माँ की बात से रूप सिंह का मन नहीं माना तो उसने अपनी बीवी से पुछा तो वह बोली इतनी गरीबी है कुछ पैसे ही मांग लो। फिर भी रूप सिंह का मन नहीं माना। तभी रूप सिंह की छोटी बिटिया बोली पिताजी गुरु ने जब कहा है कि मांगो तो कोई छोटी मोटी चीज़ न मांग लेना। इतनी छोटी बेटी की बात सुन के रूप सिंह जी बोले कल तू ही साथ चल गुरु से तू ही मांग लेना। अगले दिन पिता पुत्री दोनों गुरु अंगद देव के पास गए और बोले हे गुरुदेव मेरी बेटी मेरी जगह आपसे मांगेगी।
विचार मंथन : जैसी विठ्ठल जीकी कृपा- संत नामदेव
वो नन्ही बेटी बहुत समझदार थी। रूप सिंह जी इतने गरीब थे के घर के सारे लोग दिन में एक वक़्त का खाना ही खाते। इतनी तकलीफ होने के बावजूद भी उस नन्ही बेटी ने गुरु से कहा गुरुदेव मुझे कुछ नहीं चाहिए। आप के हम लोगों पे बहुत एहसान है, आपकी बड़ी रहमत है, बस मुझे एक ही बात चाहिए कि आज हम दिन में एक बार ही खाना खाते हैं। कभी आगे एसा वक़्त आये के हमे चार पांच दिन में भी अगर एक बार खाए तब भी हमारे मुख से शुक्राना ही निकले, कभी शिकायत ना करे। शुकर करने की दान दो।
इस बात से गुरु अंगद देव महाराज जी बहुत अधिक प्रसन्न हो हुए एवं आशीर्वाद दिया, जा बेटा अब तेरे घर के भंडार सदा भरे रहेंगे। तू क्या तेरे घर पे जो आएगा वह भी खाली हाथ नहीं जाएगा। तो यह है शुकर करने का फल। सदा शुकर करते रहे। सुख में सिमरन। दुःख में अरदास। हर वेले शुकराना।