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Shankarachary Jayanti: सुकर्मा योग में मनेगी शंकराचार्य जयंती, जानिए आठ साल के बालक को मां ने क्यों दी संन्यासी बनने की अनुमति

2531 साल पहले जन्मे आदि शंकराचार्य ने ही हिंदू धर्म को सुगठित किया। इन्होंने अद्वैत दर्शन का प्रचार किया, ऐसे विलक्षण संन्यासी के बारे में कम ही लोग जानते हैं। आइये जानते हैं इनके बारे में प्रमुख बातें...

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Pravin Pandey

Apr 24, 2023

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adi shankarachary

शंकराचार्य जयंती 2023 ( Shankaracharya Birth Anniversary ): आदि शंकराचार्य का जन्म वैशाख शुक्ल पंचमी के दिन करीब 2531 साल पहले हुआ था। यह तिथि इस साल 25 अप्रैल 2023 को पड़ रही है। पंचमी तिथि की शुरुआत 24 अप्रैल सुबह 8.24 बजे हो रही है और यह तिथि संपन्न 25 अप्रैल 9.39 बजे होगी। उदयातिथि में शंकराचार्य जयंती 25 अप्रैल को मनाई जाएगी।
सुकर्मा योगः शंकराचार्य जयंती 25 अप्रैल को सुकर्मा योग में मनाई जाएगी, इस योग के स्वामी इंद्र हैं और यह अधिकांश कार्यों के लिए शुभ माना जाता है।

कौन हैं आदि शंकराचार्य
शंकराचार्य का जन्मः आदि शंकराचार्य के बचपन का नाम शंकर था, इनका जन्म 507-508 ई. पू. केरल में कालपी नाम के ग्राम में शिवगुरु भट्ट और माता सुभद्रा के घर हुआ था। ये बचपन से ही मेधावी थे, आठ वर्ष की अवस्था में संन्यास ग्रहण कर लिया था। इन्हें प्राच्य परंपरा में भगवान शिव का अवतार भी माना जाता है।

शंकराचार्य के संन्यासी बनने की कथाः शंकराचार्य के संन्यासी बनने की कथा आदि शंकराचार्य के संन्यासी बनने की कथा बहुत रोचक है, इनकी माता आठ साल के बच्चे को संन्यासी बनने की अनुमति नहीं दे रही थी। इस बीच एक दिन नदी किनारे एक मगरमच्छ ने इनका पैर पकड़ लिया, इस पर इन्होंने मां से कहा कि मां उन्हें संन्यासी बनने की आज्ञा दे दो नहीं तो यह मगरमच्छ उन्हें खा जाएगा। भयभीत होकर माता ने उन्हें आज्ञा दे दी। इसके बाद मगरमच्छ ने शंकराचार्य का पैर छोड़ दिया। बाद में इन्होंने गोविंदनाथ से संन्यास ग्रहण किया।

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अद्वैत वेदांत का प्रचारः आदि शंकराचार्य ने भागवतगीता, वेदांत सूत्र और उपनिषद की टीका भी लिखी। ये कुछ दिन काशी में रहे, इसके बाद 16 वर्ष की आयु में बदरिकाश्रम पहुंचे यहां ब्रह्मसूत्र पर भाष्य लिखा। बाद में विजिलबिंदु के तालवन (दरभंगा) में मंडनमिश्र को शास्त्रार्थ में परास्त किया। इसके बाद भारतवर्ष में भ्रमण किया, अद्वैत वेदांत का प्रचार किया। ब्रह्म ही सत्य है जगत माया है और आत्मा की गति मोक्ष में है, इसका प्रचार किया। उन्होंने हिंदू धर्म की कुरीतियां दूर किया ।


चार पीठ की स्थापनाः आदि शंकराचार्य ने वैदिक धर्म की पुनरोत्थान किया। 32 वर्ष की अल्पायु में 477 ई. पू. ये केदारनाथ के पास शिवलोक गमन कर गए। इससे पहले इन्होंने देश के चारों कोनों में चार पीठ स्थापित कर भारत की एकता सुनिश्चित की। ये चारों पीठ उत्तर में बदरिकाश्रम, पश्चिमा द्वारिका शारदापीठ, दक्षिण में शृंगेरी पीठ और जगन्नाथपुरी गोवर्धनपीठ हैं। इन्होंने दशनामी अखाड़ों की स्थापना भी की, जिनको अलग-अलग कार्य दिए गए।


समाधिः आदि शंकराचार्य ने केदारनाथ मंदिर क्षेत्र में समाधि ली थी, उन्होंने केदारनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार भी कराया था। इनकी समाधि मंदिर के पीछे स्थित है।