5 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

देशभर के छह स्थान जहां से है आदि शंकराचार्य का गहरा नाता, जानें दस बड़ी बातें

Adi Shankaracharya: अद्वैत वेदांत दर्शन को ठोस आधार देने वाले और हिंदू धर्म के चार पीठों के संस्थापक आदि शंकराचार्य को कौन नहीं जानता, जिसे स्मार्त मत के अनुयायी भगवान शंकर का अवतार भी मानते हैं। आइये उन छह स्थानों को जानते हैं जिनसे आदि शंकराचार्य का गहरा नाता है, साथ ही जानते हैं आदि शंकराचार्य से जुड़ी दस बातें (Shankarachary Important Fact)..

3 min read
Google source verification

image

Pravin Pandey

Sep 20, 2023

adi_shankarachary.jpg

आदि शंकराचार्य स्टैच्यू ओमकारेश्वर


1. कालड़ी (केरल): आदि शंकराचार्य का जन्म 507-508 ई. पू. केरल में कालड़ी (काषल) नाम के गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम शिवगुरु और माता का नाम अयंबा था। शिवजी की आराधना के फलस्वरूप पुत्र प्राप्ति के कारण इनके पिता ने इनका नाम शंकर रखा था।


2. ओमकारेश्वर (मध्य प्रदेश): आचार्य शंकराचार्य ने नर्मदा तट के किनारे ओमकारेश्वर मे आचार्य गोविंदपाद से शिक्षा ग्रहण की और अद्वैत तत्व की साधना की।

3. काशी (यूपी): शंकराचार्य ने अल्पायु में ही गोविन्द नाथ से संन्यास ग्रहण कर लिया। बाद में कुछ समय तक काशी में रहे, यहां से बिहार जाकर विजिलबिंदु के तालवन में ख्यातिप्राप्त विद्वान मण्डन मिश्र को सपत्नीक शास्त्रार्थ में परास्त किया। फिर पूरे देश में भ्रमण कर वैदिक धर्म (सनातन धर्म) का पुनरुत्थान किया।

4. चार पीठ: सनातन धर्म के पुनरुत्थान और प्रचार के लिए जगह-जगह भ्रमण और सनातनियों में एकता के लिए आदि शंकराचार्य ने देश के चारों कोनों में चार पीठ की स्थापना की, ये हिंदू, सनातन वैदिक धर्म के प्रमुख केंद्र है। ये चारों पीठ बद्रिकाश्रम ज्योतिर्मठ (उत्तराखंड), द्वारिका शारदापीठ , श्रृंगेरीपीठ, गोवर्धनपीठ (जगन्नाथ पुरी) हैं। कुछ लोग श्रृंगेरी को शारदा मठ और द्वारिका के मठ को काली मठ कहते हैं।

5. मंदिरों की स्थापनाः नील पर्वत पर चंडी देवी मंदिर की स्थापना का श्रेय आदि शंकराचार्य को दिया जाता है। इसके अलावा शिवालिक पर्वत शृंखला की पहाड़ियों पर माता शाकंभरी देवी शक्तिपीठ में जाकर इन्होंने पूजा अर्चना की थी और शाकंभरी देवी के साथ तीन देवियों भीमा, भ्रामरी और शताक्षी देवी की प्रतिमाओं को स्थापित किया था। कामाक्षी देवी मंदिर भी इन्हीं द्वारा स्थापित है, जिससे उस युग में सनातन धर्म का खूब प्रचार प्रसार हुआ।

6. केदारनाथ (उत्तराखंड): 32 वर्ष की अल्पायु में 477 ईं.पू. आदि शंकराचार्य ने केदारनाथ के पास शिवलोक गमन कर गए। केदारनाथ मंदिर के पीछे ही इनकी समाधि बनाई गई है।


ये भी पढ़ेंः 10 किमी. दूर से दिखाई देगी 108 फीट ऊंची आदि शंकराचार्य की मूर्ति की भव्यता, सीएम शिवराज करेंगे अनावरण


1. आदि शंकराचार्य बड़े ही मेधावी और प्रतिभाशाली थे। छह वर्ष की अवस्था में ही ये प्रकांड पंडित हो गए थे और आठ वर्ष की अवस्था में इन्होंने संन्यास ग्रहण किया था।
2. शंकर के जन्म के तीन साल बाद ही उनके पिता का देहावसान हो गया था और उनकी इच्छा के विरुद्ध मां संन्यासी बनने की आज्ञा नहीं दे रही थी। इस बीच एक दिन नदी किनारे एक मगरमच्छ ने शंकर के पैर पकड़ लिए, तब आदि शंकराचार्य ने मां से कहा कि मां मुझे संन्यास लेने की आज्ञा दो नहीं तो ये मगरमच्छ मुझे खा जाएगा। इससे भयभीत होकर माता ने तुरंत इन्हें संन्यासी होने की आज्ञा प्रदान कर दी। मान्यता है कि इसके बाद मगरमच्छ ने शंकराचार्य का पैर छोड़ दिया।


3. इसके बाद शंकर केरल से लंबी पदयात्रा करके नर्मदा नदी के तट पर स्थित ओंकारनाथ पहुंचे, यहां संन्यास की दीक्षा लेकर गुरु गोविंदपाद से योग शिक्षा और अद्वैत ब्रह्म का ज्ञान प्राप्त किया। तीन वर्ष तक आचार्य शंकर ने अद्वैत तत्त्व की साधना की। बाद में गुरु की आज्ञा से वे काशी विश्वनाथ के दर्शन के लिए गए।


4. आदि शंकराचार्य ने भगवद्गीता, उपनिषदों और वेदांतसूत्रों पर टीकाएं लिखीं, उन्होंने सांख्य दर्शन का प्रधानकारणवाद और मीमांसा दर्शन के ज्ञान-कर्मसमुच्चयवाद का खण्डन किया और ब्रह्मसूत्रों की विशद व्याख्या की है।


5. स्मार्त संप्रदाय इन्हें भगवान शिव का अवतार मानता है। आचार्य शंकराचार्य के उपदेश आत्मा और परमात्मा की एकरूपता पर आधारित हैं। इनके अनुसार परमात्मा एक ही समय में सगुण और निर्गुण दोनों ही स्वरूपों में रहता है। ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, मांडूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, बृहदारण्यक और छान्दोग्योपनिषद पर भाष्य लिखा।
6. आदि शंकराचार्य ने वेदों की समझ के बारे में मतभेद होने से उत्पन्न चार्वाक, जैन और बौद्ध मतों को शास्त्रार्थ से खंडित किया।

ये भी पढ़ेंः समस्या आने पर क्या करना चाहिए, इस कहानी से जानें आदि शंकराचार्य ने कैसे निकाला रास्ता


7. दसनामी गुसांई गोस्वामी (सरस्वती, गिरि, पुरी, बन, पर्वत, अरण्य, सागर, तीर्थ, आश्रम और भारती उपनाम वाले गुसांई, गोसाई, गोस्वामी) इनके आध्यात्मिक उत्तराधिकारी माने जाते हैं और उनके प्रमुख सामाजिक संगठन का नाम अंतरराष्ट्रीय जगतगुरु दसनाम गुसांई गोस्वामी एकता अखाड़ा परिषद है।
8. आदि शंकराचार्य वाराणसी से पैदल जब पैदल बद्रिकाश्रम पहुंचे, उन्होंने ब्रह्मसूत्र पर भाष्य लिखा, उस समय उनकी उम्र सिर्फ 16 साल थी।
9. काशी जाते वक्त रास्ते में चांडाल से ज्ञान प्राप्त किया और चांडाल के स्थान पर उन्हें भगवान शिव और चार देवों के दर्शन हुए।


10. पर काया प्रवेश कर काम शास्त्र की जानकारी प्राप्त की और इसके बाद आचार्य शंकर ने बिहार में मंडन मिश्र की पत्नी भारती देवी को शास्त्रार्थ में हराया। इसके अलावा मणिकर्णिका घाट के रास्ते में सर्वत्र आद्याशक्ति महामाया के दर्शन किए और मातृ वंदना की रचना की। शिव, पार्वती, गणेश, विष्णु आदि के भक्तिरसपूर्ण स्तोत्र भी रचे, ‘सौन्दर्य लहरी’, ‘विवेक चूड़ामणि’ जैसे श्रेष्ठतम ग्रंथों की रचना की। प्रस्थान त्रयी के भष्य भी लिखे। अपने अकाट्य तर्कों से शैव-शाक्त-वैष्णवों का द्वंद्व समाप्त किया और पंचदेवोपासना का मार्ग प्रशस्त किया।

ये भी पढ़ेंःदेश भर के Temples के बारे में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें