
Kya Hai Haj Yatra: Haj Yatra 2023: हर साल दुनिया भर में रहने वाले लाखों मुस्लिम पवित्र शहर मक्का की यात्रा करने जाते हैं। इस यात्रा को हज यात्रा कहा जाता है। साल 2023 में हज यात्रा पर जाने के लिए आज 20 मार्च को अंतिम तारीख थी। आपको बता दें कि केरल से तीर्थयात्रियों का पहला जत्था 7 जून को हज यात्रा के लिए जेद्दा के लिए निकलेगा। यहां सवाल यह उठता है कि आखिर हज क्या है? पत्रिका.कॉम के इस लेख में जानें अपने इस सवाल का जवाब...
क्या है हज
इस्लाम धर्म में कुल 5 फर्ज बताए गए हैं। इनमें कलमा, रोजा, नमाज और जकात तो है ही एक फर्ज है हज। कलमा का मतलब है अल्लाह के पैगंबर मोहम्मद सल्ललाहु अलैहि वसल्लम के उसूलों पर यकीन रखना। रोजा यानी रमजान के पाक महीने में उपवास रखना, नमाज इसका अर्थ है दिन में 5 बार अल्लाह को याद करना उसकी इबादत करना। जकात यानी अपनी साल भर की कमाई का कुछ हिस्सा गरीबों, जरूरतमंदों, बच्चों और परेशान लोगों की मदद में देना। वहीं हज का अर्थ है हिन्दी में तीर्थ यात्रा। यह एक धार्मिक कर्तव्य है, जिसे अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार पूरा करना हर उस मुस्लिम चाहे स्त्री हो या पुरुष का कर्तव्य है जो तंदुरुस्त शरीर के साथ ही इसका खर्च उठा पाने में भी समर्थ हो। शारीरिक और आर्थिक रूप से हज करने में सक्षम होने की स्थिति को इस्तिताह कहा जाता है और वो मुस्लिम है जो इस शर्त को पूरा करता है मुस्ताती कहलाता है। मुसलमानों का मानना है कि इब्राहिम और उनके बेटे इस्माइल ने पत्थर का एक छोटा-सा घनाकार इमारत बनाई थी। इसी को काबा कहा जाता है। बाद के वक्त में धीरे-धीरे लोगों ने यहां अलग-अलग ईश्वरों की पूजा शुरू कर दी। इस्लाम के आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद (570-632 ई.) को अल्लाह ने कहा कि वो काबा को पहले जैसी स्थिति में लाएं और वहां केवल अल्लाह की इबादत होने दें। साल 628 में पैगोबर मोहम्मद ने अपने 1400 अनुयायियों के साथ एक यात्रा शुरू की थी। ये इस्लाम की पहली तीर्थ यात्रा बनी और इसी यात्रा में पैगंबर इब्राहिम की धार्मिक परंपरा को फिर से स्थापित किया गया। इसी को हज कहा जाता है। हर साल दुनियाभर के मुस्लिम सऊदी अरब के मक्का में हज के लिए पहुंचते हैं। हज में पांच दिन लगते हैं और ये ईद उल अजहा या बकरीद के साथ पूरी होती है।
कब की जाती है हज
हज इस्लामिक कैलेंडर के 12वें और अंतिम महीने जु अल-हज्जा की 8वीं से 12वीं तारीख तक की जाती है। इस्लामिक कैलेंडर एक चंद्र कैलेंडर है, इसीलिए इसमें, पश्चिमी देशों में प्रयोग में आने वाले ग्रेगोरियन कैलेंडर से ग्यारह दिन कम होते हैं, इसीलिए ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार हज की तारीखें साल दर साल बदलती रहती हैं।
ऐसे की जाती है हज
तीर्थ यात्री उन लाखों लोगों के जुलूस में शामिल होते हैं जो, एक साथ हज के सप्ताह में मक्का में जमा होते हैं और यहां पर कई अनुष्ठानों में हिस्सा लेते हैं। प्रत्येक व्यक्ति एक घनाकार इमारत काबा के चारों ओर वामावर्त सात बार चलता है, जो कि मुस्लिमों के लिए प्रार्थना की दिशा है, सफा और मरवा नामक पहाडिय़ों के बीच आगे और पीछे चलता है। जमजम के कुएं से पानी पीता है, चौकसी में खड़ा होने के लिए माउंट अराफात के मैदानों में जाता है और एक शैतान को पत्थर मारने की रस्म पूरी करने के लिए पत्थर फेंकता है। उसके बाद तीर्थयात्री अपने सिर मुंडवाते हैं, पशु बलि की रस्म अदा की जाती है। इसके बाद ईद अल-अजहा यानी बकरा ईद का तीन दिवसीय वैश्विक उत्सव मनाया जाता है।
कितना होता है खर्च
जानकारी के मुताबिक, देश के अलग-अलग शहरों के यात्रियों का शहर के हिसाब से हज का खर्च करना पड़ता है। साल 2022 के आंकड़ों को देखें तो एक दिल्ली से जाने वाले हज यात्री को 3 लाख 88 हजार रुपए, वहीं लखनऊ से जाने वाले यात्री को 3 लाख 90 हजार रुपए, गुवाहाटी से जाने वाले यात्रियों को 4 लाख 39 हजार रुपए का खर्च करना पड़ा था।
Updated on:
23 Mar 2023 05:03 pm
Published on:
23 Mar 2023 05:01 pm
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