
Birthplace of Mars in India
यूं तो आकाश में कई ग्रह हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि मंगल को धरती पुत्र कहा जाता है। कारण इसकी उत्पत्ति धरती से मानी गई है। दरअसल देवसेनापति मंगल जिन्हें कुंडली में पराक्रम का कारक माना जाता है। उनके कारक देव हनुमान माने गए हैं। वहीं भारत में एक ऐसी जगह भी है, जिसे मंगल का उत्पत्ति स्थान माना गया है। इस स्थान पर बने मंदिर के संबंध में मान्यता है कि यहां मंगल से जुड़े हर दोष का निवारण भी होता है।
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार मंगलनाथ मंदिर भारत की प्रमुख धार्मिक नगरी उज्जैन में स्थित है, जहां के पावन सानिध्य को पाकर सभी धन्य तो होते ही हैं, साथ ही सभी के पाप भी स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं। माना जाता है कि उज्जैन के प्रमुख मंदिरों में से एक यह मंदिर भक्तों की सभी विपदाओं को हर लेता है, पुराणों के अनुसार उज्जैन को मंगल की जननी भी कहा जाता है।
इसी कारण यह मंदिर अपना विशेष महत्व रखता है, ऐसे में पूरे भारत से लोग यहां पर आकर मंगल देव की पूजा अराधना करते हैं और जिनकी कुंडली में मंगल भारी होता है, या मंगल संबंधी कोई दोष होता है तो वह मंगल शांति के लिए भी यहां आते हैं।
दरअसल उज्जैन का यह मंगलनाथ मंदिर सभी से अलग है। वैसे तो देश भर में मंगल देव के अनेक मंदिर हैं, परंतु यह मंगल नाथ मंदिर अपना सबसे एक अलग महत्व रखता है। मान्यता के अनुसार मंगल का जन्म यहां होने के कारण ही इस स्थान को मंगल की जननी कहा गया और इस कारण यहां आकर मंगल की पूजा का विशेष विधान होता है। उन सभी लोगों जिनके लिए मंगल की शांति की पूजा बताई जाती है, माना जाता है कि उन्हें इस स्थान में आकर इस पूजा करने से फल की कई गुना प्राप्त होता है साथ ही इसका असर अत्यंत तेजी से होता है।
मंगलदेव का यह मंगलनाथ मंदिर उज्जैन की क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित है मंगलनाथ मंदिर जो भक्तों के लिए एक पवित्र धाम है यहां आना भक्तों के लिए एक अविस्मर्णीय सुखद यात्रा जैसा है।
मत्स्य पुराण तथा स्कंध पुराण आदि में मंगल देव के विषय में विस्तार पूर्वक उल्लेख किया गया है जिसके अनुसार उज्जैन में ही मंगल भगवान की उत्पत्ति हुई थी तथा मंगल नाथ मंदिर ही वह स्थान है जहां मंगल देव का जन्म हुआ, इसी कारण से यह मंदिर दैवीय गुणों से युक्त माना जाता है।
मंगल देव का स्वरुप : Appearance of Lord Mangal
मंगल देव का स्थान नव ग्रहों में आता है और यह अंगारका व खुज नाम से भी जाने जाते हैं। पौराणिक कथाओं में मंगल ग्रह शक्ति, वीरता और साहस के परिचायक होने के साथ ही धर्म रक्षक माने जाते हैं। मंगल देव को चार हाथ वाले त्रिशूल और गदा धारण किए दर्शाया जाता है, मान्यता के अनुसार भगवान मंगल की पूजा से मंगल शांति प्राप्त होती है और कर्ज से मुक्ति धन लाभ भी प्राप्त होता है। ज्योतिष में मंगल रत्न के रूप में मूंगा धारण किया जाता है,वहीं मंगल देव दक्षिण दिशा के संरक्षक माने जाते हैं।
मंगल देव की जन्म कथा : Birth Story of Mangaldev
मंगल देव के जन्म की कथा के बारे में पुराणों उल्लेख मिलता है। जिसके अनुसार एक अंधकासुर नामक राक्षस था, वह भगवान शिव की उपासना करते हुए वर्षों तक तपस्या में लीन रहा। भगवान शिव उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद प्रदान करने उसके समक्ष प्रकट हुए इस पर अंधकासुर ने भगवान से वरदान मांगा कि मेरी रक्त बूंदे जहां भी गिरें वहीं पर मैं फिर से जन्म लेता रहूं।
इस पर भगवान उसे यही वरदान प्रदान किया, इस वरदान को पाने के बाद दैत्य अंधकासुर ने चारों ओर तबाही फैला दी। शिव के वरदान स्वरूप कोई भी उसे हरा नहीँ पाता जिस कारण सभी लोग प्रभु से प्रार्थना करते हुए कहने लगे कि वो उन्हें इस संकट से उबारें। तब भगवान शिव व अंधकासुर क बीच भयंकर युद्ध हुआ। भगवान शिव जितनी बार भी अपने त्रिशूल से उसे मारते हैं, वह अगले ही पल पुन: जीवित हो जाता है उसका रक्त गिराते ही अनेक अंधकासुर उत्पन्न हो जाते, इस लम्बे युद्ध को करते करते भगवान शिव थक गए और उनके शरीर से पसीने की कुछ बूंदें उज्जैन की भूमि पर गिरती हैं और उन बुंदों के गिरने से पृथ्वी दो भागों में बंट जाती है और इससे मंगल देव का जन्म हुआ, इस बीच दैत्य का सारा रक्त मंगल में समा गया जिससे उसका अंत हो गया।
Published on:
25 Aug 2020 12:39 pm
बड़ी खबरें
View Allट्रेंडिंग
