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श्रुतधाम परिसर में बन रहा प्रदेश का पहला मुक्ताकाश समवशरण जिनालय, अगले वर्ष हो जाएगा तैयार

आचार्य विद्यासागर महाराज के पचासवें संयम स्वर्ण महोत्सव पर रखी गई थी नींव, तेजी से चल रहा है कार्य, देश​—विदेश से दर्शन करने आएंगे श्रद्धालु

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The state's first Muktakaash Samavashran Jinalaya is being built in the Shrutdham complex.

श्रुतधाम परिसर में बन रहा मुक्ताकाश समवशरण

बीना. खुरई रोड स्थित अनेकांत ज्ञान श्रुतधाम में प्रदेश का पहला तीर्थंकर महावीर मुक्ताकाश समवशरण जिनालय बन रहा है। खुले आसमान में यह समवशरण 41000 वर्गफीट क्षेत्र में बनेगा। इसकी नींव आचार्य विद्यासागर महाराज के पचासवें संयम स्वर्ण महोत्सव के अंतर्गत जून 2018 में रखी गई थी और अगले वर्ष यह तैयार हो सकता है।
समवशरण में श्रीजी की 108 प्रतिमाएं विराजित की जाएंगी और 108 ध्वज लगाए जाएंगे। धूलिसाल कोट के बाह्य भाग में चारों ओर तीर्थंकर उद्यान होगा, जिसमें 24 तीर्थंकरों के केवल ज्ञान वृक्ष होंगे। साथ ही चैत्यप्रसाद भूमि में चार मानस्तभ, 8 बावडिय़ां, चौबीसी की रचना, खतिका भूमि में जल प्रवाह होगा, लताभूमि में विभिन्न प्रकार की लताएं, उपवन भूमि में विभिन्न वृक्ष लगाए जा रहे हैं। भवन भूमि में भवनों का निर्माण होगा। समवशरण के तैयार होने पर भव्य रूप आकर्षण का केन्द्र होगा।

चारों ओर बनेगी ऑर्ट ऑफ गैलरी
समवशरण के चारों तरफ ऑर्ट ऑफ गैलरी बनाई जा रही है। जिसमें यहां आने वाले श्रद्धालुओं को 25000 पांडुलिपीयां, दुर्र्लभ कलाकृति, प्राचीन मूर्ति आदि देखने को मिलेंगी।

250 टन मार्बल से बना एक चैत्यवृक्ष
समवशरण में मार्बल के चैत्यवृक्ष बनाए जा रहे हैं। एक चैत्यवृक्ष बनकर तैयार हो गया है, जिसमें 250 टन मार्बल लगा है। इसके अलावा अभी आठ और वृक्ष बनेंगे। इन चैत्यवृक्ष पर अरिहंत प्रभु की प्रतिमाएं रहेंगी। चारों दिशाओं में धर्मचक्र, 12 सभाएं होगी।

धर्म का प्रचार और युवा पीढ़ी को जोड़ना उद्देश्य
समवशरण का निर्माण बाल ब्रह्मचारी संदीप सरल के सान्निध्य में चल रहा है। उन्होंने बताया कि तीर्थंकर भगवान के उपदेश देने की सभा का नाम समोशरण है, जहां देव, मनुष्य, त्रियंच प्राणी बैठकर प्रभु की अमृतवाणी का श्रवण करते हैं और प्रभु के दर्शन कर सम्यक्त्व की प्राप्ति करते हैं। खुले आकाश में समवशरण जिनालय की रचना का उद्देश्य धर्म का प्रचार करना और युवा पीढ़ी को जोड़ना है।