
नई दिल्ली। भोलेनाथ भगवान शिव का ध्यान करने मात्र से मन में जो एक छवि बनती है वो है एक वैरागी पुरुष की। ग्रंथों में कार्तिक मास की पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव ने तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली के त्रिपुरों का नाश किया था। इन त्रिपुरों का नाश करने के कारण ही भगवान शिव का एक नाम त्रिपुरारी प्रसिद्ध हुआ। आपको बताते हैं भगवान शिव ने कैसे किया त्रिपुरों का नाश-
अगर किसी एक व्यक्ति में इस सृष्टि की सारी विशेषताओं का जटिल मिश्रण मिलता है तो वह शिव हैं। शिवपुराण में बताया गया है, दैत्य तारकासुर के तीन पुत्र थे तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली। तारकासुर के आतंक की कारण जब भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो उसके पुत्रों को बहुत दुःख हुआ और ईसिस कारण वश उन्होंने देवताओं से बदला लेने की ठानी इसके लिए उन दोनों ने घोर तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया। ब्रह्माजी के प्रकट होने पर उन्होंने अमर होने का वरदान मांग लिया, ब्रह्माजी को पूरी परिस्थिति का आभास था इसी कारण उनहोंने उनसे इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने के लिए कहा।
ब्रह्माजी का तीनों को वरदान
फिर इसके पश्चात उन तीनों ने ब्रह्माजी से वरदान मांगा कि आप हमारे लिए तीन नगरों का निर्माण करवाईए। उया रूसे ऐसा बनाइए की हम इन नगरों में बैठकर सारी पृथ्वी पर आकाश मार्ग से घूमते रहें और एक हजार साल बाद हम एक ही जगह पर आ मिलें। उस समय जब हमारे तीनों नगर मिलकर एक हो जाएं, तो जो देवता उन्हें एक ही बाण से नष्ट कर सके, वही हमारी मृत्यु का कारण बना और कोई हमें मार ना पाए। तब ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया। ब्रह्माजी का यह वरदान पाकर तीनों भाई बहुत प्रसन्न हुए।
ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण कर दिया। उनमें से एक सोने का था, एक चांदी का और एक लोहे का। सोने का नगर तारकाक्ष का था, चांदी का कमलाक्ष का और लोहे का विद्युन्माली का। तीनों ने अपने पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार प्राप्त लिया। इन दैत्यों हाहाकार से इंद्र आदि सभी देवता भगवान शंकर की शरण में गए। घबराए देवताओं की बात सुनकर भगवान शिव इन त्रिपुरों का नाश करने के लिए तैयार हो गए। फिर विश्वकर्मा ने भगवान शिव के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया।
क्रमानुसार चंद्रमा और सूर्य उसके पहिए बने, इंद्र, वरुण, यम और कुबेर आदि लोकपाल उस रथ के घोड़े बने। हिमालय धनुष बने और शेषनाग उसकी प्रत्यंचा, स्वयं भगवान विष्णु बाण तथा अग्निदेव उसकी नोक बने। उस दिव्य रथ पर सवार होकर जब भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए चले तो दैत्यों में हाहाकर मच गया। फिर क्या था देवताओं औए दैत्यों में भयंकर युद्ध छिड़ गया। जैसे ही त्रिपुर के तीनों नगर एक सीध में आए, भगवान शिव ने दिव्य बाण चलाकर उनका तुरंत नाश कर दिया। त्रित्रुरों का नाश होते ही सभी देवता भगवान शिव का जयकारा लगाने लगे। यह कारण है त्रिपुरों का अंत करने के कारण भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा।
Published on:
08 Jan 2018 08:59 am
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