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स्वर्ग और नरक कहीं और नहीं है जीते जी भी देखा जा सकता है

प्रवचन

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Heaven and hell is nowhere else, even live can be seen

मानसिक शांति और स्वस्थ्य शरीर किसी स्वर्ग से कम नहीं

खुरई. तारण तरण जैन चैत्यालय जी में विराजमान ब्रम्हचारी अमित भैया जी ने 49 दिवसीय अध्यात्म पाठ के द्वितीय चरण में विषाल स्वाध्याय सभा को संबोधित किया। भैयाजी ने कहा कि स्वर्ग-नरक मरने के बाद ही मिलते हों- ऐसा नहीं। जीते जी भी उन्हें देखा और भोगा जा सकता है। मानसिक शान्ति और शारीरिक स्वास्थ्य हो, तो जीवन किसी स्वर्ग से कम नहीं है और इससे विपरीत जीवन किसी नरक से कम नहीं है। इसलिए ज्ञानियों ने कहा कि अगर इस घर को आश्रम बनाकर जी सकें, तपोवन बनाकर जी सकें, तो यही घर, यही परिवार तुम्हारे लिए स्वर्ग है। जीवन में अगर दु:ख आए, संकट आए, कैसी भी प्रतिकूल परिस्थितियाँ आयें, तो इस दु:ख को अपने ही पिछले कर्मों का उदय मानकर स्वीकार करके धैर्य के साथ सहन कर ले, तो जीवन के आधे दु:ख तो यों ही खत्म हो जायेंगे। अपनी आँखों में जो संसार की खुमारी है, उसे खत्म करके एक आदर्ष जीवन राम-सीता की तरह जीकर दुनिया को दिखा दें। पर राम और सीता जंगल में भी प्रसन्न थे, किन्तु हम कोठियों में रहकर भी प्रसन्न नहीं हैं, यह हमारे जीवन की असलियत है। इसे समझना होगा।
भैयाजी ने कहा कि इस देष में जो सबसे बड़ी दुर्घटना घट रही है, वह यह है कि प्राय: आदमी दूसरों बदलने की कुचेष्ठा में लगा हुआ है।
सास बहू को, बहू सास को, बाप बेटे को, बेटा बाप को, पड़ौसी पड़ौसी को बदलने को आतुर है, जबकि पहले झुकने की और पहले सुधरने की पहल हमें ही करना है। इसी पहल से समस्या का हल होगा। यदि हम थोड़ा ही झुक गए, तो हो सकता है, सामने वाला पूरा ही झुक जाए। कमल कीचड़ में रहना और मनुष्य का संसार में रहना बुरा नहीं है। परन्तु यदि कीचड़ कमल पर चढ़ जाए और संसार मनुष्य के हृदय में छा जाए, तो यह बुराई है। हम कमल हैं, हमारा परिवार कमल की पंखुडिय़ाँ हैं तथा संसार कीचड़ है।
कीचड़ में कमल की तरह जी सकें, तो गृहस्थाश्रम भी किसी तपोवन से कम महत्वपूर्ण नहीं है। स्वाध्या पाठ के पूर्व बाहर से आए श्रद्धालुओ ने दर्षन वंदन कर असीम पुण्यार्जन किया। अध्यात्म पाठ का पठन-पाठन संपूर्ण समाज एवं संचालन तारण तरण जैन समाज के युवाषाखा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमंत विकास समैया ने किया।