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Mahashivratri Vrat Katha: महाशिवरात्रि के दिन अवश्य पढ़ें ये कथा, मिलेगा मनोवांछित फल

महाशिवरात्रि व्रत कथा (Shivratri Katha): दो बार अपने शिकार को खोकर चित्रभानु को चिंता हो गयी। रात्रि का अंतिम पहर बीत रहा था कि तभी उधर से तीसरी मृगी अपने बच्चों के साथ गुजरी। शिकारी फिर से धनुष पर तीर चढ़ा कर उस मृगी को मारने ही वाला था कि वह बोली- "मुझे मत मारो। पहले मैं इन बच्चों को इनके पिता के पास छोड़ कर आती हूँ।"

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Mahashivratri 2022 Vrat Katha: महाशिवरात्रि के दिन अवश्य पढ़ें ये कथा, मिलेगा मनोवांछित फल

यूं तो शिवरात्रि हर महीने आती है लेकिन फाल्‍गुन मास के कृष्‍ण पक्ष की चतुर्दशी को पड़ने वाली शिवरात्रि को बहुत खास माना जाता है। शास्त्रों में इस दिन पड़ने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है, क्योंकि इसी दिन माता पार्वती और भगवान शिवशंभू का विवाह हुआ था। महाशिवरात्रि के दिन सही विधि से पूजा-पाठ करने से भोलेनाथ की असीम कृपा प्राप्त होती है। आपको बता दें कि महाशिवरात्रि के पावन दिन पर शिवरात्रि व्रत कथा पढ़ने का भी विशेष विधान होता है। तो आइए जानते हैं वह कौन सी कथा है जिसे पढ़ने से मनुष्य के सब मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं...

एक समय की बात है चित्रभानु नाम का एक शिकारी था। वह पशुओं को मारकर अपने परिवार का पेट पालता था। एक बार चित्रभानु पर एक साहूकार का ऋण चढ़ गया था, लेकिन कर्जा वक्त पर न चुका पाने के कारण साहूकार अत्यंत क्रोधित हो गया और गुस्से में उसने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोगवश उस दिन शिवरात्रि थी। ऐसे में बंदी शिकारी ने शिवमठ में उस दिन शिवरात्रि व्रत कथा भी सुन ली। इसके बाद शाम होने पर साहूकार ने शिकारी को बुलाकर पूछा कि वह उसका ऋण कब तक चुका देगा। तब चित्रभानु ने वादा किया कि वह अगले दिवस ही सम्पूर्ण ऋण चुका देगा। साहुकार ने उसकी बात मानकर शिकारी को छोड़ दिया। आजाद होने के बाद चित्रभानु जंगल में शिकार के लिए निकल तो गया, परंतु पूरा दिन बंदी गृह में रहने के कारण उसे बहुत तेज भूख-प्यास लगी थी।

सूर्य अस्त होने के पश्चात चित्रभानु एक जलाशय के पास गया और वहाँ उसे घाट के किनारे एक पेड़ दिखाई दिया। वह पीने के लिए थोड़ा सा पानी लेकर उस पेड़ पर चढ़ गया क्योंकि उसे यकीन था कि कोई न कोई पशु वहाँ पानी पीने अवश्य आयेगा। जिस पेड़ पर वह चढ़ा था वह एक बेलपत्र का पेड़ था। उसी वृक्ष के नीचे शिवलिंग भी स्थापित था जो सूखे बेलपत्रों से ढका हुआ था। जिससे वह शिकारी को दिखाई नहीं दे रहा था। भूख-प्‍यास से परेशान शिकारी ने बैठने के लिए वहीं एक मचान बना ली। मचान बनाने के लिए चित्रभानु ने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर जा गिरीं। इस प्रकार पूरा दिन उस शिकारी ने कुछ भी खाया-पिया नहीं, जिससे उसका व्रत भी हो गया और साथ ही शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए।

रात्रि का एक पहर बीत जाने पर वहाँ जलाशय पर एक गर्भवती मृगी पानी पीने आई। उसे देख शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर जैसे ही प्रत्यंचा तानी, उसके हाथ के झटके से कुछ बेलपत्र और पानी की बूंदे नीचे शिवलिंग पर गिर गईं। जिससे फिर से अनजाने में चित्रभानु की प्रथम प्रहर की पूजा हो गयी। शिकारी के हाथ में धनुष देख मृगी बोली- "मैं जल्द ही प्रसव करने वाली हूं। वाण मारकर तुम एक साथ दो जीवों को मार दोगे, जो कि गलत है। मैं अपने शिशु को जन्म देते ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब तुम मुझे मार लेना।" यह सुनते ही उस शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और तब मृगी जंगली झाड़ियों में छुप गई।

उसके कुछ समय पश्चात कोई अन्य मृगी वहाँ से निकली जिसे देखकर चित्रभानु बहुत खुश हो गया। मृगी के नजदीक आने पर शिकारी ने दोबारा धनुष पर बाण चढ़ा लिया। जिससे फिर से थोड़े से बेलपत्र नीचे शिवलिंग पर चढ़ गए। और शिकारी की द्वितीय पहर की पूजा भी हो गयी। वाण देख उस दूसरी मृगी ने विनम्रतापूर्वक शिकारी से कहा कि- "मैं थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत्त हुई एक कामातुर विरहिणी हूं। और अपने प्रिय की तलाश कर रही हूँ। पहले मैं अपने पति से मिल लूँ। फिर मैं जल्दी ही तुम्हारे पास लौट आऊँगी।" ऐसा सुनकर शिकारी ने उसे भी छोड़ दिया।

दो बार अपने शिकार को खोकर चित्रभानु को चिंता हो गयी। रात्रि का अंतिम पहर बीत रहा था कि तभी उधर से तीसरी मृगी अपने बच्चों के साथ गुजरी। शिकारी फिर से धनुष पर तीर चढ़ा कर उस मृगी को मारने ही वाला था कि वह बोली- "मुझे मत मारो। पहले मैं इन बच्चों को इनके पिता के पास छोड़ कर आती हूँ।" ऐसा सुनकर शिकारी मृगी से बोल कि- "मैं इतना मूर्ख नहीं, जो सामने आए अपने शिकार को जाने दूँ। इससे पहले भी दो बार मैं ये गलती कर चुका हूँ। मेरे भी बच्चे हैं जो भूख-प्यास से व्याकुल होंगे।" जवाब में मृगी ने कहा कि- "जैसे तुम्हें अपने बच्चों की चिंता है, उसी तरह मुझे भी अपने बच्चों की फिक्र है। इसलिए केवल अपने शिशुओं की खातिर मैं तुमसे थोड़ा व्यक्त मांग रही हूं। यकीन करो,, मैं बच्चों को पिता के पास छोड़कर तुरंत लौट आऊंगी।" मृगी के ऐसे वचन सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गयी और चित्रभानु ने उसे भी जाने दिया।

शिकार की चिंता में बैठा चित्रभानु पेड़ से बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता गया। और इसी तरह उसकी अनजाने में ही तीसरे पहर की पूजा भी अपने आप पूर्ण हो गयी।

इसके बाद वहीं से एक हृष्ट-पुष्ट मृग गुजर ही रहा था कि उसे देखते ही शिकारी ने सोच कि इस बार वह अपना शिकार नहीं छोड़ेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा को देख कर मृग ने उससे प्रार्थना की कि, "यदि तुमने मुझसे पहले यहाँ आईं मेरी तीन पत्नियों और उनके साथ आए बच्चों को मार दिया है, तो मुझे भी मार दो। क्योंकि मैं उन्हीं तीन मृगियों का पति हूं। परंतु अगर मेरी तीनों पत्नियों को तुमने जीवनदान दिया है तो मुझ पर भी कृपा करके थोड़ा समय का जीवनदान दे दो। ताकि मैं अपनी पत्नियों और बच्चों से मिलकर तुम्हारे सामने या सकूँ।"

शिकारी ने मृग की बात सुनकर पहले आई तीनों मृगियों के बारे में बताया। ये जानकर मृग ने कहा कि- "मेरी तीनों पत्नियों ने जिस प्रकार तुम्हें वचन दिया है, उससे तो यह पता चलता है कि अगर मैं मर गया तो वे अपना वादा नहीं निभा पाएंगी। इसलिए तुम मुझे भी छोड़ दो। मैं अब उनके साथ ही तुम्हारे समक्ष आऊँगा।"

लेकिन पूरा दिन व्रत करने, शिवलिंग पर अनजाने में बेलपत्र चढ़ाने और रात्रि-जागरण करने से शिकारी का हिंसक मन निर्मल हो गया। और उसके अंदर भगवद् शक्ति का वास हो गया। जिससे स्वतः ही शिकारी के हाथ से धनुष-वाण छूट कर गिर गया और उसने मृग को भी छोड़ दिया। वचनबद्ध मृग थोड़ी देर बाद अपने पूरे परिवार के साथ शिकारी के सामने उपस्थित हो गया। लेकिन जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता और आपसी प्रेम देखकर शिकारी को भीतर से बड़ी ग्लानि हुई। इस कारण चित्रभानु की आँखों से आँसू बहने लगे। और उसने सम्पूर्ण मृग परिवार को छोड़ दिया। इसके बाद उस शिकारी का मन सदा के लिए निर्मल हो गया।

इस सम्पूर्ण घटना को देवलोक से सभी देवता गण भी देख रहे थे। तब भगवान भोलेनाथ ने शिकारी की दयालुता से खुश होकर तुरंत उसे दर्शन दिए। साथ ही शिकारी को सुख-समृद्धि का वरदान देकर शिवशंभू ने गुह नाम भी प्रदान किया। आपको बता दें कि यह वही गुह नामक व्यक्ति था जिसके साथ प्रभु श्री राम ने मित्रता की थी।

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