशा अच्छे से अच्छा करने की कोशिश में हर किसी व्यक्ति को लगे रहना चाहिए। जीवन में जो कुछ भी करों, थोड़ा करों मगर उत्कृष्ठ ही करों।
*****************
Updated on:
30 Oct 2019 05:32 pm
Published on:
30 Oct 2019 05:30 pm
बड़ी खबरें
View Allधर्म और अध्यात्म
धर्म/ज्योतिष
ट्रेंडिंग
