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शनिदेव की दृष्टि से ना तो कोई देव बच पाया और ना कोई दानव, स्वयं महादेव भी नहीं

पिता सूर्य देव की मिन्नत पर भगवान शिव ने शनि देव की मूर्छा तोड़ी

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नई दिल्ली। पुराणों और शास्त्रों में भगवान शिव को शनि देव का गुरु बताया गया है शास्त्रों के अनुसार सूर्य देव एवं देवी छाया के पुत्र शनि देव को क्रूर ग्रह की संज्ञा दी गयी है। शनि देव बचपन में बहुत ही उद्ण्डत थे तथा पिता सूर्य देव ने उनकी इस उदंडता से परेशान होकर भगवान शिव को अपने पुत्र शनि को सही मार्ग दिखाने को कहा। भगवान शिव के लाख समझाने पर भी जब शनि देव की उदंडता कम नहीं हुई तो भगवान शिव ने शनि देव को सबक सिखाने के लिए उन पर प्रहार किया जिससे शनि देव मूर्छित हो गए।

पिता सूर्य देव की मिन्नत पर भगवान शिव ने शनि देव की मूर्छा तोड़ी और उन्हें अपना शिष्य बना लिया और उन्हें दण्डाधिकारी का आशीर्वाद भी दिया। इस तरह शनिदेव न्यायधीश के समान न्याय एवं दण्ड के कार्य में भगवान शिव का सहयोग करने लगे। एक दिन शनि देव कैलाश पर्वत पर अपने गुरु यानि भगवान शिव से भेट करने के लिए गए तथा उनके पास जाकर कहा की है प्रभु कल में आपकी राशि में प्रवेश करने वाला हूं अर्थात मेरी वक्र दृष्टि आप पर पड़ने वाली है। भगवान शिव ने जब यह सूना तो वे आश्चर्य में पड़ गए और शनि देव से बोले की आप की वक्र दृष्टि कितने समय के लिए मुझ पर रहेगी।

तब शनि देव ने शिव से कहा की मेरी वक्र दृष्टि आप पर कल सवा प्रहर तक रहेगी। अगले दिन प्रातः काल शिव ने सोचा की आज मुझ पर शनि की दृष्टि पड़ने वाली है अतः मुझे कुछ ऐसा करना होगा की आज के दिन शनि मुझे देख ही ना पाए। तब भगवान शिव कुछ सोचते हुए मृत्यु लोक अर्थात धरती में प्रकट हुए तथा उन्होंने अपना भेष बदलकर हाथी का रूप धारण कर लिया।

धरती पर पुरे दिन वे हाथी का रूप धारण करें धरती में इधर-उधर विचरण करते रहे। जब शाम हुई तो भगवान शिव ने सोचा की अब शनि मेरे ग्रह से जाने वाला है अतः मुझे मेरे वास्तविक स्वरूप में आ जाना चाहिए। भगवान शिव अपना वास्तविक रूप धर कर कैलाश पर्वत लोट गए। जब महादेव शिव प्रसन्न मुद्रा में कैलाश पर्वत पहुंचे तो वहां पर पहले से ही मौजूद शनि देव उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। शनि देव को देखते है शिव बोले- हे! शनि देव देखो तुम्हारी वक्र दृष्टि का मुझ पर कोई प्रभाव नहीं हुआ। तथा आज में सारे दिन तुम से सुरक्षित रहा।

भगवान शिव की बातो को सुन शनि देव मुस्कराए और बोले हे! प्रभु मेरी दृष्टि से ना तो कोई देव बच पाया है और नहीं कोई दानव। यहां तक की आप पर भी आज पुरे दिन मेरे वर्क का दृष्टि प्रभाव रहा। भगवान शिव आश्चर्यचकित ने होते हुए शनि देव से पूछा आखिर यह कैसे सम्भव हुआ? इस पर शनि देव शिव से बोले, प्रभु मेरे वक्र दृष्टि के कारण ही आपको आज सारे दिन देव-योनि से पशु योनि में जाना पड़ा इस प्रकार आप मेरी वक्र दृष्टि का पात्र बने। यह सुनकर भगवान शिव ने शनि देव से प्रसन्न होकर उन्हें गले से लगा लिया तथा पुरे कैलाश पर्वत में शनि देव का जयकारा गूंजने लगा।