राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कई प्रमुख पदों पर रहे, अपने काम से छोड़ी अलग छाप
रीवा। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में बड़े नाम के रूप में शामिल रहे रोशनलाल सक्सेना का निधन हो गया है। उनका जाना संघ के लिए बड़ी क्षति मानी जा रही है। कई नवाचार उन्होंने किए, जिन्हें अब याद किया जा रहा है।
सीधी में 5 अक्टूबर 1931 को जन्मे रोशनलाल सक्सेना बीते कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। भोपाल में उन्होंने अंतिम सांस ली।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, सतना विधायक शंकरलाल तिवारी सहित विंध्य व महाकौशल के बड़े नेताओं ने विद्या भारती के कार्यालय पहुंचकर रोशनलाल सक्सेना को श्रद्धांजलि दी। परिजनों को ढांढ़स बंधाया। साथ ही उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुए। रोशनलाल सक्सेना को विद्या भारती के माध्यम से युवाओं, असहाय, विशेषकर वनवासी क्षेत्रों के उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए जाना जाता है। उन्हें सरस्वती स्कूल का पितामह भी माना जाता रहा है। इसको याद करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, रोशनलालजी ने सरस्वती शिशु मंदिर और वनवासी शिक्षा के जरिए शिक्षा की जो अलख जगाई, उससे देश-प्रदेश आलोकित हो रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राष्ट्र सेवा के संस्कारों से लाखों युवाओं को राष्ट्र निर्माण के पुनीत कार्य से जोड़ा। आपके योगदान के लिए प्रदेश सदैव आपका कृतज्ञ रहेगा।
रीवा में पठन-पाठन के साथ ही निवास स्थान भी उनका है। यहीं पर संघ के कई बड़े कार्यक्रम भी उनके नेतृत्व में कराए गए। रोशनलाल के बारे में बताया जाता है कि रीवा से गणित में एमएससी किया। 1943 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में उन्होंने जाना प्रारंभ किया। गणशिक्षक, मुख्यशिक्षक, रीवा नगर कार्यवाह आदि उत्तरदायित्वों का निर्वाह किया। सन 1962,1963 तथा 1966 में संघ शिक्षा वर्ग किया। 1954 से 1964 तक महाविद्यालय में अध्यापन कार्य किया।
1959 से शुरू कराई विद्यालय
संघ की विचारधारा को लेकर विद्यालय खोलने की परिकल्पना रोशनलाल ने ही की थी। 12 फरवरी 1959 बसंत पंचमी को एक धर्मशाला के छोटे से कमरे में पहला सरस्वती शिशु मंदिर प्रारंभ हुआ। जिसकी प्रबंध समिति के रोशनलाल सचिव थे। सन 1960 से देवपुत्र का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। सन 1964 में महाविद्यालय की नौकरी छोड़कर रीवा विभाग प्रचारक बने। धीरे धीरे विन्ध्य क्षेत्र में शिशु मंदिरों की संख्या बढ़कर 12 हो गई। तब विन्ध्य क्षेत्र की प्रांतीय इकाई बनाकर उसमें हर जिले को प्रतिनिधित्व दिया गया। उस समिति में भी सक्सेना सचिव रहे। सन 1974 में शिशुमंदिर तक सीमित हो, सचिव के रूप में पूरे प्रांत की रचना देखना प्रारम्भ किया। मध्य प्रदेश के साथ उत्तर प्रदेश और दिल्ली में भी विद्यालय प्रारम्भ हुए।
मीसा बंदी भी रहे
आपातकाल के दौरान 1975 में भी विद्यालयों में प्रवास उनके जारी रहे। दमोह में जब विद्यालय के प्राचार्य के साथ बाजार में थे, तभी कुछ लोगों ने उनसे सवाल पूछा कि आप गिरफ्तार नही हुए, इसी दौरान किसी ने पुलिस को सूचना कर दी और दूसरे ही दिन विद्यालय में पुलिस पहुंच गई। पहले तो 151 में कायमी हुई जो फिर मीसा में बदल दी गई। 16 जुलाई 1975 से भोपाल केन्द्रीय कारागार में 20 जनवरी 1977 तक निरुद्ध रहे। 1978 में भाऊराव ने विद्याभारती को अखिल भारतीय स्वरूप प्रदान किया और लज्जाराम तोमर अखिल भारतीय संगठन मंत्री नियुक्त हुए। पहले उनके साथ राष्ट्रीय सचिव तथा बाद में मध्य प्रदेश के संगठन मंत्री के रूप में रोशनलाल ने काम किया।
देश भर में विद्यालयों की स्थापना शुरू कराई
रोशनलाल द्वारा सरस्वती विद्यालय की स्थापना का प्रयोग लगातार सफल होता रहा। निजी विद्यालयों के क्षेत्र में यह सबसे बड़े संगठन के रूप में जाना जाता है। इसकी स्थापना अब दूसरे कई राज्यों ने भी शुरू कर दी है। दक्षिण भारत के राज्यों में भी सरस्वती विद्यालय की शाखाएं चल रही हैं, जहां से निकलने वाले छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं में भी अव्वल आ रहे हैं।