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बच्चों के लिए घातक साबित हो रहा मोबाइल, जानिए क्या हैं बचने के उपाय

locationसागरPublished: Jan 09, 2018 12:55:14 pm

आत्मघाती कदम तक उठा रहे बच्चे, चिड़चिड़ापन हावी

5 ways to keep children away from mobile in hindi
सागर. मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल मासूम बच्चों को मानसिक रूप से कमजोर बना रहा है। उनमें बीमारियां भी पनप रही हैं। दिनभर गेम और सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने से वे चिड़चिड़े होते जा रहे हैं। सोशल मीडिया पर इन दिनों एक वीडियो वायरल हो रहा, जिसमें एक बच्चा अपने ही माता-पिता की शिकायत करने थाना पहुंच जाता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बच्चों की मन:स्थिति किस तरह से बदल रही है।
पत्रिका ने जब शहर में पड़ताल की तो सामने आया कि मोबाइल का बहुत ज्यादा इस्तेमाल बच्चों को मानसिक रूप से कमजोर बना रहा है, इसी के कारण अब वे आत्मघाती कदम तक उठाने लगे हैं। चिकित्सकों के मुताबिक ८ से 1४ साल के बच्चे मोबाइल एडिक्शन के चलते डिप्रेशन, एंजाइटी, अटैचमेंट डिसॉर्डर और मायोपिया जैसी बीमारी की जकड़ में आ रहे हैं। मनोचिकित्सकों की मानें तो शहर में हर माह ऐसी बीमारी से पीडि़त २०० से ज्यादा केस आ रहे हैं। ऐसे में माता-पिता की चिंता बढ़ गई है। वे बच्चों की शिकायत लेकर क्लीनिक तक पहुंच रहे हैं।
इन लक्षण पर गौर करें अभिभावक
बच्चा गुमसुम रहता है, खाना अच्छे से नहीं खाता या सोता नहीं, बहुत ज्यादा एक्टिव (हाइपर एक्टिविज्म) है। यानी वह जल्दी-जल्दी दूसरे काम शुरू करता है, पर पूरा करने पर फोकस नहीं रहता। दिन में अपने साथ होने वाली घटनाओं को भूल जाता है। उसके स्वभाव में अचानक कोई बदलाव आ रहा हो। अकेले में रहना ज्यादा पसंद करता है। बात-बात में गुस्सा हो जाता है।
केस ०१
गढ़ाकोटा निवासी मुकेश बच्चे को लेकर परेशान हैं, उनका बेटा मोबाइल की गिरफ्त में हैं। जब हमने उससे सोते समय मोबाइल छीन लिया तो वह बालकनी से कूद गया। भगवान का शुक्र है वह सही है। उन्होंने बताया कि १४ साल की उम्र में बच्चे के इस कदम के बाद हमारी चिंता बढ़ गई है।
केस ०२
सिविल लाइन निवासी प्रियंका गुप्ता का बेटा १० साल की उम्र में तोड़-फोड़ करने लगा है। एक दिन पिता ने फोन छिपा दिया तो उसने घर में तोडफ़ोड़ कर दी। सोशल मीडिया को लेकर वह दीवाना सा है। वे मनोचिकित्सक से भी अपने बच्चे की जांच करा चुकी हैं, लेकिन ज्यादा फायदा नहीं हुआ है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
डॉ. राजीव जैन बताते हैं कि आमतौर पर बच्चों द्वारा आत्महत्या करने के पीछे गुस्से को माना जाता है, लेकिन, ऐसे आत्मघाती या जानलेवा कदमों के पीछे मूल वजह मनोविकार होते हैं।
पैरेंट्स का बच्चों पर ध्यान न देना भी मनोरोग पैदा करता है। माता-पिता दोनों जॉब करते हैं और बच्चे का साथी मोबाइल होता है ऐसे में बच्चा मोबाइल का एडिक्ट हो जाता है।
आजकल फील्ड में गेम नहीं बचे। बच्चा मोबाइल में ही गेम खेलना पसंद कर रहा है। वास्तिक तौर पर खेल खत्म होने की वजह से भी ऐसे बीमारियां बढ़ रही हैं।
– स्कूल में मोरल टीचर नहीं है। बच्चों को शुरू से ही अधिक अंक लाने का जोर भी उसे मानसिक तौर पर कमजोर बना रहा है। स्कूल में जरूरत है शिक्षक भी बच्चों को समय दें।
२००
बच्चे हर महीने आ रहे सामने
८-१४
साल के बच्चे हैं गिरफ्त में
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