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चिता की राख से धुंधला हो जाता है आसमां, खेलते हैं नागा और अघोरी यहां होली, जानें Masan Holi Date, परंपरा और कहानी

masan holi varanasi 2025: भारत में तरह-तरह के उत्सव मनाए होंगे, लेकिन बनारस की मसान की होली के बारे में जानते हैं। आइये जानते हैं मसान की होली क्यों मनाई जाती है, मसाने की होली कब है और बनारस में होली कैसे मनाते हैं, परंपरा क्या है (kashi ki holi ka mahatv) ।

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भारत

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Pravin Pandey

Mar 09, 2025

masan holi varanasi 2025 date

masan holi varanasi 2025 date: बनारस में मसान की होली 2025

Kashi Ki Holi: वाराणसी में काशी को शिव नगरी कहा जाता है, यह मसान की होली के लिए देश दुनिया में प्रसिद्ध है। यहां का मणिकर्णिका घाट श्मशान, चिता भस्म की होली के लिए प्रसिद्ध है। मान्यता है कि भगवान शिव भक्तों के साथ यहां होली खेलते हैं। आइये जानते हैं बनारस में मसान की होली का इतिहास और डेट (masan holi varanasi 2025 date)


Chita Bhsam Ki Holi History: परंपरा के मुताबिक देश भर में फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन यानी छोटी होली और अगले दिन होली मनाई जाती है, रंग खेला जाता है।


लेकिन बनारस में एकादशी यानी रंगभरी एकादशी से ही यह उत्सव शुरू हो जाता है। इसमें भी खास होता है फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को खेली जाने वाली चिता भस्म की होली यानी बनारस की मसान की होली, माना जाता है कि यहां मणिकर्णिका घाट पर भगवान शिव भक्तों के साथ यह होली खेलते हैं, आइये जानते हैं विस्तार से ..


मणिकर्णिका घाट पर ठंडी नहीं होती चिता की राख

बनारस का मणिकर्णिका घाट दुनिया के सबसे बड़े श्मशान घाट में से एक है, मान्यता है कि यहां लगातार शव आते रहते हैं, जिससे चिता की अग्नि ठंडी भी नहीं होती और दाह संस्कार के लिए कोई शव पहुंच जाता है। यहीं पर फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को चिताओं की राख यानी भभूत से होली खेलने की परंपरा है। यह भस्म शिव के प्रति शुद्धि और भक्ति का प्रतीक है।

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काशी के मसान की होली की प्राचीन कथा

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माता सती के आत्मदाह के बाद भगवान शिव चिर साधना में चले गए। इससे संसार का संतुलन बिगड़ गया, इधर राक्षस राज तारकासुर का आतंक बढ़ता जा रहा था, जो शिव पुत्र के हाथों ही मारा जा सकता था और इसके लिए शिवजी का साधना से उठना जरूरी था।


इसके लिए देवराज इंद्र ने योजना बनाई और उनके आदेश पर कामदेव ने आदि योगी शिव पर बाण से प्रहार कर दिया, इससे शिवजी की साधना भंग होई। लेकिन उनको क्रोध आ गया, जिससे त्रिनेत्र का तीसरा नेत्र खुल गया और कामदेव राख के ढेर में बदल गए।


बाद में देवताओं की प्रार्थना और सृष्टि में कामदेव के महत्व को देखते हुए उनको जीवन दान दिया लेकिन शरीर रहित यानी अनंग के रूप में, कालांतर में माता सती ने माता पार्वती के रूप में अवतार लिया और अपने समय पर फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी यानी महाशिवरात्रि पर शिव पार्वती ने विवाह किया।


इसके बाद फाल्गुन शुक्ल एकादशी यानी रंगभरी एकादशी पर शिवजी माता पार्वती को पहली बार काशी लेकर आए थे। इस खुशी में काशी नगरी वालों ने शिव-पार्वती के साथ रंगों की होली खेली, लेकिन शिवजी के गण (भूत-प्रेत, अघोरी, नागा साधु, इत्यादि) इस होली में शामिल नहीं हो पाए।


इस पर गणों के आग्रह पर भगवान शिव ने अगले दिन यानी फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को मणिकर्णिका घाट पर उनके साथ जली हुई चिता की राख से होली खेली, खुद पर भस्म मली और गणों पर भस्म उड़ाया। इसके बाद यहां हर साल चिता भस्म से होली खेली जाने लगी, मान्यता है कि शिवजी रंगभरनी एकादशी के अगले दिन मणिकर्णिका घाट पर अदृश्य रूप में आते हैं और अपने गणों के साथ भस्म की होली खेलते हैं। आइये जानते हैं इसका अन्य महत्व और परंपरा

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बनारस में चिता भस्म की होली की परंपरा (Banaras Chita Bhasm Holi)

बनारस में चिता भस्म की होली की परंपरा के अनुसार रंगभरनी एकादशी के दिन शिवजी और माता पार्वती की शोभायात्रा निकाली जाती है यानी शिवजी पार्वती के स्वरूप को पालकी में बिठाकर पूरे शहर में घुमाया जाता है और भक्त रंग उड़ाते हैं।

इसके अगले दिन सभी भगवान शिव के ही रूप बाबा विश्वनाथ से आज्ञा पाकर और उनकी पूजा कर मणिकर्णिका घाट पर पहुंच जाते हैं और होली खेलते हैं। इससे पहले बाबा महाश्मशान नाथ और माता मशान काली की मध्याह्न आरती (अनुष्ठान अर्पण) की जाती है।

नागा साधु और अघोरी खेलते हैं होली

बनारस की मसान की होली भगवान शिव के गण खेलते हैं, जिनमें अघोरी और नागा साधु शामिल होते हैं। मान्यता है कि इस दिन भूत-प्रेत, यक्ष गंधर्व भी इस घाट पर मसान की होली खेलने आते हैं लेकिन हम उन्हें देख नहीं सकते। इसके साथ ही भगवान शिव भी अदृश्य रूप से यहां मौजूद रहते हैं। देश दुनिया के भक्त भी इसका आनंद उठाने आते हैं।


इसके साथ ही शिवजी संदेश देते हैं कि मनुष्य को मृत्यु का भय त्याग कर अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि मृत्यु तो परम सत्य है और इसका भी आनंद मनाना चाहिए।

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कब खेली जाएगी मसान की होली (masan holi varanasi 2025 date)

11 मार्च 2025 को फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को बनारस के मणिकर्णिका घाट पर मसान की होली खेली जाएगी। इसका आयोजन बनारस नगर निगम करता है।