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छठ पूजा : नहाय-खाय के साथ व्रतधारियों का शुरू, कल देंगे डूबते हुए सूरज को अर्घ्य

छठ पूजा का चार दिवसीय पर्व मंगलवार से शुरू हो गया। पहले दिन नहाय-खाय के साथ व्रतधारियों ने परंपरा को पूरा किया। मिट्टी के चूल्हे पर बिना लहसुन व प्याज की लौकी की सब्जी, चना दाल, चावल व रोटी मिट्टी के बर्तन में पकाई गई। आराधना के बाद व्रतियों ने इसी को ग्रहण किया।

सागरNov 06, 2024 / 12:53 pm

रेशु जैन

puja

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सागर. छठ पूजा का चार दिवसीय पर्व मंगलवार से शुरू हो गया। पहले दिन नहाय-खाय के साथ व्रतधारियों ने परंपरा को पूरा किया। मिट्टी के चूल्हे पर बिना लहसुन व प्याज की लौकी की सब्जी, चना दाल, चावल व रोटी मिट्टी के बर्तन में पकाई गई। आराधना के बाद व्रतियों ने इसी को ग्रहण किया। इसके बाद परिवार के अन्य सदस्यों ने भोजन किया। बुधवार को खरना विधि की परंपरा निभाई जाएगी।विकास कुमार शर्मा ने बताया कि छठ पर्व के पहले दिन को नहाय- खाय बोलते हैं। पहले दिन लोग पूरी शुद्धता के साथ चने की दाल चावल और लौकी की सब्जी शुद्ध घी में बना कर खाते हैं। आज से ही 72 घंटे का उपवास शुरू हो जाता है। उन्होंने बताया कि बरियाघाट के साथ सुभाषनगर और उपनगरीय क्षेत्र मकरोनिया के व्रतधारी पूजा अर्चना करेंगे। शहर के अन्य क्षेत्रों में रहने वाले व्रतधारी भी पूजा-अर्चना में शामिल होंगे। गुरुवार को साधना के दौरान व्रतधारी घुटनों तक पानी में खड़े होकर अस्त होते और उगते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देंगे।
भगवान सूर्य की बहन हैं छठी मैया

ज्योतिषाचार्य पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि छठी मैया भगवान सूर्य की बहन और परमपिता ब्रह्मा की मानस पुत्री है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार छठी मैया को संतान प्राप्ति की देवी कहा जाता है। यही वजह है कि बच्चों के जन्म के छठे दिन इनकी पूजा की जाती है। नहाय-खाय का मतलब होता है कि व्रती महिलाएं पहले नहाती हैं उसके बाद पूजा-अर्चना कर सात्विक भोजन करती हैं। इस दिन खाने में चावल, चने की दाल, लौकी या कद्दू की सब्जी और पकौड़ी बनाया जाता है। बता दें कि छठ पूजा में शुद्धता का बड़ा महत्व है।
घाट पर की तैयारी

बरिया घाट पर छठ पूजा समिति ने तैयारी की। गुरुवार को डूबते हुए सूर्य भगवान को अर्घ्य देने के लिए समिति व्यवस्थाएं करेंगी। इस मौके पर विकास कुमार शर्मा, डॉ. मनीष झा, सुरेन्द्र शर्मा, आशुतोष कुमार, रोशन कुमार, राजीव कुमार, प्रमोद कुमार, रेशु कुमार आदि शामिल हुए। वहीं सुभाषनगर और मकरोनिया में कृत्रिम कुंड बनाने की तैयारी की गई।

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