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फ्रेडशिप-डे: भगत सिंह ने मरते दम तक निभाई थी दोस्ती

इस फ्रेडशिप-डे पर हम आपकाे शहीद भगत सिंह की मित्रता की एेसी कहानी बताने जा रहे हैं, जिसे सुनकर आपकी आंखें भर आएंगी

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Rajkumar Pal

Aug 05, 2017

bhagat singh, sukhdev and rajguru

शिवमणी त्यागी, सहारनपुर। शहीद भगत सिंह, एक एेसा नाम जिसके जुबां पर आते ही हर भारत वासी का राेम-राेम देशभक्ति में रम जाता है। इस फ्रेडशिप-डे पर हम आपकाे शहीद भगत सिंह की मित्रता की एेसी कहानी बताने जा रहे हैं, जिसे सुनकर आपकी आंखें भर आएंगी। भगत सिंह सिर्फ आजादी के दीवाने ही नहीं थे, उन्हाेंने दाेस्ती भी जमकर की आैर फिर उस दाेस्ती काे मरते दम तक निभाया। शहीद भगत सिंह के जीवन में वह काैन सी एेसी घटना घटी जाे उनके किरदार में दाेस्ती के प्रति समर्पण आैर प्रेम का अदभुद उदाहरण पेश करती है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए हम उत्तर प्रदेश के जिले सहारनपुर में शहीद भगत सिंह के घर पहुंचे।

यहां हमारी मुलाकात उनके भतीजे किरणजीत सिंह संधु की पत्नी मंजीत काैर से हुई। बेहद शांत इलाके में जेवी जैन डिग्री कॉलेज के पास शहीद भगत सिंह का मकान है। हम यहां पहुंचे ताे मंजीत काैर ने बताया कि शहीद भगत सिंह जी के जीवन में उनके दाेस्त आैर दाेस्ती दाेनाें ही बेहद महत्वपूर्ण थे। उनके मुख्य दाेस्ताें में सुखदेव, राजगुरु, बट्टूकेश्वर दत्त, शिववर्मा, जयदेव कपूर, भगवती चरण गाैरा आदि दाेस्त थे। ये सभी एक दूसरे पर जान छिड़कते थे आैर जब भी किसी मुश्किल काम के लिए कहीं जाना हाेता था ताे इन सभी में आपस में इस बात काे लेकर विवाद हाेता था कि मैं जाऊंगा। दरअसल हर दाेस्त अपने दाेस्त की जान काे अपनी जान से अधिक समझता था। हमेशा आजादी की लड़ाई में ये सभी दाेस्त बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते थे।







शहीद भगत सिंह ने बनाई थी ये नाैजवान सभा

बहुक कम लाेग जानते हैं कि अपने दाेस्ताें के साथ मिलकर शहीद भगत सिंह ने ‘नाैजवान भारत सभा’ का गठन भी किया था। इस सभा काे दाेस्ती के बल पर ही आगे बढ़ाया गया आैर बाद में इस सभा में हजाराें नाैजवान जुड़ गए। ये सभी आपस में दाेस्ताें में की तरह ही व्यवहार करते थे।

जब भगत सिंह ने किया था दाेस्ताें के लिए अनशन

मंजीत काैर बताती हैं कि भगत सिंह जब जेल गए ताे वहां उन्हाेंने देखा कि उनके मित्राें काे एेसा खाना दिया जाता है जिसे जानवर भी नहीं खा सकते। इस पर भगत सिंह ने अपने मित्राें के लिए अनशन किया आैर इस अनशन में उनके मित्राें ने भी बराबर का साथ दिया। इस दाेस्ती की मजबूत डाेर ने गाेरी हुकूमत काे हिला दिया आैर फिर जेल में भारतीय बंदियाें काे भी अच्छा खाना मिलने लगा।

फांसी पर चढ़ने से पहले पेश की थी दाेस्ती की नजीर

मंजीत काैर बताती है कि फांसी पर झूलने तक शहीद भगत सिंह ने अपनी मित्रता काे कायम रखा आैर एेसी नजीर पेश कर गए कि मित्रता काे अमर कर दिया। मंजीत काैर बताती है कि 23 मार्च 1931 काे जब आजादी के दीवाने राजगुरु, सुखदेव आैर भगत सिंह काे फांसी दी गई ताे जेलर ने उनसे आखिरी इच्छा पूछी इस दाैरान दाेस्ती की अनाेखी मिसाल पेश करते हुए भगत सिंह ने कहा था कि उन तीनाें काे हाथ खाेल दिए जाएं, वह अंतिम बार गले लगाना चाहते हैं। इस पर गाेरी हुकूमत के सिपाहियाें ने उनके हाथ खाेले थे आैर आजादी के दीवानाें ने गले मिलकर हंसते हुए फांसी के फंदे काे चूम लिया था।

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