आने वाले समय में अयोध्या भारत की राजधानी के तौर पर भी पहचानी जाए तो कोई संदेह नहीं होगा : पुंडरीक महाराज
देव राधारमण शारदा माई मंदिर वासुदेव गौड़ीय मठ राजघाट स्थित परिसर में कथा का आयोजन


देव राधारमण शारदा माई मंदिर वासुदेव गौड़ीय मठ राजघाट स्थित परिसर में संगीतमय श्रीमद् चैतन्य भगवत कथा के पांचवें दिन शनिवार को पुंडरीक गोस्वामी महाराज ने कहा कि जहां विशुद्ध सरल भाव से भक्ति हो रही है वहां आत्म संतुष्टि होती है। उन्होंने कहा कि कलयुग में धर्म वही टिका रहता है जहां विप्र सेवा, गो सेवा, संत सेवा और भजन हो रहा हो । उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद वहां की परिस्थिति का उल्लेख करते हुए कहां 2020 के पहले अयोध्या में कोई व्यवस्था नहीं थी। दो वर्ष में अयोध्या में रामलाला सरकार के मंदिर के स्थापना के बाद वहां विकास बहुत हुआ है। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में अयोध्या भारत की राजधानी के तौर पर भी पहचानी जाए तो कोई संदेह नहीं होगा। पुंडरीक महाराज ने कहा कि हिन्दू राष्ट्र की बात करने वालों, सनातन की जय करने वालों को गुरु के चरण में बैठ कर धर्म को समझने की जरुरत है। हल्ला करने से कुछ नहीं होना है। महाप्रभु के संयास के दौरान झारखंड के जंगल में हरि नाम कीर्तन की घटना को सुना। उन्होंने कहा कि महाप्रभु ने स्वधर्मी – परधर्मी के साथ जीव जंतुओं, पक्षियों में भी इसका बोध कराया। उन्होंने कहा किसी को भी अंधविश्वास में नहीं पड़ना चाहिए। हरिनाम ही सर्वोपरि है इसका जप करने से ही सुख की प्राप्ति होगी। उन्होंने राजघाट में भी नवद्वीप धाम की तर्ज पर से ही मंदिर के निर्माण की बात कही। जिससे विश्वभर में सागर राजघाट की पहचान मिले। उन्होंने हरिनाम कीर्तन के महत्व को समझाते हुए कहा कि व्यक्ति को स्वयं अकेले कीर्तन नहीं करना चाहिए। दूसरे लोगों को भी कीर्तन के लिए प्रेरित करना चाहिए। कथा पंडाल में बड़ी संख्या में भक्त मौजूद रहे।
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